कहते है जब किसी का समय खराब चल रहा हो या किस्मत साथ न दे रही हो तो लोग कहते है कि ग्रह अच्छे नही है,या शनि देव का प्रकोप है। जब शनिदेव नाराज रहते है तो समय भी साथ नही देता है।
~कवि श्री खेतदानजी मीसण ने शनिदेव को रिझाने (प्रसन्न) के लिए एक स्तुति की रचना की थी जो यहाँ प्रस्तुत है।
।।शनिदेव की स्तुति।।
ओम आवाहन शनि उच्चारूं, धीरज ध्यान ह्रदय मे धारूं।
धनुष आकार मंडळ धरेयो, कोड घणे प्रिती भर करेयो।
दो आंगळ भर आसण दीनो, कर सिंहासन स्मरण किनो।
आदर कर-कर नाम उच्चारूं, साफ अंतर मंतर सारूं।
आसण है पछम दिसी उत्तम, प्रेम बिराजो तुम प्रुसोतम।
प्रबळ देव हो तुम पर सिद्धि, सर्वस कांम करो मम् सिद्धि।
केशर चंदन तिलक करिजे, उत्तम जळ स्नान धरिजे।
श्याम वस्त्र पेरेया धन सुन्दर, महा श्याम आभुषण मनहर।
श्याम फुल चड़ेया सर सोभे, लखिए श्याम मुगट सर लोभे।
कांने कुंडळ सांम किलोहळ, भलो सांम रंग है भळ हळ।
देश सोरठ को मालिक दीसे, जन्म देश सोरठ को ऐसे।
कुंभ मकर को मालिक कहिएं, ह्रदय देव शनिजी रहिएं।
तेल तल वाला है तेसे, जाको सांम धेन है जैसे।
दान लोहा का उसकुं दिजे, कोडे महिखी दानज कीजे।
चतुर वाहन बेले चड़ेया, धन धन शंकर रूपज धरेया।
भला धर्म का तुम हो भाई, छाया मात सदा सुखदाई।
बलिहारी सुरज के बेटा, मेरे गुरू सबे दुख मेटा।
कृपा दास पर साय करिजे, ध्याने कांने अरज धरिजे।
जग मे है शनिदेव जोरावर, पाया प्रबळ तुम ही पावर।
आयफत मेटी करिएं ओपर, मेया शनिजी करिएं मोपर।
रोग मिटावो ग्रह के राजा, करिएं सिद्ध हमारे काजा।
दुश्मन को तुम मार हटादे, कांम हमारा उत्तम करदे।
महा दयाळु शंकट मेटो, भला शनिजी आवे भेटो।
आओ दास की मीटे उदासी, पुरण हेत सदा प्रकाशी।
मेरे घरे रक्षा कर मेरी, लज्या वधारो सदा लंबेरी।
मुठ ध्रेठ का दुख मेटाड़ो, हरो मंत्र जंत्र हटाड़ो।
पालो भुत प्रेत पिशाचा, सदा बचावो हमको साचा।
डाकण साकण दुर करिजे, राजी ग्रह शनिच्छर रीजे।
जीन जोगणी सबही जावे, उसका शंकट नहिंजी आवे।
प्रेमे झेर पियाला पालो, चतुर शनिजी ओरा चालो।
राजा पत्सा रैयत रीजे, कांम शनिजी ऐसा कीजे।
हाकम का भय मेट हटावो, मेरी चिन्ता सबे मीटावो।
कीड़ा कांटा दुर करीजे, हड़केया पाले दुर हरीजे।
ताव तप मेटीजे तैसे, अंग व्याधि मेटो ऐसे।
काळ हटावो शांत करावो, ध्यान आवाहन शनि धरावो।
सुख संपत धन दीजे स्वामी, आनन्द मंगळ अंतरजामी।
अशुद्ध मिटावे शुद्ध कर लेवे, दाता शक्ति दिन दिन देवे।
हरदे मेरे धरो हुलाशा, प्रिते शान्ति करो प्रकाशा।
पुत सपुत वधे परिवारा, सुख हमको देखावो सारा।
दिन दिन मदद करिएं सुख दाता, गुण तेरा नित सेवक गाता।
संकट मेटी करो सहाय, अकाळ मृत्यु मेटीजे आय।
वडा हमारा मांन वधारो, सदा शनिजी कांम सुधारो।
वाटे घाटे वाहर करजो, देश प्रदेश वशीला देजो।
दशे दसा शान्ति कर दाता, अभय दान देयो अखेयाता।
रात दिवस शनि हाजर रहिएं, देतां सामा सादद दइएं।
दाता मीठा भोजन दीजे, केतां पल पल रक्षा कीजे।
आओ शनिजी दास ओधारो, प्रेम पियाला शनि पधारो।
बेल शनिजी आओ वरदाई, शनि दयाळु तमे सदाई।
ध्याने अर्ज ह्रदय मे धर्यो, कर शान्ति आवाहन कर्यो।
शान्ते शान्त रहो शनिजी, सहाय हमारी करो शनिजी।
प्रबळ देव शनिजी पुरा, जिस पर राजिपा होय जरूरा।
कवा न लागे उसकुं कोय, ह्रदय घणा राजिपा होय।
शनि देव है सेण हमारा, काज शनिजी करे हमारा।
ओम शनि कोई नांम उच्चारे, सदा शनिजी कांम सुधारे।
गुण शनि कोई नित ही गावे, प्रगट चार पदार्थ पावे।
प्रसन्न शांति थाय शनिच्छर, साचे मन जपे शनिच्छर।
शंकट समय साथ तुम्हारा, शनि बोलावुं नित सवारा।
दान शनिजी ऐसो दीनो, कवि “खेत”ने निर्भय कीनो।
।।कळस।।
शनि आवाहन सांभळे, नवे ग्रह शांति सनेम।
संकट मेटे सुख दीए, ते हरदो शीतळ हेम।।
दुश्मन गळेया देखतां, सज्जन वधेयो सनेह।
दुख मेटेया शनि देवजी, दर्शन प्रसन्न देह।।
कर जोड़ “खेत” वंदन करे, शिव ओम शनिजी सहाय।