“भलाई”पर दोहे रणजीत सिंह रणदेव चारण रचित
भलाई पहलां तुम भजों, रठों ना दुजी राड।
कुछ तो मनु भली कर लें,, पडें न ऊपर पहाड।। १।।
कुछ तो मनु भली कर लें,, पडें न ऊपर पहाड।। १।।
भलाई जग में घणी भली, बुरी करों न बात।
बुराई से कुछ मिलें नहीं,, भलाई टाले घात ।। २ ।।
बुराई से कुछ मिलें नहीं,, भलाई टाले घात ।। २ ।।
जीवन दियों ह जौगणी,, करजें तु करामात ।
जात – पात की रीत नीं,, जों चाहें हों जात।। ३।।
जात – पात की रीत नीं,, जों चाहें हों जात।। ३।।
जैं करें मनु भलाई जों, रहे उण सदा हाथ।
ज्योंं का फल ज्योंं मिलें,, संग रहे सदा हाथ ।। ४।।
ज्योंं का फल ज्योंं मिलें,, संग रहे सदा हाथ ।। ४।।
बुरा करें जो मानवी, मिलेगी कहीं मात ।
कर दिया भला किसी का,,दु:ख ना आवें दांत।। ५।।
कर दिया भला किसी का,,दु:ख ना आवें दांत।। ५।।
रणजीत सिंह रणदेव चारण
मुण्डकोशियां, राजसमनंद
7300174927