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सवैया
है सतसंग बङो जग में हरि,
अंकित सिन्धु सिला उतराने !
पारस के परसे तन लोह दिपै,
दुति हेम स्वरूप समाने !
गंग कहे मलयाचल बात छुए,
तरू ईस के सीस चढाने !
कीट कृमी अति के परसंग,
फिरै अलि ह्वै मकरंद छकाने !!

कवित्त घनाक्षरी !!
बेद होत फूहर होत थूहर कलपतरू,
परमहंस चूहर की होत परिपाटी को !
भूपति मंगैया होत ठाँठ कामधेनु होत,
गैयर झरत मद चेरो होत चाँटी को !
कहै कबिगंग पुनि पुन्य किये पापहोत,
बैरी निजबाप होत साँपहोत साँटी को !
निर्धन कुबेर होत स्यार सम सेर होत,
दिनन के फेर सों सुमेर होत मांटी को !!

अनन्त अनुभव से अनुभुत कवि गंग द्वारा लिखित साहित जो समय व स्थान की सीमावों को लांघकर आज भी अपनी सटीकता सार्थकता व सतोलेपन को सिध्द करते है !!

~राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!

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