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*श्री करणी शतक* 
115 दूहों की दूहावली 
रचित रणजीत सिंह चारण “रणदेव” मुण्डकोशियां
*गणपति तोरे गुण गऊं, पहला लागू पाय।*
*महेश पुत मंगल करो ,,साथे करों सहाय।।1।।* 

*शारदा बणों सारथी, गाऊं तौरे गान।*
*शक्ति दोहा वरण करूं, सदबुद दो संज्ञान।।2।।*
 *शक्ति दोहा शतक* 
सुख देवण निज सेवगां, धरया धरती धाय।
कलह: मिटावण करनला,,सगती माँ सुरराय।।१।।

मेहें जा हिंगलाज में, कियों तपन रो काज।
सुण गल्ल आ स्वरूपी,आई माँ हिंगलाज।।२।।

चवदा सौ चौमालिसा, कुल चारण करणाय।
शुक्र आसोज सप्तमी,,आश्विनी शुक्लाय।।३।।

मेहे प्रकटी मावडी,सेवग सुण अरदास।
गढवीं वाला गांव में,,आशा पूर्णी आस।।४।।

कलजुग माहीं कारणी,, माँ देवल उदराय।
ग्राम स्वाप मेहे घरा,,करणी माँ करणाय।।५।।

राजपूती अखू रही, दाई बणकर दोय।
जन्मी अंबा जौगणी,,सगत परम हित सोय।।६।।

दिव्य चतुर्भुज दर्शना, दें आढी ने आप।
रखण मान निज मेह रों,सकल मेटण संताप।।७।।

आ रिधु बाईं आंगणे, बोल दरषण बताय।
देखियों परचों देवलां,,सागे सा सुरराय।।८।।

भुआ टोसो के भरयों,बांको हाथ बणाय।
काढत जूंआ सह कियों,,काबाली करणाय।।९।।

पाँच बहन पहल जलमी, सिधु लाला फूलाय।
केहर गेंद फिर करनला,,सगती आ सुरराय।। १०।।

सांप खेत म्ह सेंठियो, मेहोजी पग माय।
कर संजीवण कारणी,,दैव्यगुणां दिखलाय।।११।।

रिधु बाई देख करनी , नाम करणी बुलाय।
तारे सब आ तारणी,मेटे पाप ममाय।।१२।।

माता लेय छाबड म्हें, पिता लिए परभात ।
दो रोटी एकक दही,जौगण खैता जात।।१३।।

राह आ पुगल रावजी, जद ले भातो जात।
रोटी मांगे सुगन री ,भोज करावें मात।।१४।।

किन्ही किरपा करनला,,भातौं पेट भराय।
मनसूं सोचें मानवी, चमत्कार करणाय।।१५।।

राव बंधाय राखडी, पकडे चरणा पाय।
चिरायु मांगे आसरों,,शैखों लें शरणाय।।१६।।

पकडे पावां पुगल्यों, बणे धरम रो भ्रात।
अबखी बैलां आवकर,,मेटज्यों दु:ख मात।।१७।।

हाथां बांधी झोपडी, करण भक्ति करणाय।
अराध्य करणी आवडा,सगती आ सुरराय।।१८।।

चिन्ता मेहे बढ चढी, सगण चिंता सवाय ।
घुम्यों जद गांव गांवां,,मिले नहीं वर माय।।१९।।

मिल्यों नह वर मेहजी , जोगै वर जद जाय।
होवे दु:खी ओ हिवडों,,मिलें न कोई माय।।२०।।

जद मेहोजी थक गयों , कृपा करें करणाय।
तभीं बतावें तारणी,, दु:खी होत जद दुणाय।।२१।।

स्वमुख पिता सूं कयों, करों न चिंता कोय।
सगपण करों साठीकें,,देपव साथे दोय।।२२।

केलव घर जाय करके , मेहे विनती सार।
अमल गलवें अंतस री,,सगपण लें संसार।।२३।।

बारात आय बिठव री, , मेहोजी घर माय।
मित बण देपव मानवी ,करणी जी किनियाय।।२४।।

साथे सरस ह डायजों , बिठव सह बंधवाव।
बरतन गेणों चौगुणों,,किनियां कृपा कहाव।।२५।।

मनवारां बढ-चढ मनें, करण पान करतार।
सगती जावें सासरें,,नमें अश्रु नरनार।।२६।।

समय आ देपव साथें, जौगण करणी जात।
आसूं करनला आख्यां,,सब देखें शरणात।।२७।।

आसूं मेहे आवियां, धर-धर बहतां धार।
जद जन्मी खुशियां जदी,,अब बह अश्रु अपार।। २८।।

माता देवल मायती, भर करनल ने बाथ।
कालजों छोडण न कहें,,हिय ना छोडें हाथ।। २९।।

जाल म विश्राम जोयें, करनल आ किनियाण।
बैठी रथ में बोलकें,, दें नाडा री आण।।३०।।

जावें देखण लोग जों, नाडों भर सूं नीर।
भरियों निज माँ भाव सूं,,प्यास लगी जद पीर।। ३१।।

ग्लास जल देपव लें ग्यों, सगती सिंह सजाय।
दरषण देपव देयके,,दिव्य लीला दशाय।।३२।।

सुथार ढाणी शामकों,पहुचन रातरि होय।
सुथार बेटी सोवगी,,सट उठा जी सजोय।।३३।।

बरात आंगण बधावें, सास करणी सुझाय।
बैठण ध्यान सूं बिंदणी,,विच्छु अटे घणाय।।३४।।

करणी अटसूं कारणी , मेट साठिका मोय ।
करणी बोल फिर कह्यों,विच्छु अठे ना कोय।।३५।।

स्वेरै सुहागथाल में, स्वागण आइ न सात।
कहकर मुख सूं करनला,,भेट्या मंदा घात।।३६।।

कह निज मुख सूं करणी,स्वागण रहे न सात।
कदी न नारियां बैठसी,,मांडी किस्मत मात।।३७।।

सकाज बता सुथारणी,चरू किनारों नाप ।
रूखाल दुध राखज्यों,, उफण न दिज्यों आप।।३८।।

चुल्हें पे रख्यों चरूं, आव लगें ऊफाण।
कह निज मुख सूं करनला,, ठहरज ऊंही ठाण।।३९।।

दुध चरूं भरयों देखके, अणदा बोली आप।
कई पानी भरयों के,, दुध हुयों नही भाप।।४०।।

कह बोले माँ करनला, अलग जमा इण आज।
घी अणदा लेंवे जदी, रूके नह घी काज।।४१।।

देखत चमत्कार तदी,मांग्यों पुत वरदान।
करजों रक्षा कारणी,, अबकी वेलां आन।।४२।।

कहयों फिर जद करनला, आवे अबकी अप्प।
पछ करणी पुकारज्यों,,जद आऊंगी जप्प।।४३।।

सुरह ऊबी हैं सारी, तिसी मुखं लिए तोय।
करणी जा बोल कहयों,, पाणी दिओं पिलोय।।४४।

बोल ऊंधा मुख वचना, आपणों कुटुम्ब आज।
पाणी पीलावण कयो ,, गण ऊल्टाही गाज।।४५।।

कहयों गण करनला नें, (की) नीर कुप में नांय।
पैलं चाह जो पावणीं,, (तो) कूप स्वयं रो खुदाय।।४६।।

करणी देपव सूं कयों, अठसु रूका न अब्ब।
बास ठौड दूज बसणैं,, साथे चालौं सब्ब।।४७।।

अरूबाब अर सुरभी,चल साथ लें चलाय।
साठीका अब छोड़सी,,बास दूजों बसाय।।४८।।

रखी इच्छा ठहरण री, करनल जी किनियाण।
बंधालपुरा ग्राम में,,देणी थी जो आण।। ४९।।, 

कयों जल पीलावण को ,तो कुओं पाणी नांय।
करनल जी तदी कहयों, ज्यों को ज्यों हो जाय।।५०।।

नीर सागर अठे नहीं, धन री नाहीं धाप।
कह्यों इज वचन कडवों,,तो शक्ति दियों शाप।।५१।।

जगदम्ब आगे बढया, पहूँच जांगलपूर ।
दु:खी रिडमलो दानवी,, करनला कियो दूर।। ५२।।

कानों जद इणकार की, (तो) बोल्यों रिडमल बोल।
आप पिलाओं अंबका,, देऊं नाडौं खोल।।५३।।

गायां पी आगी डगी, देख्यों रिडमल नीर।
निठ्यों न खेल में नहीं,, साग चलाई सीर।।५४।।

कयों रिडमल ने करणी, ठहरज दो दिन ठाम।
रिडमल म्हें तुझ राज यों, थन्नैं देस्यूं थाम।।५५।।

मरग्यों सत्तों दो दिन में, रेग्यों रिडमल राज।
कहयों सांची करनला,,करस्यूं थारों काज।।५६।।

जांगलू सूं पूर्व दिशा ,(जा) माँ पांच कोष दूर।
ठाम्यों गोल ठाम वठे, (जठे) हरी घास भरपूर।।५७।।

पावन धरा पिछाणके, घणी देखकर घास।
मात सोचके मनडैं,, बसा दियों ओ बास।।५८।।

दहि मथन सुखी खेंजडी, री तौडी माँ डाल।
होत वृछ उण पल हरियों,,रखण अमर रिछपाल।।५९।।

कानड ने चुगली करी, जट-पट चुगला जान।
चारैं गायां चारणी,,घौंडा बीहड आण।।६०।।

भेंजे कानों पोलियां, रोकण बीहड घास।
आवे बीजौं अरजुनों,, परतख करणी पास।।६१।।

बोले करनल बोलियां, आडा – टेडा आय।
करनल आखी कालकी,,बणा गीद्दड भगाय।।६२।।

उलट कान जद ढिग गया, कानड ना पहचाण।
बोल्या म अर्जन बीजां,,थाका पाल्या थाण।।६३।।

कानो देख कुपित हुयों, हुय ताकत सूं ह्रास।
साम्हेंज बोल सवायों,,घडी मौत बल ग्रास।।६४।।

कानो ज बोले करणी, अटसुं चारणी जांह।
आ धरती म्हारी अटें,,मैं हूं अटकों शांह।।६५।।

करनल समझा कान नें, चारण स्मध चंचूल।
गायां चरावुं मैं अटे,,(थारी) धरती करूं न धूल।।६६।।

कनों कयों वीरोटणी,  हमें बतां तो हाथ।
जादू थारा न चलसी,,संग म लसकर साथ।।६७।।

मानैं नह ओं मुरख्यों, आनिती करें आय।
करनल कह करंड रखजा,,हथसूं गाडैं मांय।।६८।।

करंड उठाण जट कयों,(कानों) प्हलवानां रैं पाण।
ओं उठासी म्हार जणा,,पल में हाथा पाण।।६९।।

जमीं सूं हुय न जवानां, करंड ऊपर जोर।
करणी तो कारीघरा, गरव मिटायों गौर।। ७०।।

कनों करंड उठावणै, आयौं जद घट मान।
हिलां न पायों भर रती,, सगती राखे शान।।७१।।

बोल्यों चिढकर कानडों, मतीकर विरोटाण।
तु होत सगती बढी तों,,(देखे) सुला मौत के पाण।।७२।।

मौत बतादें मानसूं,,   सगती इण संसार।
बाकी हौसि विरोटणी,,आयी लेवण उधार।।७३।।

बोले काईं बोल ओ ,  बन्धव  बारम्बार ।
मोलकर नहीं मौत को,,(मैं)लिखूं कर्म उपहार।।७४।।

मनें अभी दो मौतकों, इण पल ओ उपहार।
मैं देखूं मौत म्हारी,, परमात्मा सूं पार।।७५।।

कान ने जद जोरी कीं, त्रिशूल सू वण कार।
कहयों निज मुख करनला,,इण ने कर तू पार।।७६।।

आसी बण जद मौत आ, उलांगैला लकीर।
उलांगण जदी आवियों,,धरा कियों माँ धीर।।७७।।

सीर आयो सज हथ्थल, शक्ति कियो संहार।
तोड्यों घमंड दुष्ट रों,,मन की मेट मुरार।।७८।।

उणपल दौडी आवया , कानड री जो मांय।
किधी अरज करनला सूं,,एकर अम्ब उठाय।।७९।।

साथ अरज कान्ह राणी, मत करों कोप मांय।
करों सजीवण कान्ह नें,,थाकों जस सब गाय।।८०।।

दाढाली उंही घडी, कियो सजीवण कान।
जाय न पाछो जांगलू,,जब ही रहसी जान।।८१।।

ज पीछे देखियों जदी, जावें पाछी जान।
कान्हों जावत पूर्व में,सगत बढावें शान।।८२।।

सत देखण फिर शक्ति रों, गयों इक मील दूर।
लांघ खेत देखण लगो,,शक्ति करत हैं चूर।।८३।।

हुय ढेर उहीं ठाम हैं, थडा स्थान थपवाय।
देशनोक  शुभ नाम दे,,बाजू नगर बसाय।।८४।।

वंश बढावण आवियां,चंचल चार सपूत।
जन्म लिय दूजी जननी,,क्हाया कर्नल पूत।।८५।।

करण पान भक्ति करणी,मंदर बणा म्हमाय।
बिन लोग बिन साधन सूं,,रचायी कृपा राय।।८६।।

गजब बणायों  गोलियो, छत पर जाल छजाय।
करण साधना करनला,, मया रहे इण मांय।।८७।।

ओरला रे चोतरफा ,बारह कोष बणाय।
चर सके गांया सगली,,बंध ओरण बसाय।।८८।।

सुत आय च्यारों सगलैं, परतख करणी पास।
कर सेवा एक महिनें,,भजैं मनहुं विश्वास ।।८९।।

पहला यो पुत पाटवी, जौधो पुत ह बीकास।
काका कांधल संग को , घर सूं करें निकास।।९०।।

बीकों कांधल बीढवा, जौगें मंढ्लों जाय।
आ करणी रख आसलें,,सगती गल्ल सुणाय।।९१।।

दियों वचन माँ ढोकरी, बसाणों बीकानेर ।
जाट राज सोले जिनै,,भुजबल सूं लों घैर।।९२।।

हौसी जीत तुम्हारी,आपें माँ आशीश।
नमा सिर काक भतीजा,,शरणा माहीं शीश।।९३।।

सगती करें सहायता, जीतण वापस आय ।
बीकानेर बीसहथी ,,स्वयं हाथ सूं बसाय।।९४।।

चवदस आवे चाँदनी ,भगत दरस निज भाव।
सकल आवैं शरणार्थी,साथे पूगल राव।।९५।।

लेकर कटक लूटण नें, महिप गयों मुलतान ।
जवना दिय जड शैखनै ,, साख बिगाड़ैं शान।।९६।।

करनला जा अरज करीं, पत्नी पैदल पांव।
भाई फंस्यो भीडमें,, लोवड वाली लाव।।९७।।

शक्ति धररूप संवली, लावें शेखों राव।
मनावें बात भंजणी,, बीक कंवरी ब्यांव।।९८।।

पोती कर्नल पुकार्यों, आयी बाधा आज।
कालू पैथड डाकिया,, गायां पकडें गाज।।९९।।

सगती बणकर सांवली, आयी बैग अपार।
दौडी लारें पकड के ,,चोंच सूं देय फार।।१००।।

गाया गवाला लारैं, कालू बण्यों काल।
दाढाली देंवगति दें,, रखें शरण रिछपाल।।१०१।।

कोलायत जा कपिलदे ,,डूब गयों तालाब।
लें आयगी लाखण नें,, जट धर्म दें जवाब।।१०२।।

जगदंब क्यों जमरांणे, सांच धर्म ने साग।
अब म्हारा नह आवसी,, भगत सगलाय भाग।।१०३।।

कयों सगला खेलेलां, म्हारे मढ रैं माय।
काबा सूं मनु अर उल्टों ,,म्हें ही कर स्यूं न्याय।।१०४।।

दूहे करणी दूधगौ, (जद) झगडू डूबे नाव ।
देय हैलों जल मयनैं ,,(तद)बानिये नैं बचाव।।१०५।।

पीठ अदीठक हुयग्यों, जैसल पत जैसांण ।
सुणी गल्ल आप सगती,, निज मिटायों निशाण।।१०६।।

चाह करनल मूर्त चित्र, बोल्या जैसल भूप ।
कर बता कारीगर जो,,मोय मढ सकें रूप।।१०७।।

कयों जैसल करनल माँ, कारीगो कुशल एक।
अब तो हुयग्यों अंधों,,(बाकी) उणसूं बढों न नैक।।१०८।।

जट बुलावें जगदंबा, बताय सारी बात।
देंय आख्या सुथार नें,, दिव्य दरषण दिखात।।१०९।।

साथ लें थने सौवणों, तदी मुरत हों त्यार।
मुरत प्रभातैं मिलैला,, देशाणे मढ द्वार।।११०।।

जैसल सूं आ जौगणी, पोच्या धनैरी पास।
गडियाला इण गांव में,, ठहरण लें आवास।।१११।।

पनरे सौं पिच्यानवैं, शक्ति छोड जगमाल।
नवम चैत गुरवार नैं,,ज्योत चला जगपाल।।११२।।

मढ प्यारों बसायों माँ, देशाणे रो धाम।
करजों किरपा कोड की,,पुनि-पुनि करूं प्रणाम।।११३।।

सुण गल्ल इण सेवक री, शब्द लिखा में आज।
सदा राखज्यों सगती,,रणजीता री लाज।।११४।।

केवण विनती कालजों, मेहाई सुण मात।
चारण ह तोरे चरणा,,रणजीतौं दिन रात।।११५।।
*छप्पय*
करनल सगती काज, पुरण करणैं पधारियां। 
भगत मेह री भक्ति, आवड सेवणीं आवियाँ,
कियों भगत रो काज, आ खिडिया रे घराईं। 
हो बैग अपार हैं , धर्यों जद जन्म धराई।। 
सकल दु:खा रों दु:ख हर सगती, कारीगर सूं मुरत बणासी। 
माँ पनरे सों पिच्यान्वैं में, ज्योत में क्षमा जावसी।।
रणजीत सिंह रणदेव चारण
गांव – मुण्डकोशियां, राजसमन्द 
व्हाटसप न. – 7300174927

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