Sat. Apr 19th, 2025

प्रिय भँवर….
वदुमाँ (पबु माँ) का पीहर पाबुसर गाँव मे, जन्म नेतोजी देथा देवीदास के घर हुआ था। जन्म कब हुआ यह जानकारी इस लिए नहीं कि उस वक्त गाँवों मे जन्मपत्रि आदि का रिवाज न के बराबर था, कहीं भी बेटा बेटी के जन्माक्षर नहीं होते थे केवल माता पिता जैसा याद रखते थे वो ही मान्य होता था। प्राइमरी सिंन्धी पाठशालाओं मे अगर कोई बच्चा पढने जाता था तो संवत, महीना, वार एवं पक्ष जो माता पिता बताते थे उसी अनुसार अंग्रेजी तारीख तुक्का टेक लिखी जाती थी। स्वयं मेरी जन्मतिथि भी मेरी माता जी की यादाश्त आधारित लिखी गयी व डबल प्रोमोशन यानि एक वर्ष मे दो कक्षा उतीर्ण करना था, तब तारीख मे फेरफार कर दो वर्ष बड़ा बताने के लिए आगे बढाई गई थी अतः जन्मक्षर पबु माँ का ठिक से कह पाना संभव नहीं।

अब वदु माँ जो पाबुसर मैं जन्मी वह पबु माँ के नाम से प्रसिद्ध हुई। जैसा के उपर वर्णित मैने जो खरी जानकारी आपके लिए मुय्सर करवाई है वह सटीक है। पबु माँ नेतोजी देथा देवीदास की पुत्री थी उनका विवाह महियों की ढाणी जो राठी गाँव से मात्र एक किलोमीटर दूरी पर था के महिया चारण शाखा के मानाजी महिया के साथ हुआ था, संतान मे एक पुत्री ही थी पुत्र नहीं था। पुत्री की शादी गाँव भीमावेरी निवासी रुपाजी तोला देथा के साथ हुई। पुत्री के दो पुत्र जीवोजी व भलुजी थे जो शायद 1971 भारत पाक युद्ध समय भारत आ गये थे वसावट कहां है मालूम नहीं।

अब पबु माँ के जीवन का विवरण निम्न प्रकार है-
पबुमाँ श्याम रंग की सुदृढ़ शरीर वाली और जैसे भगवती श्री करणी जी के डाढ़ी थी वैसी ही पबुमाँ के दाढी थी, हाथ मे मजबूत लठ्ठ, काली लोवड़ी धारण करती थी। पबुमाँ वच्चन सिद्ध देवी स्वरूप थी। अगर किसी पे किरोध वश कुच्छ कहा तो जो बोला वह होता था और अगर किसे आशीर्वाद दिया तो मालामाल हो जाता था। जय तो पौंबारा निहाल किसी धन धान्य की कमी नहीं होती थी और अगर किसे श्राप दिया तो गया काम से सब चौपट हो जाता था। खासतौर पबुमाँ को अपने पारकर के लोग तब बुलाते थे जब ‘एक्साइज’ वाले झड़ती लेने किसी के घर आते थे, वहां लोग चुगली किया करते थे कि फलां घर मे रवाई गुड़ (जो शोलापुर महाराष्ट्र का कुच्छ लोग चोरी छिये भारत से लाते और अपने वहां धाट पारकर मे बेचते थे, और भी भारत से वस्तुएँ लाई जाती थी) तब पबुमाँ को लियाते थे मैंने स्वयं मेरी आँखों से देखा था।

एक बार हमारे वहां ‘एक्साइज’ वाले आए, एक्साइज टीम मे एक खोसा बलोच नवाज अली और पहाणियां बजीर गांव छाछरो वाला बजीर पबा भी साथ था हमने पबुमाँ जो महिया की ढाणी मे बिरजमान थी फटाफट लाए और पबुमाँ को देखते ही ‘एक्साइज’ वाले भागने लगे डोकरी ने ठेठ धाटकी भाषा मे कहा- “आई रा लिया एथ किण सारु आया थांना खबर कोनि के ऐ चारणां रा घर है भागो आठा सुं काली खाय थाने पिटयोड़ां भागो भागो” इतना सुनते ही ‘इक्साइज’ वाले माँ के पैरों पडे़, माँ भूल हो गई अब कभी इस तरफ नहीं आएंगे श्राप मत देना। उनको कंपकंपी लगने लगी व तुरंत वहां से वापस चले गये ऐसा अनेकों बार देखा।

पबुमाँ साक्षात देवी थी। अब पबुमाँ के पतिदेव श्री मानाजी महिया का वर्णन भी इस प्रकार है-
मानाजी एवं दूसरे महियों भाइयों की जमीन अपने मेहडुवों के गांव डीणसी के पास गातरा मे थी एवं थोड़ी बहुत महियों की ढाणी मे भी थी। मानाजी महिया बड़े चतुर सहनशील एवं सिन्धी भाषा के अच्छे कवि भी थे, वे बैत, कविताएं ऐसी रोचक करते थे कि सुनने वाले हंसी रोक नहीं सकते थे खूब आनंद आता था मानाजी की जोड़कल्ला मे। एक बिल्कुल सच्चा उदाहरण दे रहा हूं पारकर चारणों के गांवों से पांच सात कोस की दूरी पर कुछ मुसलमानों के गांव थे वहां बस्ती बलोच, समा, खासखेली, राजड़, थेबा राहुमा आदि थे, इनमें बलोच तो चोरी किया करते थे कभी किसी की बकरा – बकरी तो कभी ऊंठ – घोड़ा आदि चोरी कर ले जाते थे और तब पीछे धणी वाहर यानि पागी और दूसरे आदमी चोर के पैरों पैर पीछा करते थे व चोर पकड़ लेते थे फिर खुरी यानि कुछ पैसा दे कर माल वापस लाते थे, बलोच अमुमन खेती न के बराबर करते थे मुख्य धंधा चोरी था। एक बार मानाजी ऊनाले यानी वैशाख ज्येष्ठ महीने की लू मे गातरा अपनी जमीन पर गये थे प्यास लगी कोई बाल्टी लोटा पास था नहीं अतः अपना साफा वेरी कुए मे उतारा और भीगे साफे को बार बार निचोड प्यास बुझा रहे थे, इतने मे एक बलोच पुलिस वाला घोड़े चढा आया मानाजी ने सिंन्ध पारकर के रिवाज अनुसार, “भली करे आयो अदा” यह सुन पुलिस वाला बोला “भाड़या पाणी पियार मां उंज़ थो मरां” (इसका अर्थ है- “नालायक भड़वा पाणी पिला मुझे प्यास लगी है”) यह सुन मानाजी कुए से साफा बाहर कढ युं सिंन्धी भाषा मे कहा- “मथे मोडड़ो अईं उतर खौं आयो।भलीकार डिनी भाड़ये खे, तडहें गुई खां गालहायो। माना खाईं थो मोचडा़ पाणी लप पियार, आऊं सरकारी सवार उंज़ मरी अंधो थयस।।
भावार्थ- बिना सिर ढके यानी टोपी वगैरा कुच्छ नहीं उतर दिशा से घोडे चढा आया, आदरसत्कार दिया भले आया भाई लेकिन इसके बावजूद बुरे शब्द कहने लगा गाली देने लगा गुई यानि गुदा से बोलने लगा यह सुन पुलिस वाले की हवा निकल गई ऐसी अनेक रचनाएं मानाजी की अपने वृद्ध जनों से सुनने को मिलती थीं यही जीवन पबुमाँ एवं पतिदेव मानाजी का था।

पवित्र पारकर भूमि को नमन एवं सती पबुमाँ को शत शत वंदन।
इति सत्यम्।।

~आशूदान मेहडू जयपुर

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