इक दिन उपवन में आयुष जब
घूम रहा था मस्ती करता
कलियों-पुष्पों से कर बातें
कांटों पर गुस्सा सा करता
तभी अचानक उसके कानों
इक आवाज पड़ी अनजानी
बचा-बचाओ मुझे बचाओ
बोल रही थी कातर बानी
सुनकर सीधा उसी दिशा में
पहुँचा, चौंका देख नजारा
इक बोतल जिसके अंदर से
बोल रहा कोई दुखियारा
मुझे बचाओ! मुझे बचाओ
सतत यही आवाजें आई
मन का भोला बच्चा पिघला
खोला ढक्कन खुशी जताई
ढक्कन के खुलते ही धूँआ
तेज धमाका करते आया
डर कर आँखें बंद हो गई
काँप उठी आयुष की काया
मन ही मन में सोच माजरा
आयुष खतरा तोल रहा था
दैत्याकार बड़ा सा प्राणी
खड़ा सामने बोल रहा था
बोला मैं हूँ ‘जिन्न’ जान ले
मिले उसी को मैं खा जाऊँ
भूख लगी है मुझको भारी
तुझको खाकर भूख मिटाऊँ
मैं था बंदी इस बोतल में
तुमने मुझको बाहर निकाला
जिन्न जाति का प्रण है पक्का
प्रथम मिले सो प्रथम निवाला
आयुष ने मन ही मन सोचा
भूल हुई है उससे भारी
जिन्न जाति से टक्कर लेना
स्वयं मौत की करो तैयारी
‘संकट में बस धैर्य सहारा
और मदद कछु काम न आवे’
दादी माँ की सीख याद कर
आयुष तब इक युक्ति उपावे
मुख पर ले मुस्कान ध्यान से
बोला कला विलक्षण भाई
बालक हूं बुद्धू मत समझो
अब मैं समझ गया सच्चाई
हंसी ठिठोली करना छोड़ो
जाओ अपने घर को जाओ
मुझको भी अब घर जाना है
मित्र मुखोटा अभी हटाओ
जिन्न तभी बोला ओ बच्चे
झूठ बोलना यम की फांसी
मैं हूँ जिन्न तुझे खाऊँगा
इसमें मीन न मेख जरासी
मिला तभी आयुष को मौका
बोला नहीं बनूँगा बन्दर
झूठ नहीं तो सच में कैसे
आया तूँ बोतल के अंदर
यह छोटी सी बोतल इसमें
इतना बड़ा शरीर तुम्हारा
घुस कर मुझे दिखा दे इक बर
तू जीता और आयुष हारा
तभी जिन्न लघु रूप बनाकर
बोतल में घुस कर यों बोला
देख अभी अपनी आँखों से
ओ नादान अनाड़ी भोला
आयुष मंद मंद मुस्काया
ढक्कन बंद किया फिर बोला
अब तू खुद ही सोच बता दे
कौन जीनियस कौन है भोला
जिन्न बहुत पछताया रोया
बोला जैसा किया सो पाया
उसको ही खाने निकला था
जिसने मुझको मुक्त कराया
उपकारों का मान करो तुम
सदा हृदय से करो बड़ाई
संकट की घड़ियों में हरदम
धीरज रख कर लड़ो लड़ाई
~डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”