Fri. Nov 22nd, 2024

दाल मे काला नग़मा “तक धिनाधिन

देखो भाई ! पड़ गया रे, दाल में काला।
मिलाते हैं जोर लोग, मसाले में मसाला।।
1. गर सुन ले कोई बात, किसी और की अच्छी।
रह ना पाये बिना उल्ट, ये झील के पंछी।
तरकीब बड़ी अजब, गजब फेर कर डाला।।
देखो भाई ! पड़ गया रे….

2. ये, मिलते हैं सुबह शाम, किसी चाय थड़ी पे।
ड्यूटी के बाद होती आँख, हाथ घड़ी पे।
कोई पल ना जिक्र बिना, आदत है आला।।
देखो भाई ! पड़ गया रे….

3. मुक्कदर के सिकंदर ये, हर बात में माहिर।
उजागर ना होती कल्ला, इनकी कोई जाहिर।
लो ! अचरज ऐसे लोग, यह रोग क्यों पाला।।
देखो भाई ! पड़ गया रे दाल में…..

4. उड़ाते हैं हजूर ये, हर किसी की धज्जियां।
मिल जाय जो उन्वान कोई, लेते हैं
फब्तियां।
ये, खुले घर पे लगा दें, अलीगढ़ का ताला।।
देखो भाई ! पड़ गया रे ….

5. कभी बात विल्ला की, कभी लाल किल्ला की।
कभी बात बम्बई की, कभी जयपुर जिला की।
परोसे हैं युं—पिंचर पान मसाला।।
देखो भाई ! पड़ गया रे….

6. कभी जितेन्द्र को आगे, कभी धुरंधर को आगे।
देके दियासलाई – खुद दूर युं भागे।
पकड़ में न आए – जकड़ मकड़ी का जाला।।
देखो भाई ! पड़ गया…

7. हो,झगड़ा पति पत्नी का, बिन बात का कोई।
जब रूठ के पत्नी – पीहर में जा रोई।
थी बात बाप की, गुनाह ससुर पे डाला।।
देखो भाई ! पड़ गया…

~आशूदान मेहडू जयपुर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *