Fri. Nov 22nd, 2024

मेरे आदरणीय पाठक सज्जनों.  .   ……..
राजस्थानी हास्य कविता ..” हर कोई भरे बटका ” का विलोम….
” पछे कांईं भरे बटका ” पेश है मुलाहिजा फरमावैं ।
1. जद मांगणियां ने मूंडो बतावां नी,
पछे काईं भरे बटका ।
लियां लिस्टड़ि, लारे फिरतो,
म्हे अंडरग्राउंड अटकां ।….
2. घराली ने घुटो देर, पाड़ आडी पटकां ।
भले रोवे पीहरिया,पटके पूंछड़ी,
देखो चारण का रटका ….पछे काईं भरे बटका…..
3.  फीस देवां नी, फींच तोड़ दां,
काईं फुहड़ डाक्टर करे फटका ।
दवाई रा नी पैसा देवां,
लियां पछे हाथ झटकां ।
पछे…..काईं ….भरे. ….
4. जो छोरा छाबरा पढ़े नीं साबता ,
जा बाणिया रे पटकां ।
सेठ सेठाणी लेवे हबीड़ा,
आपांरे गटका…. पछे मास्टर जी
काईं भरे…….
5.  अठे आडा बोलां, वाद रोज रो
ताल ठोक,  हाथ मूंछ धरां ।
बोल गालियां बंबाल मचावां,
पीड़ित पडो़सी भाग छटका….
पछे काईं भरे……
6.  अठे धरणो साबतो पर घर
साहब, दोस्तदारां रे सिर पटकां ।
खा पीने खिस्क जावां,
देवे धक्का तो नी हटकां…पछे….
7.   घुमा घुमा घराली ने, घर घर
जा पटकां ,
चतुर चीपटी जीमे चोप सूं,
भरे सीरे रा बटका ।
खीर चूरमा म्हे भी खावां,
बातां जोग जबर झटकां… पछे …
8.  घरे बेसां तो लड़े बापजी,
म्हे बाहर ही भटकां ।
रो धाप ने हारया पिताजी ,
कपूत निपज्या किसा कड़का ।
पछ काईं. …
मनी फनी रो नाम नीं जाणां ,
पर्स धक्के पटकां ।
खाली देख, धर थेलियो गला मे ,
स्कूल जावे टाबर सटका… पछे. ..
10.  गर करां पंचाती, होवे फजीती,  भूंड ठीकरो अवरां पटकां ।
कोई नी केवे, आओ सिरदारां,
मजा करां, करां मटका ।
धूड़ वालो, धुलपटां लारे,ढेरा
वालो नामड़दां …..पछे…..
जन्म मरण मे जरूर जावां,
लेवां ओढाणी,करां लटका ।
म्हे जमाई आपरा, नी सगे बापरा,
तो थांने क्यां नी भरां बटका..
पछे काईं भरे……
माँ बेचारी, सदा लाचारी,
कपूत संतान, हिये हड़का ।
” आहत ” पाड़े एक नी कौड़ी,
तोय टणकाई टणका ।
अब भाग छूट, आ छोड़ जगा,
नी तो पड़सी, फटका पर फटका।
अब थां ही बताओ साहब सगला,
भरसी किकर कोई बटका ।
खमाघणी सा ऊमर घणी सा आपरी.  .. …

~आशूदान मेहड़ू  ” आहत ” जयपुर (राज.)

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