Sat. Apr 19th, 2025
श्री सभाई सुजस
दोहा
सभाई चड़िया सती जाती वधारण जस।
रंग वारण घर रतनू वेरियाँ काटण वंश।।
कवियन्द धर कपूरड़ी शाख सौविस निवास
कीधी अनीति कमधजां ओ वरणो इतिहास।।

छंद पधरी
साँसणा अवल हुतो सुथान
सरवत प्रगट शौभा समान
बाजार हाट करतां बखान
सुंदर अपार गोकुल समान।।
कमधजां कलंक वैरीसाल कंस
धारियों करण विट वरण धंस।
माघणा समज जदु वंश प्रमाण
दुख दिया दुष्ट साँसण दबाण।।
तण वार करण धरणो तैयार
वड क्रोध विदग मरणो विचार
नवलाख मात कर नमस्कार
कस कमर सार त्रम्बल कटार।।
त्रहकिया तुरंत डाका त्रबाग
गहकिया कंठ तागाळ राग
सहकिया सौविस शाख
रहकिया लक्ष्य बाढ़ाण राख।।
कटकिया जांण शंकर सकोफ़
खटकिया उनड़ भूचाल खोफ।
चटकिया अखड़ पगधर चपाट
हटकिया शहर बाढ़ाण हाट।।
उगणीश वीश समत नवीन
मधु मास मंगल अमास मीन
तण पहर तमर धरती तपाय
जण वार जबर जुगती जचाय।।
ब्राजिया कजळ कांबळ बिछाय
धर धूम्प् तेल गूगळ धुखाय
दीपियो धूम्प् निश दिवस दोय
कमधजां बात मानी न कोय।।
तीसरी वार घुड़ स्वार तेड़
दुश्मणा आर घात्यो दुफेड़
आथड़ी भीड़ तज हाट एम
जातरी घाट हरद्वार जेम।।
होणार सार सहजात हार
सतधार रतनुआं धर श्रंगार
वृत धार विकट उठी वकार
चखलाल भाल कूंटी चकार।।
धोकरी हाथ त्रिशूळ धार
प्रकटिया वीर बावन प्रकार
हीमतां हार दळ त्रण हजार
सुक भया सकळ पाहण सकार।।
धस गया भिड़ज पग धरण बोध
जुध बीच जेम रथ करण जोध
खिड़काय काठ अंग करण खाख
रचवाय जमर निज परण राख।।
दीधी प्रकमा कर रक्त धार
कीधी सवारी हर हर पुकार
सब भीड़ सिथिल जलधि समान
झड़फियो जमर मैणाक जांण।।
गेणाक धूंहरा चड़यो गोट
दूसरों जांण तूफान दोट
सभाई मात झाळा समाय
सिंधुओ राग साहला सुणाय।।
मरजाद जात सत स्वाभिमान
रखलिया मावड़ी तजे प्राण
साँसणा तणो राखण समान
होमियो अंग कर हँस हांण।।
अगवाण इंदर भेज्या विमाण
जयकार करत नवलाख जांण
जोड़त अफसरा निरत जेथ
सुरलोक मिळत आदर समेत।।
इण भांत पाय स्वागत अंकाश
सभाई किया सरगां निवास
आखां अब धर पर घटी ऐम
वेरियों पड़यो मां सती वेम।।
कुबधियाँ लाख पड़पंच कराय
जमरां गुळी छांटीज जाय
जादुओ जंतर मंतर जपाय
खिलियो जमर निज करण खाय।।
परमाण बीतिया बरस पांच
आराण हरखिया बिना आंच
कवराज समंज कळजुग करूर
दल साज वास तज जाय दूर।।
बस गया बिखर पड़संग बलाक
तज दियो तुरत सांसण तलाक
रतनुआं जाय धर भादरेश
सभाई थान थाप्यो सुदेश।।
इकरात माँ अधरात आय
जंझाळ बात दीधी जणाय
स्वापहर महर चड़िया सवेर
माघणा जाय धर बाड़मेर।।
सींचियो जमर निज वंश श्रोण
सपनंत बात कीधी सपौण
उण वार बांण कीधी अंकाश
सुरराय आंण दीधी शबास।।
ऊठियो जमर अतिसय अंताळ
केविया दलण बण छतीस काळ
जळ उठी अगन घर घर प्रजाळ
हड़मंत जेम पूगी हथाळ।।
कलपत कुसुम जणणी कराळ
बरतिया बाळ पींगा विचाळ
बूढ़िया जवान लीधा विरोळ
पाधर मसाण कीधा पिरोळ।।
हेकम्प अहित कर हाय हाय
जोगणी सकल भ्रख लिया जाय
बच गयो जोय परले विचाळ
बक रयो होय पागल बकाळ।।
अण भांत दिया परचा अनूप
वंश नाश किया वेरिशाळ भूप
विदगां जांण कीधा वखाण
पूजिया थान देवां प्रमाण।।
भाखत थान थिर भादरेश
दाखंत नाम नवखंड देश
सांप्रत धर अम्बर चांद सूर
जबलग जस अमर तुझ जरूर।।
कुरबाण हुई स्वजात काम
परनाम मात लाखों प्रणाम
बलिदान कथा तुझ कर बखान
धनवाद देत कवि भँवर दान।
अवतरी ठाकरसी धरां आय
गूंगा डाडाणो सुजस गाय।।
छपय
जमर देमां जळाय प्रतख भाखरो पाड़यो।
जमर सीलां जळाय जादम जैसाणे झाड़यो
जमर चंदू जळाय चाँपो काळ मुख चाड़्यो
जड़ा मूळ जण भांत
आप बेरिशाळ उखाड़यो।
कर जोड़ कहे भँवर कवि
आईयल वरण आधारजो
चारणा विरूद्ध छत्री चले
जेना मिळे जोगणी मारजो

–भँवरदान मधुकर झणकली

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