सोचो उस दिन देश का, होगा कैसा हाल।
शिक्षक ने गर छोड़ दी, नेकनियति की चाल।।
सतयुग से कलियुग तक देखो, ये इतिहास गवाही देता।
शिक्षक हरदम देता रहता, बदले में कब कुछ भी लेता।।
अपने शिष्यों के अंतस में, जिसकी छवि अभिराम है।
ऐसे शिक्षक के चरणों में, कोटि-कोटि प्रणाम है।।
सच को सच कहने की हिम्मत,जो रखता है वह शिक्षक है।
झूठ-कपट से सच्ची नफरत, जो रखता है वह शिक्षक है।।
संस्कारों की फसल उगाता, यह धरती का लाल अनूठा,
पतझड़ में बासंती फितरत, जो रखता है वह शिक्षक है।।
जन्मभूमि के आगे जिसने, स्वर्णमयी लंका ठुकराई।
मर्यादा पुरुषोत्तम को ऐसी, मर्यादा किसने सिखलाई ?
अर्जुन के गांडीव धनुष में, किसका हूनर बोल रहा था।
किसके कारण वीर शिवा,मुगलों की ताकत तोल रहा था।।
चंद्रगुप्त के पराक्रम ने, किसके कारण अर्श छुआ ?
गुरु गोविंदसिंह किस शक्ति से, वीरों का आदर्श हुआ ?
कभी अहिंसा की परिभाषा, को समझाने शिवि बना।
अज्ञान तमस को दूर भगाने, कभी ज्ञान का रवि बना।।
बना कन्हैया कभी गगन से, चांद खिलौना लेने मचला।
कभी विवेकानंद विश्व में, धर्म-ध्वजा फहराने निकला।।
तू है विश्वामित्र, राम की मर्यादा में बसता तू।
तू संदीपनि मनमोहन की, नरलीला में हंसता तू।।
तू द्रोण पांडु अर्जुन के, कौशल का करतार रहा।
जामदग्न सुत रूप तू ही, राधेय कर्ण का वार रहा।।
परशुराम बन तू ही भीष्म के, भीषण प्रण की धार बना।
रामानंद कबीरा की तू, साखी का शृंगार बना।
तू चाणक्य चंद्रगुप्त को, न्याय नीति का पाठ पढाता।
तू समर्थ गुरु रामदास है, वीर शिवा का भाग्य प्रदाता।।
मीरां के हरजस भजनों का, मर्म तू ही रैदास रहा।
वल्लभ बन तू सूरदास की, आँखों का उजियास रहा।।
विवेकानंद के ज्ञान सूर्य का, तेज परमहंस है तू ही।
तानसेन की स्वरलहरी का, नाद मौहम्मद गौस तू ही।।
तू निजामुद्दीन औलिया, खुसरो की खालिस जनभाषा।
नरहरिदास तू ही गोसांई, तुलसी की अनुपम अभिलाषा।।
पर परिवर्तन की आँधी में, ज्ञानदीप कुछ बुझे-बुझे हैं।
शंका-आशंका से घिरकर, उन्नत मस्तक झुके-झुके हैं।।
प्रगतिपथ पर बढ़ने वाले, तेज कदम कुछ रुके-रुके हैं।
इसीलिए युवा भारत के, कर्णधार कुछ थके-थके हैं।।
फिर भी आशा का केंद्र बिंदु है, शिक्षक तूं ही आज तलक।
विश्वास पात्रता का धारक है, शिक्षक तूं ही आज तलक।।
नन्हें-मुन्नों के सपनों में, तेरा ही चित्र खिंचा रहता।
युवा दिल की धड़कन में भी, तेरा ही भाव भरा रहता।।
अभिभावक की अभिलाषा, आशा और बड़ा विश्वास तू ही।
बच्चों के खातिर मात-पिता और,भ्रात-सखा सब खास तू ही।।
तेरा नाम घरों में भी, अनुशासन कायम रखता है।
तुझसे शिक्षा ले सैनिक, वो मातृभूमि हित मरता है।।
भले समय की आंधी सबकी, आँखों पे भारी पड़ जाए।
पर युग निर्माता शिक्षक तेरी, दूरदृष्टि ना घटने पाए।।
~डॉ.गजादान चारण “शक्तिसुत”