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श्री करनी माता की शिक्षाएं एवं संदेश

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भगवती श्री करनी माता ने इस मरूधरा के सुवाप गाँव (जोधपुर के आऊ के निकट) में वि•स•1444 आश्विन शुक्ल सप्तमी शुक्रवार के दिन अवतार लिया । उन्होंने अपनी मां श्री देवल आढ़ी के गर्भ में 21मास रहकर मेहाजी किनिया(चारण) की छठी पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस प्रकार मां करणीजी का प्राकट्य अद्वितीय व अद्भुत था जो कि मानवशास्त्र के नियमों के विपरीत था। मां करणीजी के प्राकट्य की तरह ही उनके ज्योतिर्लीन होने का तरीका भी विशेष उल्लेखनीय है । वे वि•स•1595 को चैत्र शुक्ल नवमी को गडियाळा व गिराछर के बीच धीनेरू (खराढयां) तलाई के पास रूक कर उदित होते हुए सूर्य की तरफ मुंह करके ध्यानावस्थित हुए और अपने सेवक सारंग विश्नोई से अपने सिर पर जल की बूँदें डलवायी । इसी के साथ उन्होंने योग शास्त्र विधि से अपने शरीर से अग्नि (ज्योति) प्रज्ज्वलित करके अदृश्य हो गये।
मातेश्वरी श्री करनी ने जिस रास्ते पर चलने की शिक्षा दी,उन्होंने स्वयं उस पर चलकर अनुकरणीय  जीवन की राह दिखलाई है ।
इस सम्बन्ध में विद्वान जयसिंहजी सिंढायच(मण्डा) का दोहा विशेष महत्त्वपूर्ण है । सूंघा ने मुंहगां कियां, पोती निज परणाय। मारू काछैल रो मात(थे), दीनों भैद मिटाय।। इस प्रकार करुणामयी श्री करनी माता ने जो व्यवहार प्रत्यक्ष व दृश्य संसार को बताया है उससे उनके भक्तों को शिक्षा लेने की आवश्यकता है । मां भगवती में हालात बदल देने की कितनी क्षमता थी कि उन्होंने इस संसार में अवतार लेकर धर्म को दृढ़ता प्रदान की । इसके अलावा उन्होंने दीन दु:खियों के दु:ख को दूर करने के लिए बीकानेर व जोधपुर जैसे सुदृढ़ राज्यों की स्थापना बिना किसी खून खराबे से बड़ी लगन से की।
जब उनके पुत्र लाखन(उनकी बहिन गुलाब बाई की उदर से उत्पन्न पुत्र) की वि• स• 1524 कार्तिक शुक्ल चवदस के दिन कोलायत के तालाब में डूबने से मृत्यु हो गई तो गुलाब बाई के अनुरोध पर भगवती श्री करनी माता ने लाखन को चमत्कारपूर्ण पुनः जीवित कर दिया। मां करनी जी ने यमराज को अपना विराट स्वरूप दिखाकर जीव के मरणोपरांत यमपुरी (स्वर्ग नरक) जाने की मर्यादा को ही बदल डाली। मां करनी जी के वचनानुसार उनके वंशज की मृत्यु होने पर देशनोक मंदिर में काबा (चूहा) बनता है और मंदिर में काबे की मृत्यु होने पर उनके वंश में मनुष्य रूप में जन्म होता है। इन्हीं कारणों से श्री करनी मंदिर में काबों को श्रद्धालू चुग्गा, मिठाई व दूध इत्यादि खाद्य पदार्थ खिलाकर प्रसन्नता का अनुभव करते हैं । मां करनी के मंदिर में हजारों काबों के होने के बावजूद भी वहां कभी प्लेग न फैलना विश्वविख्यात चमत्कार के रूप में माना जाता है । यह चमत्कार सम्पूर्ण विश्व एवं वैज्ञानिकों को आश्चर्यचकित कर देने वाला है । मां करनीजी का यह चमत्कार विज्ञान को गलत साबित कर देता है और सोचने के लिए मजबूर कर देता है।
मां करनी जी के भक्त लक्ष्मी नारायण जी सोनी (डूंगरगढ़) के मतानुसार भगवती श्री करनी माता ने कार्तिक शुक्ल चवदस के दिन ही लाखन को मृत्योपरांत पुनः जीवित किया था । मां करनी जी के भक्तों की यह मान्यता है कि इस अद्भुत व अद्वितीय चमत्कार को देखने के लिए  कार्तिक शुक्ल चवदस की रात को तैतीस कोटि देवी देवता मां करनी जी के धाम देशनोक के ओरण में उपस्थित हुए थे। मां करनी जी के इसी दिव्य अलौकिक चमत्कार पर पुष्प वर्षा की। इसी की स्मृति में कार्तिक शुक्ल चवदस की रात को प्रति वर्ष मां करनी जी के ओरण की लाखों भक्तों द्वारा परिक्रमा दी जाती हैं। इस प्रकार  भगवती श्री करनी माता ने अपने पुत्र लाखन को आज से करीब 626 वर्ष पूर्व पुनः जीवित किया था। करूणा की सागर श्री करनी माता तो वर्तमान समय में भी इसी तरह अपने भक्तों का उद्धार कर रही हैं लेकिन उसके लिए धौकलसिंहजी राठौड़ चरला जैसी भक्ति भावना की आवश्यकता है।
मां करनी जी ने धौकलसिंहजी चरला के पुत्र दिलीप सिंह जी को 1970 ई में मृत्योपरांत पुनः जीवित कर दिया , 12 मई 2002 ई को भक्त अशोक जी चांडक (निवासी गंगा शहर, बीकानेर) की मृत जन्मी लड़की को पुनः जीवित कर दिया । इसी तरह से करीब 125-150 वर्ष पहले अपने भक्त सुवाप के जवाहर दान जी किनिया के पुत्र को मृत्योपरांत पुनः जीवित कर दिया था।
मां करनी जी ने भगवान श्री कृष्ण की तरह दो बार अपना विराट स्वरूप दिखलाया था एक बार लाखन को जीवनदान के समय धर्मराज को तो दूसरी बार खारोड़ा यात्रा के दौरान शक्ति स्वरूपा बूट माता को। इसी तरह करनी माता जी ने अपने जीवनकाल में तीन बार अपने दिव्य दैविक शक्ति स्वरूप में दर्शन दिये। पहली बार अपने जन्म के समय मां देवल आढ़ी को, दूसरी बार पति देपाजी का भ्रम निवारण हेतु व तीसरी बार बन्ना भक्त को अपना दिव्य दैविक स्वरूप बताया जिससे उसने मां करनी जी के दिव्य स्वरूप की  मूर्ति का निर्माण किया। जो देशनोक मंदिर में शोभायमान है ।भगवान श्रीकृष्ण की तरह से श्री करनी माता को गौपालन व गौ सेवा का कार्य बड़ा प्रिय लगता था । वे गौ रक्षार्थ ही राव कान्हा, कालू पेथड़ व सूजा मोहिल का वध करते हैं ।जब राव कान्हा गायों के प्रति संवेदना शून्य हो गया तो मां करनी जी ने उसे खूब समझाने का प्रयास किया। लेकिन उस हठी शासक राव कान्हा ने जगदम्बा से अपनी मौत ही मांग ली। भगवती श्री करनी माता ने गौ रक्षार्थ शहीद हुए दशरथ मेघवाल दशरथ मेघवाल को अपने निज मंदिर में पूजा का अधिकारी बनाकर ऐसा अद्भुत कार्य किया है जो तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था, रीति- रिवाजों  को तोड़ते हुए भारतीय इतिहास में दुर्लभ ही दृष्टिगत होता है । इस प्रकार उन्होंने व्यक्ति की कर्म प्रधानता का संदेश दिया है ।
मां करनी जी के पास असीम त्याग व मातृभाव तथा शक्ति पुंज का वैभव था। उनके चरित्र में हमें दीन दुः खियों की निः स्वार्थ व स्नेह सेवा दिखाई पड़ती हैं । जब श्री करनी माता के आशीर्वाद से राव रिड़मल जांगलू व मंडोवर का शासक बन गया तो उसने अपने संकल्प के अनुसार माताजी को अपना आधा राज्य भेंट करना चाहा तो उन्होंने उसे मनाकर दिया । इस पर राव रिड़मल ने अधिक आग्रह करके दस गाँव मां करनी जी को भेंट करने चाहे तो भी उन्होंने मना कर दिया। उसके अत्यधिक आग्रह पर उन्होंने दस गाँवों की सीमाओं को मिलाकर उसका एक गांव बनाकर अपनी गायों के चारागाह के रूप में देशनोक गाँव बनाकर लेना स्वीकार किया । मां करनी जी की कर्मस्थली देशनोक में आज भी 10,000 बीघा का ओरण गायों व पशुओं के लिए छोड़ा हुआ हैं । जो करनी माता के त्याग व गौ सेवा का हमें संदेश दे रहा है अर्थात् उनके लिए सत्ता सुख भोगना महत्वपूर्ण नहीं था।
मां करनी जी अपने भक्त राव शेखा भाटी के उद्धार के लिए सवळी बन गये व अणदा खाती की जीवन रक्षा के लिए दुम्भी(दु मुहा सर्प) बन गये । भक्त झगडू शाह की तूफान से समुद्र में डूबती नाव को किनारे लगाने के लिए अपनी भूजा को चमत्कारिक ढंग से बढ़ाकर उसकी जीवनरक्षा करते हैं । मां करनी जी के समय के शासक मारवाड़ के राव चूड़ा, राव रिड़मल, राव जोधा, बीकानेर का राव बीका, कांधल, बीदा, राव लूणकरण, राव जैतसी, जैसलमेर के महारावल देवीदास, महारावल जैतसी व पूगल का शेखा भाटी व हरू भाटी मुख्य थे । ये सभी शासक मां करनी जी के अनन्य उपासक थे जो मां करनी जी के चमत्कारिक चरित्र से फलीभूत हुए । मां करनी जी की सर्वशक्तिमान शक्ति के कारण सुदूर मुलतान खानकाह के मुस्लिम पीर भी उनके प्रति श्रद्धा भाव रखते थे । मुलतान की इस पीर परम्परा द्वारा 1947 ई तक मां करनी जी के  चढ़ाने के लिए खाजरू आते थे। जाट शासक पान्डू गोदारा मां करनी जी का अनन्य भक्त था । विश्नोई जाति का सारंग मां करनी जी का रथ चलाने वाला था। इस सारंग विश्नोई को ही भगवती श्री करनी माता के ज्योतिर्लीन होने का साक्षात् दर्शन करने का अवसर भगवती ने उसे प्रदान किया जिससे उनके पुत्र पुण्यराज भी वंचित हुए । ये सम्पूर्ण विश्नोई जाति के लिए आज के परिपेक्ष्य में गौरव की बात हैं । मां करनी जी के अतिप्रिय सेवक अणदा खाती, सूवा ब्राह्मण, भूरा भंसाली, झगडू शाह(जैन),अमरा चारण,चांदण खिड़िया, मेहा आढ़ा, दशरथ मेघवाल, बन्ना  सुथार आदि थे।जिन्हें  मां करनी जी ने वात्सल्य दिया था और मां करनी जी के आशीर्वाद से पुष्पित व फल्लवित हुए । इस प्रकार मां करनी जी की दृष्टि में कोई राजा व रंक का कोई भेद नहीं था। मां करनी के जीवन चरित्र पर विस्तृत जानकारी के लिए मेरी पुस्तक श्री करणी माता का इतिहास व श्री करणी माता के चमत्कार एक बार जरूर पढ़ें । उक्त दोनों ही पुस्तकें प्रमाणिक सन्दर्भ के आधार  ऐतिहासिक दृष्टि से लिखी गई है ।
~डॉ नरेन्द्र सिंह आढा (झांकर) ”इतिहास व्याख्याता राउमावि घरट सिरोही”

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