माड़ रो माड़वो गाम जूनो सांसण। नैणसी, हमीर जगमालोत रो दियो लिखै तो उठै रा वासी उणस़ूं ई पुराणो मानै। इणी गांम में सोढैजी संढायच रै दो बेटा – अखोजी अर भलजी। भलजी स़ंढायच रै घरै मा वीरां री कूख सूं लोक पूज्य चारण देवी देवलजी रो जलम होयो –
भलिया थारा भाग, देवल सरखी दीकरी।
समदां लग सौभाग, परवरियो सारी प्रिथी।।
देवलजीरी शादी ऊमरकोट रै गांम खारोड़ा रा देथा बापनजी साथै होई। यूं तो देवलजी रा घणा दिव्य चमत्कार अर लोकोपकारी काम चावा है, पण कमती लोग जाणता होसी कै आपां आज जिण दलित विमर्श अर दलितोत्थान री बातां करां वै बातां पंद्रहवीं सदी में मा देवल चरितार्थ करर बताई।
बात यूं है कै भलजी रै देवलजी एकोएक डीकरी। परणाय सासरै मेली। डोकरो-डोकरी बूढा सो उणां री सेवा एक बेघड़ जाति रो मेघवाल़ करै। दिनां लागां पैला देवलजी री मा सुरग पूगा अर थोड़ा दिनां पछै भलजी ई नीं रैया। देवलजी मोकाण करावण पीहर आया। पाछा खारोड़ै जावण स़ू पैला आपरै बडै बाप रै बेटां नैं बुलाय कैयो कै “सुणो भायां म्है म्हारै बाप री पांती मांय सूं तीन बंट थांनै अर एक इण बेघड़ नैं दियो।”
भायां कैयो “आ बात किंयां हो सकै बाईजी ! ओ मेघवाल़ रो छोकरो जमी में कांई मांगै ? काकै रै डीकरा नीं तो कांई ? म्है भलजी रा ई बेटा ! कारज म्हां कियो तो खेत म्हारा।”
देवलजी कैयो “थे कैवो सो सोल़ै आना सही पण म्है इणनैं भाई सूं बधर मानूं। सो म्है जमी दे चूकी। ओ आज सूं थांरो वंटायत! इणनैं म्हारो भाई ई मानजो।”
आखिर भायां नैं ई आ बात मानणी पड़ी। जागीरां मर्ज होई जद माड़वा रै बेघड़ मेघवाल़ां नैं चौथी पांती रो मुआवजो मिलियो। इण बात रो राजकीय रिकार्ड ई साखीधर है तो डिंगल़ काव्य ई साखीधर है।
डॉ शक्तिदानजी कविया रै सबदां में –
सेवक बेघड़ साखरो, आपी धरा अलेख।
मेघवाल़ कुल़ मावजो, पायो सांप्रत पेख।।
मेघवाल़ां महै बेघड़ा मुणीजै
थिरु हद सुणीजै दास थापी।
बापरा सेवागर किया तैं वंटायत
आपरां समोवड़ धरा आपी।।
~गिरधरदान रतनू
जिण बगत में इण भांत रो कदम उठावणो किणी पण जोखम सूं कम नीं हो पण देवलजी तो साक्षात जगत जणणी हा। जात पांत सूं ऊपर। प्राणी मात्र रो कल्याण करण वाल़ी। ओ कदम किणी पण क्रांतिकारी कदम सूं एक कदम धकलो हो। शायद ई स्वतंत्र भारत रै इतिहास में माड़वा टाल़ किणी दूजी जागा मेघवाल़ां नै मुआवजो मिलियो होवै? वास्तव में देवलजी, दलितोत्थान री दिशा में काल़जयी काम करण वाल़ी एकाएक ही। इणी खातर इणां नैं सर्व समाज री देवी रै रूप में धाट अर माड़ में लोक, लोक देवी रै रूप में पूजै है।
~गिरधरदान रतनू दासोड़ी