महाराणा प्रताप के सााथ उनके सहयोगी वीर बलिदानी जेसा सौदा, केशव सौदा, रामा सांदू, गोरधन बोग्सा, सुरायची टापरिया का पूण्य स्मरण
प्रातः स्मरणीय हिंदुआं सुरज महाराणा प्रताप की जयंती पर जन जन के ह्रदय से निकलती अथाह प्रेम भावना प्रकट होना संकेत है कि जनमानस आज भी अपने लोकनायक के प्रति नतमस्तक है । न जाने कितने राजा महाराजा हुए मगर सिर्फ महाराणा प्रताप का जो अमिट उच्च स्थान जनमानस में स्थापित है वो अतुल्य है। जो स्वयं जंगल में दर दर की ठोकरें खा रहा हो उनके साथ युद्ध करने से जागिर मिलना तो दूर की बात वेतन व भोजन मिलने में भी संशय था। उस वक्त अनगिनत वीरों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। चारण समाज के वीरों ने भी हंसते हंसते अपने महाराणा के लिए अपनी जान मात्रभूमि के लिए समर्पित कर दी उनमें जैसाजी सौदा केशव सौदा, रामा सांदू , गोरधन बोग्सा, सुरायची टापरिया प्रमुख थे।
अपनी आन बान और शान के साथ मेवाड़ के स्वाभिमान को अक्षुण रखने वाले महाराणा प्रताप की अनन्य अनुपम संघर्ष गाथा व बलिदान को दुश्मन भी नम आंखों से स्मरण किए बिना नहीं रह सका ।
तत्कालीन समय में गांव गांव ढाणी ढाणी तक महाराणा प्रताप के स्वाभिमान संघर्ष को पहुंचाया उस समय के कवि दुरसाआढा ने ।
भरे दरबार में महाराणा प्रताप की वीरता के वर्णन से कवि ने अकबर को भी विचलित कर दिया था।
{अस लेगो अण दाग, पाग लेगो अण नामी।
गो आड़ा गवड़ाय, जिको बहतो धुर बामी।
नवरोजे नह गयो, न गो आतशा नवल्ली।
न गो झरोखा हेठ, जेथ दुनियाण दहल्ली।
गहलोत राण जीतो गयो, दसण मूँद रसना डसी।
नीसास मूक भरिया नयण, तो मृत शाह प्रतापसी।
महाराणा ने अपने घोडों पर दाग नही लगने दिया (बादशाह की अधीनता स्वीकार करने वालों के घोडों को दागा जाता था)। उसकी पगड़ी किसी के सामने झुकी नही (अण नमी पाघ ) जो स्वाधीनता की गाड़ी की बाएँ धुरी को संभाले हुए था वो अपनी जीत के गीत गवा के चला गया। (गो आड़ा गवड़ाय ) (बहतो धुर बामी, यह मुहावरा है। गीता में अर्जुन को कृष्ण कहते है कि, हे! अर्जुन तुम महाभारत के वर्षभ हो यानि इस युद्ध की गाड़ी को खींचने का भार तुम्हारे ऊपर ही है। )
तुम कभी नोरोजे के जलसे में नही गये, न बादशाह के डेरों में गए। (आतशाँ -डेरे) न बादशाह के झरोखे के नीचे जहाँ दुनिया दहलती थी। (अकबर झरोखे में बैठता था तथा उसके नीचे राजा व नवाब आकर कोर्निश करते थे। )
हे! प्रतापसी तुम्हारी मृत्यु पर बादशाह ने आँखे बंद कर (दसण मूँद ) जबान को दांतों तले दबा लिया, ठंडी सांस ली, आँखों में पानी भर आया और कहा गहलोत राणा जीत गया।
लगभग पांच सो साल पूर्व कवि दुरसा आढ़ा ने महाराणा प्रताप को राष्ट्र का गौरव व स्वतंत्रता का नायक बताते हुए महाराणा प्रताप पर अमर रचनाएं बना कर उन्हें जन-जन के ह्रदय में सदा सर्वदा के लिए स्थापित कर दिया ।
पिछले कई दशकों से सर्वत्र महाराणा प्रताप जयंती मनाई जा रही है, हमें भी इस स्वतंत्रता सेनानी की जयंती मनाकर अपना योगदान देने वाले वीरों को स्मरण करना चाहिए । ताकि जिन्हें इतिहास ने भूला दिया मगर हम उन्हें पुनः स्मरण कर इतिहास में वापस स्वर्ण अक्षरों में अंकित कर सकें।