शीश नमाऊं शारदा, सुमरू देव सुण्डाळ।
जस बरणूं जगतंब रो, मां मोगल मछराळ।।1
ओखा धर जनमी उमय, ईहग बरण उजाळ।
तिहू लोकां तारण तरण, मां मोगल मछराळ।।2
आवे जद अबखी बखत, करकश घूमे काळ।
उण पळ अम्ब उबारणी, मां मोगल मछराळ।।3
जोत सुथानक जगमगे, भळहळ चमके भाळ।
मोताहळ गळ मोंय नें, मां मोगल मछराळ।।4
प्रबळ दैत पछाडणी, बण जोगण बिकराळ।
फण धर पकड फफेडणी, मां मोगल मछराळ।।5
अम्बा राखे ओट जद, दुश्मन गळे न दाळ।
विपदा कष्ट विदारणी, मां मोगल मछराळ।।6
निबळा ने सबळा करे, निरधन करे निहाल।
बगसे बाळक बांझ ने, मां मोगल मछराळ।।7
चील रूप नभ मैं चढी, पन्नग रूप पयाळ।
बाघ रूप बोकारनी, मां मोगल मछराळ।।8
रोग अगन जळ राड में, राखे आप रुखाळ।
भय हरणी दुख भंजणी, मां मोगल मछराळ।।9
“मोहन रतनू मात री, चरण बिलुम्बी चाळ।
दया राखजे दास पर, मां मोगल मछराळ।।
~मोहन सिंह रतनू