दोहें जगदम्बा के
आप पधारों आवडा, दुजों लिए अवतार।
गान अब तोरे गाऊं,,करज्यों न इणकार।।१।।
गान अब तोरे गाऊं,,करज्यों न इणकार।।१।।
शक्ति हिगलाज सरूपा, सेवग विनय सवार।
आज ही मात आवजों,,करज्यों न इणकार।। २।।
सातूं बहना साथ में, पधारजों इण पार।
दर्शन दिज्यों दाढाली,,करज्यों न इणकार।।३।।
दर्शन दिज्यों दाढाली,,करज्यों न इणकार।।३।।
जगदंब बाट आपकी, जोऊं उर जयकार।
मन निरालों मोगलां ,,करज्यों न इणकार।। ४।।
मन निरालों मोगलां ,,करज्यों न इणकार।। ४।।
प्रकटी मात प्रकारणी, प्रथम आओं पधार।
मैं चारण पुत्र आपरों,,करज्यों न इणकार।।५।।
मैं चारण पुत्र आपरों,,करज्यों न इणकार।।५।।
जौगण तूं हाथ जोडूं, किरथ मोरी उबार।
सोलह चौगुणी जौगणी,,करज्यों न इणकार।।६।।
सोलह चौगुणी जौगणी,,करज्यों न इणकार।।६।।
कोड मेट माँ करनला, सबुद्धि दिज्यों सार।
हाथ जोड विनती हथूं,,करज्यों न इणकार।।७।।
हाथ जोड विनती हथूं,,करज्यों न इणकार।।७।।
भगत बाद भक्ति पैला, भक्ति मों दें उबार।
करूं भक्ति माँ कालका,करज्यों न इणकार।।८।।
करूं भक्ति माँ कालका,करज्यों न इणकार।।८।।
चण्डी काली चामंडी ,, तेज मों कलम तार।
ज्यों मैं तूं लिखूं विनती,,करज्यों न इणकार।।९।।
ज्यों मैं तूं लिखूं विनती,,करज्यों न इणकार।।९।।
डाढाली माँ डोकरी, खाऊं न कोंय खार।
मन दिज्यों वात्सल्य माँ ,करज्यों न इणकार।।१०।।
मन दिज्यों वात्सल्य माँ ,करज्यों न इणकार।।१०।।
शारदा माता साथ में, गहरों दिज्यों सार।
लक्ष्मीजी विनती लिखूं ,,करज्यों न इणकार।।११।।
लक्ष्मीजी विनती लिखूं ,,करज्यों न इणकार।।११।।
सेवग विनती सारणी, आप पधारों द्वार।
हैं मंगलकारणी अब ,,करज्यों न इणकार।।१२।।
हैं मंगलकारणी अब ,,करज्यों न इणकार।।१२।।
सातम हैं शुकलात री, आवड जावें द्वार।
नवमी मय घर आवडा,,करज्यों न इणकार।।१३।।
नवमी मय घर आवडा,,करज्यों न इणकार।।१३।।
देवी दातार हों देवणी, दर्शन दों मय द्वार।
मनडे इच्छा मावडी,,करज्यों न इणकार।।१४।।
मनडे इच्छा मावडी,,करज्यों न इणकार।।१४।।
सगती माता सोनलां,पूरण सुणों पुकार।
चिंता हर करों चाँदणी,,करज्यों न इणकार।।१५।।
चिंता हर करों चाँदणी,,करज्यों न इणकार।।१५।।
कंकु माता सकारणी,सकल करों साकार।
जननी मुराद थे जणौं,,करज्यों न इणकार।।१६।।
जननी मुराद थे जणौं,,करज्यों न इणकार।।१६।।
हरणी ह्रदय हरदम हरैं,करणी – करणी कार।
आशा ओपत आपकी,सगती सुखमय सार।।१७।।
आशा ओपत आपकी,सगती सुखमय सार।।१७।।
हैं जगदंब नमन करूं, करूं न कोई रोर ।
भक्ति दों मन में भंजणी,,दिज्यों ना दुख दौर।।१८।।
भक्ति दों मन में भंजणी,,दिज्यों ना दुख दौर।।१८।।
*रणजीत सिंह रणदेव चारण*
मुण्डकोशियां, राजसमन्द
*7300174927*