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हमारी देव संस्कृति मत मतानुसार “नवरात्रि पर्व” दोनों चैत्र एवं आसोज नवरात्रि सिद्धि साधना, देव आराधना, मनोवांछित फल दात्रा, इष्टयात्रा एवं शत्रुनाश, रोगमुक्ति तथा अनेक सिद्धियां देने वाले अमोघ पर्व हैं। विशेष कर हम चारण तो मैया की अथाह शक्ति जो हमें माँ भवानी ने बगशीश की है उसके कायल हैं…
 नतमस्तक हो दिव्यशक्ति को पुनः पाने के लिये शक्ति की आराधना करते आये हैं..अपने शब्दों में मैया के गुणगान कर माँ का आशीर्वाद पाते हैं.
 यह सिलसिला न केवल चारणों मे है बल्कि तमाम वर्ग के लोग इन दिनों शक्ति आराधना करते हैं। मैंने स्वयं लोगों से सुना है। कर्जमुक्त होना असाध्य रोगों से शक्ति मंत्रों द्वारा रोगमुक्ति पाना, गृहक्लेश से छुटकारा पाना आदि भयमुक्त हो सुखी जीवन पाया है। यह मैंनें भी अपने जीवन मे क्ई बार अनुभव किया है। स्वयं सिद्ध बात मैया के चमत्कार की करामात का मुझे विश्वास ही नहीं बल्कि एक रामबाण छड़ी मिली, अंधकार के बादल छंटते गये, लक्ष्य प्रत्यक्ष दिखाई देने लगे, यह सब उस महान श्रष्ठत्म शक्ति का अद्भुत वरदान ही मिला, सारा श्रेय मैया को जाता है।
माँ…कल्याणमयै, अमृतमयै, आनंदमयै, स्नेहमयै, करुणामयै एवं दयामयै है, उसे दया स्वल्प क्षण मे आती है व सहज ही बैड़ा पार कर देती है…बस हम उसे सच्चे मन से ध्यायें…पुकारें…उसकी शरण चले जायें।
सर्वा बाधा विनिर्मुक्तो, 
धन धान्य सुतान्वित। 
मनुष्यो मत प्रसादेन
भविष्यति न संश्य।।
अतः मेरे निम्न शब्दों मे मैया को करजोड़ वंदन
विद्ध विद्ध भान्ति विविधरुपा, तेरा आदशक्ति आवाहनम्।
गजबदन संग मैया गौरी, धर मम् हृदय कोमल चरण।।
 
शैलपुत्री सिरमौड़ प्रथमा, हिंगोलराय तुझको नमन।
दिव्यज्योति दर्शाय अंम्बे, गुलजार कर चारण चमन।।
 
द्वित्या बृह्मचारिणी मावड़, आवड़ तूं अशरण शरण।
हाकड़ो पीवण हिंगलाज रूपे, दुख दूर कर,दारिद्र दमन।।
 
चन्द्रघन्टेती चालक, चामुंड, त्रृतियरूप त्रिलोक वदन।
चालक असुरवध चोट कीनो, भीड़ कट माँ भीड़भंजन।।
 
कुशमांडेति मेहाई करनल, तनोट तेमड़,लोबड़ लम्बन।
चतुर्थरूप चरणन धरूं, करूं सर्व तोहे समर्पण।।
 
आशापुरा माँ स्कन्धमाते, पंचम्म् पूर्ण पृण।
नवघण उबारण नामरुपा, दिजीयो मोहे शरण।।
 
शष्ठरुपे सिंघवाहिनि, कात्यायनी कृपा करण।
बाहुबली माँ बहुचरी, नतमस्तक मैया तोहे नमने।।
 
सप्तम्म् तू आई सोनल, कालरात्रि कलियुग तरण।
मढ़ड़े बिराजत मात् अम्बे, खारोड़े देवल खरण ।।
 
महागौरी मंडलीक मारण, नागल अष्टरुपा धरण।
वलाँ पुरण तूहि वरवड़, अटल परचा आपवण ।।
 
नवम्म् रवेची सिद्धिदात्रे चंडी, अनेकरुपा अवतरण।
अंतहकरण शुद्ध आत्मा, स्वीकार हो सेवक शरण।।
 
असीम कृपा “आशू” परे बरसत रहे जबलग जीवन।
करदो क्षमा सह भूल करनल, तेरे ही निर्झरन हम।।
 
विद्ध विद्ध भान्ति विविद्धरुपा, आद शक्ति आवाहनम्….
गजबदन संग मैया गौरी, धर मम् हृदय कोमल चरण।।
यह नवरात्रा, इष्ट यात्रा, सिद्धिदात्रा सबके लिये।
होहिं देवी कृपा, कर मन अंत्रजपा, तन को तपा अत्मपुष्प अर्पित किये।।
मिटहिं पाप भारे, रोग टारे, विघ्न सारे जप किये।

मेहाई महर करहि, दूख हरहि, भंडार भरहीं “श्रीरुपा” सबके लिये।।

होहिं प्रखर बुद्धि, नव निद्धि, अष्ट सिद्धि तप किये।
देहि दिव्यशक्ति, अटल भक्ति, मैया लाज रखती धर हृदय हिये।।

स्वीकार होहिं श्रद्धा रखले, शत्रु भवानी सर्व भख ले,
युं चामुंड पुरसे स्वाद चखले। नियम धारण नित किये।।

अज्ञान, अशक्ति,अभाव मिटहिं, पाप कोटि कष्ट कटहिं,
जो हृदय “आशू” राम रटहिं, चिंतन शुद्ध चित किये।।

~आशूदान मेहडू़ जयपुर

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