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!! चारण कवेसरा री ह्रदयगत करूणा !!

मध्यकालीन भारतीय इतिहास मे चारण कवेसरां अखूट साहित सिरजियो ने ऐक ऐक सूं बढता रसां मे बरणाव बणावियो,
वीरारस में भाला खांडा खऴकाविया अर तोपांरी रीठ रो चित्राम खांचियो, सिणगार रस री सरिता बहाय दीनी ने शक्ती-भक्ती री धारा में जगती ने झकोऴा दिराय धर्म पथ प्रसस्त करियो अनेकानेक कलम री कोरणी रा ह्रदय छूवता प्रसंगां सूं साहित री सेवा करी, उणीज कङी मे ऐक विधा रो नाम मरसिया काव्य जिणमें भी इणां कवेसरां कठैई कमी नी छोङी, इणमें भी प्यारा प्रिय परिजनां के सहोदरां साथियां औपता प्रशासकां के प्रजापालक राजावां रे साथे ही अठां तक कि पशु पंखेरूवा रा भी मरसिया बणाय, ओपता आखरां री कोरणी रो जङाव इतिहास री पोथियां मे अखी अमर कर दियो !!
ऐहङो ऐक प्रसंग !!
डिंगल रा डकरैल नैरवा गांव रा नवल जी लाऴस रा, गुरू सांईदीन जी आबू रो एक
पाऴतू कूकङो,मालेरण मिनङीरी बखङी में झल मरण मारग रो गामी हुयो, जिणरो गुरूजी ने दुःख सालियो तो शिष्य नवल जी लाऴस,संवेदना सराबोर अनूठी रूङी
उक्तियां रो गीत कैय गुरांसा रो गम कीं कम करियो !!

!!गीत !!
कांयर कूकङा रे कह कांसू कीजे,
काऴ बङो बेकाजा !
जो तोनूं जांणू जावतङो,
(तो) जतन करावत जाझा !!
आधी रात मेह पण आयौ,
झाट पवन पङ झौलां !
दगो कियो मिनङी पुऴ देखे,
बाहङ मीठा बौलां !!
बोल सुणातौ ऊंचौ बैसे,
हरियै रूंख सहेतौ !
तीजै पौहर तणै सुर तीखै,
दोय टहूका दैतौ !!
फूलां फऴां आंबली फूली,
ऐकरसां भल आजै !
गहरां साद दोयेक छौगाऴा,
सैंणां नै संभऴाजै !!

~राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!

By admin

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