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भुगळ जी देथा ने 7 बार हिंगलाज यात्रा की बिना पीठ दिखाए तब माँ प्रशन होकर बोले बेटा मांग भुगळ जी बहुत भोले थे तब कह दिया माँ मेरे घर चल माँ ने कहा जा बेटा तीसरी पीड़ी तेरे घर आऊंगी तीसरी पीड़ी में बापल जी देथा नाम के चारण ने जन्म लिया माँ ने स्वपन में आकर कहा जा बेटा मारवाड़ के माड़वा गांव में भला सिन्धयाच नाम का चारण है उसकी बेटी देवल के साथ शादी करनी है ।

इधर हिंगलाज माँ भला जी के स्वपन में आकर बोले सिंध खारोड़ा से बापाल देथा नाम का चारण आ रहा है उसके साथ तेरी बेटी देवल की शादी करवाना।
बापल जी देथा माड़वा गांव आये शाम के समय फेरो की रीति रिवाज शूरी हुई। तब देवल माँ ने देखा एक औरत कभी बूढ़ी बन रही है कभी बच्ची बन रही है कभी जुवान बन रही है। तब देवल माँ पहचान गये और 2 पैर आगे लेके पला पकड़ लिया और बोले माँ कोई और पहचान नहीं पाया पर में पहचान गई हूं आप माँ हिंगलाज हो। तभी माँ हिंगलाज ने आशीर्वाद देके रवाना किया।

बारात रवाना हुई शाम तक बारात जैसलमेर पहूंची। तभी माँ ने कहा आज की रात जैसलमेर रुकते है सुबह रवाना होंगे। जैसलमेर के राजा गड़सी के पीठ में गड़ निकला हुआ था उसको हमेशा 1 आदमी का कलेजा लाके राजा की पीठ पर रखने से राजा  2/4 घंटे नींद ले सकता था। देवल माँ जैसलमेर पधारे उस दिन एक कुम्हार की बारी थी। देवल माँ ने शाम को कुम्हार के घर रुकने का निश्चिन्त किया कुम्हार के घर माँ बेटा और पत्नी तीनो थे। जब माँ उनके घर पहुंचे तो तीनों उदास मुद्रा में बैठे है माँ ने कारण पूछा तो उन्होंने सारी बात राजा की बताई और कहा आज मेरे बेटे की बारी है। माँ ने कहा आपको सोच करने के जरुरत आप आराम करो में जवाब दे दूंगी।
शाम को राजा के 4/5 जुवान आये और बोले चल भाई आज तेरी बारी है तब माँ ने कहा इसको छोडो और आपने चुनड़ी के पले को काट के दिया पर बोला की राजा की पीठ और ओढा देना जुवान वापिस चले गए माँ ने कहा वैसा किया। सुबह राजा बहुत लेट उठा और बोले रात को किसका कालेजा लाये थे मेने रात भर आराम से नींद ली।

तब उन्होंने बताया कि किसीका कलेजा नहीं था एक चारणों की बारात आयी हुई थी जो दुल्हन थी उन्होंने अपनी चूनरी का पला काट के दिया था। तब राजा ने हुकम दिया की जाओ पर बारात को वापिस ले आओ। जुवान पीछे गए और माँ से आग्रह की माँ राजा के आदेश है आपको चलना होगा। नहीं तो राजा हमें मार देंगे तब माँ को दया आ गई और बारात वापिस जैसलमेर की और रवाना हुई। राजा गड़सी ने दहेज़ में 18 जात उठ गाय घोडा बहुत सारी वस्तुये दी और जैसलमेर के गड़ीसर तालाब में आई देवल माँ का मंदिर का निर्माण करवाया आज भी मंदिर गड़ीसर तालाब के अंदर है।
कोई गलती हो तो क्षमा करना।

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