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बध-बध मत ना बोल बेलिया,
बोल्यां साच उघड़ जासी।
मरती करती जकी बणी है,
पाछी बात बिगड़ जासी।।

तू गौरो है इणमें गैला,
नहीं किणी रो कीं नौ’रो।
पण दूजां रै रोग पीळियो,
साबित करणो कद सौ’रो।

थनैं घड़ी अर बाड़ बड़ी,
बस इतरो काम विधाता रो ?
इण गत मत अहंकार आणजे,
ओ मारग घर जाता रो।

जाण भलां मत जाण जगत में,
बडाबडी रा डेरूं है।
रंग-रंग री रणचंड्यां अर
भांत भांत रा भेरूं है।

भेद खुलंतां भ्रम भाजैलो,
उण दिन जीभ अकड़ जासी।
मरती करती जकी बणी है,
पाछी बात बिगड़ जासी।।

भाग भरोसै भैंस बगत पर,
पेल पाडिया ले आवै।
गुड़ भोळावै कदे आंगळी,
दांत तळे नीं आ जावै।

हाथां पग बाढणिया हरदम,
छेवट में पछतावैला।
रोय-रोय जो हुया रवाना,
खबर मौत री लावैला।

हाथां पूंछ पकड़ पछताजे,
घोड़ी बिल में बड़ जासी।
मरती करती जकी बणी है,
पाछी बात बिगड़ जासी।।

खाय गबागब बाड़ खेत नैं,
ऊभो अड़वो किम डोलै ?
न्यायाधीश बणायो बांदर,
पछैै बिलायां के बोलै ?

खरपतवार निदाण धान नैं,
काटै आं रो के करल्यां ?
घणमूंघी इज्जत रा टक्का,
बाटै वां रो के करल्यां ?

आंख फोड़कर पीड़ मेटली,
मेटण में मजदारी के ?
मन माया सूं नहीं हट्यो तो
फेर फकीरी धारी के ?

घर में घात करी तो सुणलै,
नेकी सफा निवड़ ज्यासी।
मरती करती जकी बणी है,
पाछी बात बिगड़ जासी।।

~डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”

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