“होली रो हुबाल”
नित होली रो भायां नोखो,फबतो फाग सुणावुं हुं ।
अटड़ पटड़ आ बातां अबखी,लाम्बी पोथी लावुं हुं ।
सुणज्यो सगला फाग फजीती,
पट्टा झाटक मैं आवुं हुं ।
लड़थड़ मरझड़ पड़पड़ फड़फड़,
गीत होली रा गावुं हुं । नित होली रो भायां……
बिखरे रंग उडे गुलालां,चंग धमीडा़ गाज रहया ।
गली गली मे गीत फागणिया,ताली
तड़का बाज रहया ।
उमड़ घुमड़ सह रसिया इण विद्ध,
निर्भय चौवटे नाच रहया ।
कितरी कला है किण किण मे,
जोशीडा़ भी जांच रहया ।
नापतोल होली रो निजर,चक्रधारी ने चुकावुं हुं।……नित होली रो भायां नोखो……..
रसियां रो रास बिगाडे़,मूढ़ महंगाई
लाजे नी ।
रुपया बिना रास नी फावे,झांझर
झिणको बाजे नी ।
आटो ओटो,पाणी रो त्रोटो, मनवार करां पण छाजे नी ।
पशु पंखीडा़,मानव प्यासा,
इंद्र प्रसन्न भी आजे नी ।
लियां लपीड़ो वेग उग्र रो, धक्के
गोविंद रे गावुं हुं ।…….नित होली रो भायां नोखो……..
जगह जगह है शोर शराबो,चोर चकारी फैल रही ।
देशद्रोह रा नारा गूंजे,पुलिस पापड़
वेल रही ।
व्यभिचार मासूमां बढ़तो जावे,
अबला पीड़ा झेल रही ।
कोझा करतब इतरा कांकर ?
राजनीति क्यां खेल रही ।
ऋशि देश रा रुखवालां री जटिल समस्या जणावुं हुं । ……
नित होली रो भायां नोखो……..
भय आतंक, भृष्टाचार फलयो है,
रावण,कंंस,वंश सँहारा ।
चोर चापलूस, चुगलिया फाबे,
पापीड़ां रा वारा न्यारा ।
अर्थ व्यवस्था, उथल पुथल है,
दिन धोले रा देखां तारा ।
बिजली करे आँख मिचौली,
पढसी कीकर टाबर सारा ।
अंधारा री ओट बैठ ने, गिण गण
गाथा गिणावुं हुं । ……..
नित होली रो भायां नोखो………
घोटालां पर घोटाला, हुड़दंग हड़तालां,नित ओपादी न्ई नई,
हाथ बंधयोड़ा वोट राजनीति,
राज बणयो है रुई पुई ।
ज्यां कर लागतां मुरझा जावे,
बूटी छुईमुई ।
” आहत ” थारी कलम अटपटी,
चतुरां चुभसी चौखी सुई ।
मूंछ पकड़ ए मेल चुकतु, साँवरिया थने सुणावुं ह़ुं ।……
नित होली रो भायां नोखो… ….
आ लेखो चोखो सेठ सगाल सुं,
थांरे आगल ठेल दियो ।
पीड़ा रे मोटो पोटल,मन रे माफक
मेल दायो ।
हाथ आप रे निर्णय हाकम,खेल फागणियो खेल दियो ।
इण होली री उलझयोड़ी मौली मे,
रंग बिरंगी रेल दियो ।
रंग स्नेह मे रंग जा “आहत”,बोल
अमोल बिरदावुं हुं ।………..
नित होली रो भायां नोखो, फबतो फाग सुणावुं हुं । ………….
~आशूदान मेहड़ू “आहत” जयपुर राजस्थान