!!शायर व कवि !!
ऐक ही व्यक्ति के दो नाम जिसे सिध्द किया है माननीय जोगीदानजी कविया सेवापुरा वालों ने !!
इन्हे काव्य-रचना के साथ ही मद्यपान का शौक भी था किन्तु जीवन की सांध्य वैला में इनका लक्ष्मणगढ सीकर के सहज योगी श्रध्दानाथ जी महाराज के सानिध्य मद्यपान से छुटकारा मिल गया थाऔर धार्मिक पुस्तकें पठन व हरि भजन को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था पर जब पहले पीते थे तो अपने मन-गत मौज-गत डिंगल पिंगल हिन्दी के साथ ही उर्दू की शायरी भी कर लेते थे, पेश है ऐक शायरी ।
ऐसा किया शराब ने बेहोश कर मुझे, अल्लाह याद आएगा मै-के सरूर में !
पसे मुर्दने उठाने आयेंगें, गमगीन जो मुझको !
शराबे जाम पिला देना, गमी का गम गलत करने !
पसे मुर्दन बनाए जाएंगे, सागर मेरी गिल के !
लबे जांबख्श के बोसे, मिलेंगें खाक में मिलकर !!
आदरणीय जोगीदानजीसा नें भक्ति साहित्य भी विपुल सृजन किया था, दुर्गा-शप्तशति का सन1951 में राजस्थानी में अनुवाद भी सुंदर विधि से किया था नमन है कविया जी को !!
~राजेंद्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!