Sat. Apr 19th, 2025

“महादेव  को  मेरा  संदेश”

हम चारण पूत मैया के भोले,
तू मैया का घर वाला।
हमरा तुम संग नाता जुना,
हम बालक तेरे बाला।।
तू भांग धतूरा गांजा पीवे,
निश दिन रहता मतवाला।
कभी सृष्टि रचाता, कभी चक्र चलाता,
कभी बंशी बजाता गोपाला।।
विद् विद् रूप रूपेश्वर तेरे,
तू नंदेश्वर बड़ा नखराला।
तू ही महेश, ब्रह्मा, विष्णु,
तू ही जग का रखवाला।
तू ही मारण तारण हारा,
सब काज सुधारण शशि भाला।।
तू सर्वज्ञेश्वर, मृगधर वाघंबर,
तू ही त्रयक्ष त्रिशूल वाला।
तू ही हेरम्ब त्राता, विधि विधाता,
जग दाता, तू जग पाला।।
भस्म भभूति, शशि लिलाट सोहे,
गल अहिधर मुंडन माला।
तू ही त्रिलोकी नाथ त्रयम्बक,
नीलकंठ नंदी वाला।
तू ही विश्वनाथ, महा कालेश्वर,
तू ही सोमनाथ तटवाला।
तू ही पशुपति, उमापति,
तू ही केदार, कैलाश वाला।।
मैं अल्पबुद्धि प्रभु, “आसू” अज्ञानी,
लघु ध्यानी, मूढमति मनवाला।
काहु बखान करूँ शिव तोरे,
मो मन मोरे, थोरे थोरे थिरवाला।।
तू दातार हमारा, किरतार हमारा,
जग सार हमारा, भंडार भरण वाला।
तूं, तूं, तूं, तूं बस एक ही तूं,
शेष शून्य जग, सब घट भीतर रमन वाला।
कर जोड़ पुकार करूँ करूँणाकर,
दुःख दमन कर, दीनदयाला।।
उठा त्रिशूल, हो नंदी सवार,
धर विकट रूप, वध त्रिपुर वाला।
पीरा सुन परम दयालु, जग बदहालु,
तू कृपालु महिमन मेरू मन वाला।।
कर – कर कृपा कर, निंद्रा तज कर,
अर्जी हथ धर “आहत” वाला।
नंदी कहाँ से लाओगे नंदेश्वर,
जब गैया भूखी गोशाला।
भय, भ्रूण, भ्रष्टाचार फलत है,
अत्याचार अबला वाला।।
आतक घातक, उटपटाह उपातक,
नित नये नाटक, जले विश्व भीतर ज्वाला।
फिर क्यों सोवे, सबजन रोवे,
लख चौरासी आंसुन कुन धोवे।
हे महेश! मेटन वाला।।
मिले हर वस्तु मिलावट वाली,
दवा-दारू सब नकली-जाली,
तौ बिन कौन सुनें अब मोरी,
जटिल पीरा, सब दिन होरी।
देख न्याय घर जड़ा ताला,
कल पुरजे नकली, मानव, दानव,
मीत सब नकली, इक तू असली अटल वाला।
हम चारण पूत मैया के भोले…….

जब करे संत कोई उल्टे करतब,
साधु-सन्यासी हरदम हरतब,
ना उम्र मयाद, मौका मरतब,
कहो कौन अब रखवाला,
ओछे निर्मोही, विरल विमोही,
पाखंड धारी, धुर्त जगद्रोही,
ना सोहे तेरी माला।
हे प्रभु! हर हर, निंद्रा तज कर,
दुःख हर, सुख कर, हर दम, हर पर,
हर तट हर घर, झट कर, झट कर,
काल, कलेश, कपट भयंकर,
त्रट भट, अट पट, खट पट, नटखट,
धुल पट, सुलपट, राग, रोग, सह विघ्न विकट,
कर कर नष्ट कर, मतिभ्रष्ट जबर,
सिद्ध कर, रिद्ध कर, नवनिद्ध नित कर,
श्रीपत रूप धर शंख वाला।
हे शिव शंकर! नाथ मयंकर,
तज रूप भयंकर, कंकर, बंकर,
हम डरत नाथ तोर ललि लाला।
अब चल इस पल, तू अटल अचल,
उमा घर थल थल, मची हलबल,
तौ बिन इक पल, हर दिन निश्फल,
मैया मौन बनी, तज तोर शिवाला।
मृगधर सुंदर, महा धुरंधर,
छोर तोर सब फूंक फफूंदर,
उमा संग अब रह जा अंदर,
पल पल ठोर पलट वाला।
शिव शक्ति अति जोरी सुंदर,
तोरी राह तकें, हम तोरें लाला,
तू आसुतोष, मैं चारण आसु “आहत” हूं अर्जी वाला।
हाथ जोर, खड़ा शरण तोर,
ना ही काहु जोर कऊ बल बाला।
ना मैं जानूँ पंचोपचारा, ना कोई भोले षोडश पूजा।
ना मैं जानूं शुद्धि स्नानम्, ना कोई ग्यानम्, ध्यानम् दूजा।
मैं इतना जानूं, इक ही जानूं, तू देव सरल स्वभाव सलुजा।
मैं देव चारण, कुल निपजा भोले,
करत गुनगान कविता, प्रमाण सहिंता।
यह मन दर्पण, प्रभु तोहें अर्पण, कृपण नहीं मैं काग हूं कारा।
मम् मति अनुसारा, लघु विस्तारा, माया अपारा, तोर लिख डारा।
हम चारण पूत मैया के भोले,
तू मैया का घरवाला, हमरा तुम संग नाता जूना,
हम बालक तेरे बाला, हम चारण पूत.

मृत्युंजय महादेवाय।
नमः शिवाय.. नमः शिवाय…

।। दोहा।।
मैं कछु न जानूं कालरिपु,
पूजा विधि-विधान।
सह्दय शंभू तोहे समर्पित,

श्रृद्धा सुमन सम्मान।।
।। शिवा अर्पणास्तु ।।

~आसुदान मैहड़ू “आहत” जयपुर

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