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उन्नीसवों सइको राजस्थान में उथल़-पुथल़ अर अत्याचारां रो रैयो। उण काल़ खंड में केई राजावां अर ठाकरां आपरै पुरखां री थापित मरजादावां रै खिलाफ काम कियो। जिणनै केई लोगां अंगेजियो तो केइयां प्रतिकार ई कियो। उण काल़खंड में चारणां रै बीसूं सांसणां में जमर अर तेलिया होया।

चारणां नै दिरीजण वाल़ो गांम सांसण बाजतो। वो गांम हर लागबाग सूं मुक्त होवतो अर राज कोई दखल नीं दे सकतो। आ एक थापित मरजादा ही। जद जद राज मरजादावां उलांगण री हद तक आयो तो चारणां अहिंसक रूप सूं राज नै रोकण सारू धरणो(सत्याग्रह)जमर अर तेलिया किया। इण तीनूं ई स्थिति में खुद ई कष्ट पावता पण जनता कै राज संपत्ति नै किणी भांत सूं हाण नीं पूगावता।

खुद उत्सर्ग कर देता पण सरणागत कै मरजादा नै नीं डिगण देता। जदकै आज इणरै उलट है। आज केई तबका आपरै प्रदत्त अधिकारां री रक्षार्थ हिंसक होय तोड़फोड़, निर्दोषां रा भोड-भंजण सैति कितरा ई अजोगता काम करै। इणरै उलट चारण कटारियां खाय कै जमर कर सत्य समर रा अमर सेनानी बणता।

उण कालखंड रा ऐड़ा घणा किस्सा है पण एक गीरबैजोग किस्सै सूं आपनै रूबरू करावूं।

माड़वा (पोकरण) जूनो सांसण। मोगड़़ा रा सिंढायच सोढाजी पोकरण इलाकै में आय रैया। उणांरै बेटे अखे सोढावत नै हमीर जगमालोत ओ सांसण दियो तो हमीर रै बेटे जोगायत, अखे सोढावत रै बेटे राजै अखावत नै जुदो बास दियो। माड़वा री मोटी कांकड़ अर चारणां रो धड़ीम (बड़ा) गांम गिणीजतो।

अखेजी आपरै नाम सूं अखेसर तल़ाब खिणायो जिणमें पूरसल पाणी ठैरतो। आसै-पासै रा गांम पीवता तो खेत ई नेपाल़ू, जिणांमें सगल़ो धान निपजतो।

आं अखेजी री संतति में वीदोजी हुया अर इणां री संतति में दलोजी सिंढायच।

आं दलोजी रै ऊदोजी सिंढायच होया। जिणां रो ब्याव भाखरी रै मिकसां रै अठै होयो। इणां री धर्मपत्नी रो नाम अणंदूबाई हो।
इणां रै बीजी संतति री तो कोई विगत नीं मिलै पण एक पुत्री चंदूबाई होई जिणांरो नाम आथूण सूं अगूण तक चावो।

ऊदोजी आपरी पुत्री रो ब्याव दासोड़ी गांम रै रतनजी सूरदासोत साथै कियो। जोग ऐड़ो बणियो कै रतनजी नै थोड़ैक दिनां सूं संसारिक सुखां सूं विरक्ति हुयगी अर उणां ग्रहस्थ त्याग संन्यास ले लियो। चंदूबाई कीं दिन तो दासोड़ी रैया पण पछै आपरै पीहर माड़वा गया परा।

उण दिनां पोकरण माथै ठाकर सालमसिंह री हुकुमत। कीं तो सालमसिंह में ई गीजो (तंत) नीं हो अर कीं चुगलखोरां भिड़ाया कै माड़वा रै चारणां री कांकड़ खींवज (एक देवी का नाम) थान तक लागै अर जमी ऐड़ी नेपाल़ू कै माथा उगावो तो ऊग जावै। आ ई नीं अखेसर तल़ाब ऐड़ो कै पूरै साल पाणी नीं नीठै। क्यूं नीं आ जमी अर अखेसर ले लियो जावै। ठाकर रै ई बात हाडोहाड बैठगी। उणां आपरै आदम्यां नै आदेश दियो कै “अखेसर तल़ाब सूं ठेठ दिखणादै पासै तक पोकरण रा मरकज रोप दिया जावै। ऐड़ी जमी में चारण कांई मांगै ?”

आदमी गया अर खींवज सूं लगायर अखेसर तक जमी दबता आया।

माड़वै बात पूगी। चारण पोकरण आया अर कैयो कै “माड़वो म्हांरो कदीमी (पारंपरिक) सांसण है। थां सूं ई घणो पैला रो। पोकरणां रो दतब। आप दखल नीं दे सको। पछै आपरा वडेरा गोपाल़दासजी, देवीसिंह जी अर सवाईसिंह जी तो म्हांरै कारणै आपरा माथा तक देवण संभिया अर आप उण रूंखां रा छोडा होय म्हांरो ई गांम खोसो!!” पण ठाकरां कोई गिनर नीं करी।

चारण पाछा आया अर जमर री त्यारी हुई। पण मरणो कोई हंसी-खेल थोड़ो ई है? मरै कुण? कोई किणी नै कैयो अर कोई किणी नै पण खुदोखुद किणी नीं कैयो कै – लो गांम रै खातर हूं मरसूं!! सेवट किणी डोकरी ओ बीड़ो काठमनी झालण संभी जितै आ बात चंदूबाई रै कानां पूगी कै जमर करण सारू कोई आगमनो नीं संभियो। वे अजेज उठै आया जठै चारण किणी उपाय तक पूगण री तजबीज में हा।

वां आवतां कैयो-
“जावो रै गैलां ! थां में ऐड़ो कोई नीं जको बाप री जमी सारू मरै? आ आई क्यूं जमर करैला ? हूं जाई जमर करसूं!! जमी म्हारै बाप री है!!

आ सुण उठै बैठै लोगां कैयो – “बाईजी आप जमर मत करो। आप म्हारा सवासणी (कन्या) हो।”

आ सुण चंदूबाई कैयो – “जणै कांई होवै? बेटी बापरी भोम खातर नीं मर सकै? म्है कोई दूबल़ी सवासणी थोड़ी हूं? जको जमर नीं कर सकूं?–

बेटे जाए कवण गुण, अवगुण कौण धियेण?
ज्यां ऊभां धर आपरी, चंपीजै अवरेण!!

बजावो मंगल़ ढोल!! गाजै-बाजै रै साथै हालो अखेसर री पाल़ माथै। म्है भोम अर कौम री आबरू री ढाल बणसूं।”

उण बखत उणांरो ढोली मिश्रोजी ढोली ढोल ले आयो।

जद चंदूबाई आपरी किणी भोजाई नै कैयो कै एक अबोट (एकदम नवी) चूंदड़ी कै ओढणो दो। जिणनै ओढ म्है जमर करसूं पण किणी भोजाई सूं ओढणो कै चूंदड़ी हिंयै नीं उतरी!! उण बखत चंदूबाई कैयो कै – “आई तो काली अर जाई समझणी होसी!!”

मंगल़ ढोल रै साथै वि.सं 1879 री मिगसर बदि चौथ शनिवार री पावन प्रभात में चंदूबाई अखेसर री पाल़ माथै पोकरण ठाकर सालमसिंह रै इण अन्याय रै खिलाफ जमर बैठा। किंवदंती है कै वे ज्यूं ई काठ चढ सूरज नै हाथ जोड़िया अर त्यूं ई अगन प्रजल़ी। उण बखत मिश्रोजी ढोली एकदम अगन-झाल़ां रै कनै ऊभा हा। उणांरै लपरका लागै हा। आ देख चंदूबाई उणांनै कैयो – “रे मिश्रा भाऊ! थोड़ो परिया ऊभ !! थारै झाल़ लाग रैयी!!”

जद मिश्रेजी कैयो कै – “नीं, बाईजी !! म्हारै तो ठंडी हीलां आवै है।”

जणै उणनै चंदूबाई कैयो कै-
“थारी संतति बधसी घणी पण इण धूंवै री सैनाणी सरूप सगल़ा काल़ा होसी।”

इण पछै उणां कैयो कै – “ई सालमसिंह रो तीजो अर म्हारो बारियो (द्वादशा) एकै दिन होसी। ई रै पीढी-पीढी खोल़ै आसी।”

जमर री झाल़ां देख पोकरण रा आदमी डर र नाठा अर पोकरण पूग आ खबर सालमसिंह नै जाय दी कै इणगत – “चंदूबाई जमर कियो अर आपनै शाप दियो कै नवमै दिन मर जावैला।”

उणी बखत सालमसिंह रै हिंयाबूझी आयगी। कैयो जावै कै उणी बखत उणरो पेट झलग्यो। वो रोवतो कै – “रे म्हारै पेट में कटारी चालै !!”

नवमै दिन ठाकर मरग्यो पण मरतो-करतो ई निकलंक चांपावत शाखा रै ओ इतो कलंक तो लगायग्यो।

चंदू माऊ रै इण जमर री चरचा चौताल़ै पसरी। जमर रा साखीधर मिश्रोजी ढोली कैयो-

धिन चंदू राखी धरा, तो धिन ऊदा तात।
बड़वाअगनी तूं बल़ी, मिगसाणी धिन मात।।

जगमाल़जी मोतीसर उण बखत रा दिग्गज डिंगल़ कवि हा। उणां बेबाक लिख्यो-

जमर चंदू तूं जल़ी, तैं सूं कूण त्रिसींघ।
पोढी(पोकरण) हंदो पाटवी, सोस्यो सालमसींघ।
चंदू बाई परचो चावो ऐ, आयल म्हारै हेले आवो।।
मोटो सांसण माड़वो, पी’र प्रिथी परमांण।
दाखां देवल दूसरी, व्रन में हुवा बखांण।
चंदूबाई परचो चावो ऐ, आयल म्हारै हेले आवो।।
पोढी परचो पूगियो, माठै कल़जुग मान।
आण न लोपै आपरी, हिंदू मुसलमान।
चंदूबाई परचो चावो ऐ, आयल म्हारै हेले आवो।।

उणां रा परवर्ती सिरै कवि धूड़जी मोतीसर लिख्यो-

मन धार मत्ती, सज सगत्ती, आप रत्थी आविया।
पोकरण पत्ती वड कुमत्ती, छोह छत्ती छाविया।
तन झाल़ तत्ती सूर सत्ती, रूक हत्थी राड़वै।
वड चरण वंदू सील संधू, मात चंदू माड़वै।।

इण ओल़्यां रै लेखक शब्द-सुमन अर्पित करतां लिख्यो-

इम आय अखैसर ऊपर आयल, देव दिनंकर ध्यान दियो।
हिव पाल़ पवित्र बैठ हुतासण, क्रोध मही झल़ न्हा़ण कियो।
उगणासिय संमत साल अठारिय, थाहर बाघण ग्राज थँडी।
धिन मात चँदू पख पीहर धारण, चारण जात उजाल़ चंडी।।

जिण जागा चंदू माऊ जमर कियो, उण जागा आज ई उणां रो थान इण बात रो साखीधर है। अन्याय रै खिलाफ निस्वार्थ भाव सूं जमर करण वाल़ी चंदू माऊ समूल़ै आथूणै राजस्थान में लोकदेवी रै रूप में पूजित है।

-गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

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