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“निति विधान”
सत्य बात अति सुहावनी, धरहु हृदय धर ध्यान ।
मोटप,मद,मूढमति, तजि आडम्बर अज्ञान ।
जग स्वार्थ,अर्थ शुन्य, ना भेरु भीर रख भान ।
काम बिगारत कैक कुटिल, बावनिंया बहु विध .।
भेद,भ्रांति, डार भ्रम, धार कपट,छल छिद्र ।
चुंगुल मांहि चिपटा, फाबत लिपटत फंद ।
मूर्ख जाल मांहि फंसे, हंसे जग हुदंड .।
आपुन हित अनहित सकल, समझत विरल सुजान ।
धुलपट बातां धिक इसी, बुद्धिजन धरे न कान ।
मतिडोल,कौल मन मूढ तणो, निर्णय उचित नह लेत ।
संशय,भय,अकल अल्प, निज काम बिगार देत ।
भूल सव्यम भाले नहीं, टाले समय सुकाज ।
डगर डगर नर डोलता, गिरती देखी गाज ।
ऊंची सोच अंत:करण प्रबल, प्रण वचन निज पाल ।
सनेह, सब्बंध बिन सवार्थ, चलत फलत चिरकाल ।
कवि कथन सिद्ध कल्पना, सत्य भाखि सह पेख ।
काहु बिगार करत कुटिल, जद राघव खींची रेख ।
दस दोहा, द्वार दस, भिन्न भिन्न भांति भेद ।
अजहु जो निर्णय अटल, तो मो मन नाहीं क्षेद ।
~आसूदान “आहत” जयपुर ।

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