।। श्रीकरणी कृपा पूगलम् ।।
जगत जननी जगदम्बा श्रीकरणीजी महाराज अपने अवतरण समय काल में बहुत ही कम स्थानों पर साक्षात पधारे थे। हिंगलाज अवतार श्रीकरणीजी महाराज द्वारा साक्षात प्रवासित इन सभी स्थानों में पूगल (बीकानेर) का अपना विशेष महत्व है। पूगल रियासत के भाटी वंशज शासक राव शेखाजी लोवड़ियाल श्रीकरणीजी महाराज के अनन्य भक्त थे। भगवती श्रीकरणीजी महाराज ने राव शेखाजी को अपने धर्म भाई के रूप में स्वीकार कर उन्हें अमर रहने का वरदान दिया था। पूगल शासक राव शेखाजी भुजलम्बे श्रीकरणीजी महाराज को भुवासा कह कर उन्हें विशेष संबोधन प्रदान करते थे। मातेश्वरी श्रीकरणीजी महाराज ने बीकानेर राज प्रदान करने के बाद राठौड़ वंशज राजा एवं बीकानेर राज्य संस्थापक राव बीकाजी का विवाह पूगल राव शेखाजी की राजकुमारी रंगकुवंरि से तय करवाया था। एक बार राव शेखाजी राजवृद्धि अभियान पर पूगल राज्य से बाहर निकल गये जहाँ उन्हें मुल्तान (पाकिस्तान) में स्थानीय शासक ने कैद कर कारागार में डाल दिया। बीकानेर के राजा राव बीकाजी के विवाह की तिथि तय करने हेतु पूगल पधारने पर भगवती श्रीकरणीजी महाराज को राव शेखाजी के कैद कर दिये जाने की जानकारी प्राप्त हुई। जब भवानी श्रीकरणीजी महाराज ने राव शेखाजी की भाटी रानी को उनकी राजकुमारी रंगकुंवरि के विवाह की तिथि को तय करने को कहा तो भाटी रानी साहिबा जगदम्बा श्रीकरणीजी महाराज के श्रीचरणों से लिपट कर अनुनय करने लगे और कहा कि बाईसा आपके भाई मुल्तान कैद में है तो ऐसे में कन्यादान कौन करेगा। इस पर नवदुर्गा श्री करणीजी महाराज ने राव शेखाजी की भाटी रानी को वरदान दिया कि आप विवाह की तैयारियां प्रारंभ करो। राजकुमारी रंगकुंवरि के कन्यादान के समय मेरे भाई राव शेखाजी को विवाह स्थल पर मैं ले आऊंगी। तत्पश्चात विवाह-लग्न कार्यक्रम प्रारंभ होने पर चामुंडा श्रीकरणीजी महाराज ने अंतर्ध्यान हो कर सांवली का रूप धारण कर लिया औऱ मुल्तान की तरफ उड़ान की। जैसे ही राव बीकाजी के चौथे फेरे का समय हुआ साँवली स्वरूपा श्रीकरणीजी महाराज आपनी पीठ पर पाँच पीरों के साथ पूगल भाटी शासक राव शेखाजी को लेकर विवाह स्थल समक्ष प्रकट हो गयी। बड़े समय बाद राजा के पहुंचने पर प्रजा खुशी से मदमस्त हो गयी तथा ढ़ोल-नगाड़ो एवं वाद्ययंत्रों के तेज वादन के साथ राव शेखाजी की जय-जयकार करने लगी। राव शेखाजी अपनी प्रजा के उत्साह एवं अपनी राजकुमारी के विवाह की ख़ुशी में विवाह स्थल राजमहल गढ़ की ओर जल्दी में बढ़ चले। भाटी राजा राव शेखाजी को कुछ पलों के लिए अम्बाजी श्रीकरणीजी महाराज की उपस्थिति का भान नहीं रहा। इस बीच मातारानी श्रीकरणीजी महाराज पूगल गढ़ के मुख्य द्वार पर अपने निज कर-कमलों से त्रिशूल को स्थापित कर अपने सेवकों के साथ बिराजमान हो गये। भाटी राव शेखाजी को विवाह स्थल गढ़ के अंदर पहुंचने के बाद अपनी भूल का अहसास हुआ तो वे तुरंत तेज कदमों से पूगल गढ़ के मुख्य द्वार की तरफ दौड़ पड़े। राव शेखाजी मेहाई श्रीकरणीजी के श्रीचरणों में गिर अपनी भूल को स्वीकार करते हुए अम्बिका श्रीकरणीजी महाराज से गढ़ के अंदर विवाह स्थल पर पधारने का निवेदन करने लगे। तब सहस्त्रभुजाली श्रीकरणीजी महाराज ने राव शेखाजी को कहा कि आप राजकुमारी रंगकुंवरि का कन्यादान करें। मेरा आशीर्वाद आपके साथ है। मैं अब यहीं गढ़ द्वार पर बिराजमान रहूँगी।
इतिहास प्रशस्त सत्य उपलब्ध है कि जब भी पूगल एवं बीकानेर नरेशों ने सिंहवाहिनी श्रीकरणीजी महाराज का हृदय से सुमिरन किया है तब माँ दयालु श्रीकरणीजी महाराज ने उनकी फतह सुनिश्चित की है। बीकानेर प्रजावत्सल शासक गंगासिंह पर करणी कृपा होना स्वयंसिद्ध वर्तमान रहा है। देशाणराय माँ श्री करणीजी महाराज का छः सौ वर्ष से अधिक समय का प्राचीन मंदिर पूगल गढ़ के मुख्य द्वार पर बना हुआ है, जिसमें करुणामयी श्रीकरणीजी महाराज के निज कर कमलों से स्थापित पावन त्रिशूल आज भी मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि इस त्रिशूल की दीर्घता शनै-शनै कम होती जा रही है। स्थानीय मान्यता यह भी है कि जैसे ही पावन त्रिशूल की लम्बाई सम्पूर्ण होगी तब पृथ्वीलोक पर महाशक्ति श्रीकरणीजी महाराज का पुनः अवतरण होगा। पूगल के इस प्राचीन मंदिर में राजरानी श्रीकरणीजी महाराज के द्वारा साक्षात स्थापित पावन त्रिशूल के दर्शन-लाभ करने से मानव के जन्मजन्मांतर के समस्त कष्ट स्वतः ही दूर हो जाते है। तपस्विनी माता की महिमा महान है, माँ करनला की कृपा अवर्णनीय है।
-संकलन एवं आलेख – Karani Dan Charan