(दूहे)
सक्रांत आय भायलों, दिवस स्थिति ने फेर ।
दिन बडो रात छोटडी ‘,, लाई खुशिया घेर ।। 1।।
धूप पडे नहीं धार की , ठंड पडें हैं ठाठ ।
उत्तरायण म छावती ,,जपे तरणि को पाठ।। 2।।
ठंड पडती कडाट की, पर आती ज स्क्रांति।
भूलते ठंड भायडा,, सब मैटत है शांति।। 3।।
पतंगा बाजी करता, घर के ऊपर दौड ।
खेल-खेल में भूलता ,,घर ने समझे रोड ।। 4।।
गूली डंडा गांव का, शहरां माय क्रिकेट।
खेल खेलें स जोर का,, भूख लगे ना पेट।।5।।
इ- दिन लायों गंगा भगु , भीष्म देह हुय त्याग । ।
ओं पवित्र दिवस आपणों,, रश्म कि गावा राग ।। 6।।
चारों की लगा कतार , पशुओं ने स खिलाय ।
दान करके इ दिवस ने ,, रणजी सब हुलसाय।। 7।।
रणदेव भी खेल रमें , कविताओं मे कार ।
खेलों में आ सर्व हैं ,, सब में भरती सार ।। 8।।
संक्रांति कि बधाई सा, शुभकामना करोड़ । ।
रणजी हाथ सकल ने,, रामा श्यामा जोड।। 9।।
रणजीत सिंह चारण “रणदेव”
गांव – मूण्डकोशियाँ, राजसमंद
व्हाटसप न. – 7300174927
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