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आज शिक्षक दिवस है, शिक्षक को गुरू कहैं, मार्गदर्शक कहै, सरस्वति के भंडार का, द्वारपाल कहैं या बिलकुल कोरे मानव मस्तिष्क पर सुंदर चहुंमुखी विकासरूपी चित्र कोरने वाला अदभूत चित्रकार कहैं, सर्वथा सत्य एवं शात्र सिद्ध बात है..  हकीकत है। अब गुरू की विशेषताओं के भिन्न भिन्न वर्णन मिलते हैं – 1. निस्पक्ष, निस्वार्थ, निर्विवाद। 2. विषय ज्ञान मे दक्षता, पूर्णतया प्रमाणित सटीक उदाहरण दाता। 3. सुंदर सुशोभित वेसभूषा जो एक गुरु की होनी चाहिये, धारण करने वाला। 4. मनोवैज्ञानिक, हर शिश्य की खरी पहचान करने वाला, सही बताने वाला। 5. सुंदर आवाज़ वाला जिसे शिशय आनंद से सुनें और दिये गये उपदेश को कंठिस्थ कर लें (दबी हुई आवाज़ या राक्षस जैसी भयानक वाणी न हो) 6. शिक्षा प्रदान करते समय गुरू के व्याख्यान को हर बालक ध्यान से सुने ग्रहण करे न कि मन इधर उधर डोलता रहे, Every pupil should be  an active listener always.Shouldn’t be anyone passive listener. This is most important….. अतः यह मुख्य पांच गुण गुरू मे विधमान होनें चाहिए। बाकी अनेकों गुण हों वे और अति अधिक सुंदर बात है।
अब सच्चे गुरु की साक्षी, गवाही गुरु के शिश्य ही देते हैं, जैसे डॉक्टर की गवाही उसका मरीज ही देता है कि डॉक्टर साहब कितने कुशल निश्णांत रोग को जानने वाले हैं।

।।गुरु महिमा अपार है।।
।।गुरु वंदन।।
गुरू ज्ञान की खान है,
हरि नाम रत्न नित देत।
भवदद्धी पार करत बहुत,
बदले कच्छु न लेत।।
शिक्षक दिवस सुप्रभात नमन,
गुरू चरण वंदन स्वीकार हो।
हों ! शिश्य भल सौ अवगुन्न भरे,
गुरु पड़े तोरे द्वार हों ।।
तुम दया के सागर,दिल लगाकर,
कृपा इतनी किजीयो।
छल कफ्ट भ्रांति अज्ञान सह,
स्वल्प हर हि लिजियो।।
मिटे मोह माया,
मुक्त काया बंधन मिथ्या फंद से।
हम शुद्ध स्वच्छ बन शिश्य तेरे,
दूर हों दुर्गंध से।।
जगे देश प्रिती,
धर्मनीति हम भविष्य भारत बनें।
गर वार शत्रु मम् भारत करे,
हम शीष दलन करते चलें।।
गुरू तेरी चरण रज, मम् तिलक सुंदर,
स्वाभिमान मेरा यही।
“आशू” की अरदास पूर्ण,
उर कामना केवल यही।।
गुरू चरण वंदन राम सीता,
कृष्ण राधे कह गये सो दिल मे धरें ।
पशुयौन जैसे खडे़ पैरों, कयों?
अपमान हम अन्न का करें।।
मजबूरी कया ? आई मुसीबत !
नाव उल्टी नदिया तिरै।।
रक्षपाल होकर धर्मनीति विपरीत युं अनुसरण करें।।
यह दरकार नहीं, धिक्कार है ऐसे जीवन मरण में।
चलो !! लौट कर हम लिपट जावें,
श्रीपति की शरण में।।
मेरा युक्त भारत, नशा मुक्त भारत,
बने इसी चरण में।
शपथ लेकर सौगंध खाएं,
विश घुस न जाये धरण में,
कहीं चारण “आशू” के आचरण में।।
हम शपथ लेकर सौगंध खाएं।

~आशूदान मेहड़ू “आहत” जयपुर

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