माइ ऐहडा पुत्र जण, जेहडो राण प्रताप।
अकबर सुतो ऊझखै, जाण शिराणे सांप।
(है, भारत की माताओ आप प्रताप जैसे पुत्र को जन्म दो। जिसका नाम सुनते ही अकबर नींद से ऐसे घबराहट में जाग जाता था, मानों शिर पर सांप आ गया हो।)
ऐसे महापुरुष क्षत्रिय कुळ भुषण महाराणा प्रताप की जन्म जयंती पर एक चारण होने के नाते मेरा श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं।
बहलोलखान के वध के वक्त महाराणा प्रताप की मनोभुमिका। करीब पंद्रह साल पहले की मेरी एक रचना……
।। कवित।।
चाहे आभ फट जाए, पृथ्वी पलट जाए।
कट जाए भले आज, शिष मेरो धरसे।
त्रिभुवन जो टुट जाए, नीर भले खुट जाए।
छुट जाए भले जहर, ऊंचे अंबर से।
आभ धर एक होय, दावा शैल दरेक होय।
समंदर को छेक होय, सहों न सबर से।
दाखे चारण “जयेशदान”, मर्द वीर क्षत्रिय महान।
रूठ के प्रताप राण, काढी तेग कमर से।
:::::::: कवि: जय ::::::::
जयेशदान गढवी।