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शहर बडो जयपुर सुखद, भली सुचंगी भोम।
जंतर मंतर जोयबा, ऊरे पधारो ओम।। १
नींव धरी जय नृपने, कुल कुरम बड कोम।
जस छायो सह जगत मे, आयर देखो ओम।। २
विजिटर देश विदेश रा, रसा वारसा रोम।
कर भ्रमण अचरज करे, उर हरसावे ओम। ।३
शीला मां सुख दायनी, भगवती जिण भोम।
दरसण गोविंद देव रा, आयर करलो ओम।। ४
चहल पहल दिस चार ही, फिर जोवो चंहुफैर।
दिल हरसावे देखतो, हवा महल दृग हैर।। ५
गलता मे टलता विघन, तन मिट जावे त्रास।
पाप झड़े सह पिंड रा, परस्या ओम प्रकाश।। ६
जग मोही जयपुर जिसो, पिंक कलर मे प्योर।
दुनिया मे नही दूसरो, इण धरती पर और।।७
बाग बगीचा बाडियो, बढिया नगर बिणाव।
कारीगर अदभुत कला, उजवल देखण आव।। ८
महल अनोखा मालिया, ऊंचा भवन आवास।
आप देखलो आयने, परतख ओम प्रकाश। ।९
गढ नाहर गढ गजब रो, बाह विलंबै ब्योम।
धर जिण धाकल धूजती, इण आगल सुण ओम।। १०
मन वांछित चीजो मिले, मन भावण मिठियास।
सखा निरखवा शहर ने, आवो ओम प्रकाश।।११

रचयिता एवं प्रेषक: मोहनसिह रतनू से. नि आर. पी. एस. जोधपुर

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