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सत उच्चरवानुं, तप करवानुं ऐ चारण नुं कर्म हतुं
नाम | स्व. रघदानजी |
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पिता | स्व. लाँगीदानजी |
दादोसा का नाम | स्व. मलूदानजी |
जन्म स्थान | |
पाकिस्तान स्थित पारकर के देदळाइ गांव | |
परिचय | |
●शाखा/गोत्र- “चारण” – झीबा ●अभ्याश- आत्म साक्षर ●गांव का नाम- सोनलपुर ●तहसील- लखपत ●जिला- कच्छ (भुज) ●उम्र व जन्म तारीख- 94वर्ष, 12-05-1906 ●स्वर्गवास तारीख- 31-10-2000 (कारतक सूद 4, विक्रम संवत 2057) ●नानोसा का नाम, गोत्र व गांव- मोतीजी जीवाजी सरताणीया (लाकडखडीयो- पारकर) ●ससुरजी का नाम, गोत्र व गांव- समेलाजी सजाजी देथा- गढडो (प्रथम विवाह) दादुजी अरजणजी आढा- देदलाई (द्वितिय विवाह) ●स्वयं का पाक में मूल गांव- (देदलाई-पाक) | |
जीवन परिचय | |
वर्तमान समय पाकिस्तान स्थित पारकर के देदळाइ गांव में जन्मे रघाजी अपनी साहसिक प्रवृत्ति के कारण मशहूर हुए। उन्होंने युवा अवस्था में प्रवेश करने के साथ ही पाकिस्तानी शासन में भी अपने गांव में शिकारी प्रवृत्तियों पर रोक लगाई। जिस कारण उन्हें कई संघर्षों का सामना करना पड़ा। पारकर में एक बडे संघर्ष में देदळाइ में 1400 एकड़ जमीन गौचर में तब्दील करवाइ। 1971 के भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध के बाद सह परिवार भारत आए, और तत्कालीन महाशक्ति आइ श्री सोनलमा के दर्शन करने के लिए कणेरी पधारे। और आइमां से उनके नाम पर नया ग्राम बनाने के आशीर्वाद प्राप्त किए। उसके अनुसार गुजरात के कच्छ जिले के लखपत तहसील में 1987 में *सोनलपुर* गांव की स्थापना की। वर्तमान समय में सोनलपुर पाकिस्तान से आए पारकर के चारणों का सब से बड़ा गांव है। स्वमान और सत्य के लिए किसी भी सता से लोहा लेते न घबराना उनकी खासियत रही। कइ बड़े संघर्षों में भी उन्होंने कभी भी पीछेहट नहीं की ये बात समग्र पारकर समाज में विदित है। उन्होंने आजीवन गौसेवा, शक्ति उपासना, साहस वृत्ति, बेबाक सत्य वचन के व्रत का पालन किया। विक्रम संवत 2057 कार्तिक चतुर्थी के आज ही के दिन इस महान आत्मा ने जगदम्बा स्मरण करते नश्वर देह को त्याग दिया। लेकिन उनके विचार आज भी आदर्श के रूप में हमें प्रेरणा दे रहे हैं। हमें गर्व है कि हम ऐसे महान आत्मा के वंशज है। आज उनकी पुण्यतिथि के दिन उनके चरणों में कोटि कोटि वंदन के साथ आप के बताए मार्ग पर चलने के आशीर्वाद की अपेक्षा……. |