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चावी चंपा चारणां

चंपा हंदो चाव सूं, विध विध करूं वखाण।
साद सेवकां सांभळै, अबखी वेळा आण।।
चावी चंपा चारणां, मेहडुवां घण माण।
दीपी वसुधा डीणसी, सो धरती सोढाण।।।
चावी चंपा चारणां, जबर पारकर जाण।
मेकेरी महिमा घणी, सो धरती सोढाण।।
धरणी ठावी डीनसी, पारकरी पहचाण।
धनु कुख जाई दीकरी, वागै घरां वखाण।।
गुरुवर खेताराम सूं, गहरौ पायौ ग्यान।
भलपण लीधी वीदगां, उच्च करम उनमान।।
चोज वधारण चारणी, चावी च्यारूंमेर।
परचा पल पल पूरती, सुणती साद सवेर।।
सढायचां भल सासरो, मऊ बधायौ मान।
अवल ईहगां ईसरी, डग डग राखै ध्यान।।
आण उजाळी ईहगां, कर नै सुकरत काम।
भगती कीनी भाव सूं, निज कुळ राखण नाम।।
जग री व्हाली जोगणी, रूड़ी चांपल राय।
बड़ भागी सेवक सदा, गुण जस थारा गाय।।
कवि जनां गुण जस कह्यो, चांपल सूं रख चाव।
आई व्हाली आपणी, है दिल री दरियाव।।
अंजस जोगी ईसरी, धिन मेकेरी धाम।
ऊजल महिमा आपरी, सुभ दाखै संग्राम।।

–संग्रामसिंह सोढा, सचियापुरा

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