!! कहां वे लोग कहां वे बातें !!
सन 1980 के मार्च अप्रैल की बात है जब मेरे पिताश्री श्री बलदेवसिंहजी कविया की पुलिस थाना लक्ष्मणगढ जिला सीकर में हैड कांस्टेबल के पद पर पोस्टिंग थी, उस समय पुलिस के छोटे से पद पर होते हुए भी उन्हे I PC व CRPC ऐक्ट आदि का अच्छा ज्ञान व अपने क्षैत्र की महारथ हासिल होने से थानें के सभी कर्मचारी-अधिकारियों में उनकी पूछ तथा चाहत हमेशा ही रहती थी !!
उक्त घटना के समय थाने के ईंचार्ज श्री चिरंजीलालजी शर्मा श्रीगंगानगर निवासी तथा स्वभाव से भले व आर्थिक स्थिति अत्यन्त सुदृढ तथा घर में जागीरदार थे,पिताजी का बङा सम्मान करते थे और दोनों की अच्छी पटती थी !!
पुलिस थाना लक्ष्मणगढ के क्षेत्राधिकार में उस समय बलारां नाम का ऐक बङा व हाईवै पर स्थित गांव भी पङता था जहां आजकल नया पुलिस थाना बन गया है,उस गांव मे ऐक ब्राह्मण परिवार भी रहता था जिसके नजदीकी गोत्र का कोई भाई बन्धु नहीं हो कर अन्य गौत्रादि के ब्राह्मण बहुत ही संख्या में बसते थे !!
उस ब्राह्मण में भलाई को छोङ कर सभी गुण विद्यमान थे, भांग और गांजां सेवन अहरनिश आवश्यक थे, ब्राह्मणी इसके ठीक विपरीत स्वभाव की सद् ग्रहणी थी अपने अङोस पङोस में व्रतकथा कहाणी आदि सुना कर अमावस्या पुर्णिमा ऐका दशी आदि पर अपने यजमानों के घर से होने वाली आय और दान पुन्य से प्राप्त धन से अपने भगवान को भोग लगा कर अपनी चार संताने जिसमे बङी लङकी 15 वर्ष की व उससे क्रमशः तीन तीन साल छोटे तीन लङकों का अपना व पतिदेव का पालन पोषन करती तथा माँ संन्तोषी व भगवान का भजन करने वाली देवी स्वरूपा नारी थी !!
उक्त घटनाके दिन शुक्रवार का दिन तथा दोपहरके समय ब्राह्मणी पूजादि से निवृत होकर भोजन करने बैठी उसी समय उस दुष्ट पतिदेव का घर पदार्पण हुआ और आते ही उसने उस देवी को अपने स्नान करने के लिए बाल्टी भर कर रखने के लिए आज्ञा आदेश दिया, पत्नी नें अपने भोजन करने तक इन्तजार करने का नम्र निवेदन किया पर वह क्रोध से चिल्लाने लगा तो पत्नि ने दुबारा कहा कि मैं हाथ धो कर अभी डाल देती हूं, दुष्ट को दो बार नटना नागवार गुजरा और अपनी दुष्टता पर आमादा होकर हाथ से कुट्टी काटने के कुटास नामक औजार को उठाकर भरपूर वार पत्नि के सर पर किया जिसने उसके सर को दो भाग में चीर कर उसी समय जीवनलीला समाप्त कर दी, घर में तथा अङोस पङोस में कोहराम मच गया और अफरातफरी की स्थिति बन गई, चारो बच्चे दहाङें मार कर बिलखने लग गये बहुत ही कारूणिक दृश्य बन गया, उसके पङोसियों ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करवादी, लक्ष्मणगढ थाना और फतेहपुर डिप्टिसा तफतीश करने आये, सभी आवश्यक व औपचारिक खानापूर्ति कर शव दाह कर दिया और उस नराधम दुष्ट को जेल की सलाखों में डालकर बंद कर दिया, पुलिस की सभी कागजादि की कार्रवाई करते हुऐ भी मेरे पिताश्री का मन बारबार अति उद्वैलित व दुखी होता रहा !!
चार दिन बाद थाना ईंचार्ज साहब से बात कर उनको साथ लेकर थानेकी जीप द्वारा मेरे पिताजी उस गांव मे जाकर गांव के मौजिज व जिन्दादिल मनुष्यों को ईकठ्ठा कर पूछा कि-
आप सभी बतावो कि इन बच्चों की परवरिश व बालिका के विवाह की जिम्मेवारी कौन लेता है !!
पूरे गांव में से इकठ्ठे हुये मौजिज आदमियों में से किसी ने भी आवाज नहीं निकाली मौन छा गया, एक दूसरे की बगलें झांकने लग गये ! आखिरकार श्रीबलदेवसिंहजी कविया नें ही निशब्दता तोङी और अपनी स्वंय की तरफ से 200 रूपये नकद और ऐक बोरी गेहूं…………( जब गेहूं चार रू प्रति किलो के भाव से थे) अपनी तरफ से वहीं पर बनियां की दुकान से मंगवाकर दिऐ व माननीय ईंचार्ज साहब चिरंजीलाल शर्मा जी ने 1000 रूपये नगद व दो बोरी गेहूं दिये, साथ के सभी सिपाहियों ने भी किसी ने 20 किसी ने 30 इस प्रकार सब ने अपनी सामर्थ्यानुसार दिया,इसको देख कर गांव के ऐक बूढे बुजुर्ग ने कहा कि !!
ये पुलिसवाले तो लेते है आज इसका उलटा हो रहा है अपण गांव वाले भी कुछ नाकुछ दे !!
तब उपस्थित सभी ने अपनी हैसियत के हिसाब से सहयोग राशि व अनाज की बोरियां दी तो वहीं पर 15000 रू नकद व दस बोरी अनाज आ गया ! इसके बाद वहीं की ऐक बङी फर्म वाले अग्रवालजी बनियां को बुलाया उसने दो हजार रूपये की घोषणां की पर गांव वाले व पुलिस भी नहीं मानी वह पाँच हजार रूपये तक आगया !!
उस समय श्रीबलदेवसिंहजी ने सभी गांव वालों को सम्बोधित कर अग्रवालजी को उन चारों बच्चों का पालन पोषन ऐंवं उस लङकी की दो वर्ष बाद शादी करने के लिए कहा तो अग्रवालजी ने सहर्ष इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया !!
वर्ष 1983 को उस लङकी के लिए योग्य वर देखकर उसकी शादी अग्रवाल ने बङी धूमधाम से की तथा उन सभी लङको को अपनी आसाम व मेघालय में स्थित फर्मों पर सैट कर दिया और आराम से उनकी गृहस्थीयां जम गई !!
आज उस बात को सैंतीस वर्ष बीत गये और उस समय के सारे किरदार चले गये मेरे स्वर्गीय पिता श्री बलदेवसिंह कविया अक्सर यह बात मुझे बताया करते थे एंव कुछ घटना मुझे भी याद थी जब मै कक्षा दस का छात्र था !!
अब आज ऐसे बिरले ही किरदार पाये जाते है सब अपनी अपनी राग में मस्त रहना चाहते हैं !!
~राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर