दोहे
चारण वर्ण चतुर है, वाका ब्रद बुलंद।
ह्रदय विमल परहित करण, सज्जन स्वभाव सुखन्द।।(1)
सत्य वक्ता सदभावना, अधका वीर उदार।
बुधवन्ता चर्चत ब्रद, वधता ज्ञान विचार।।(2)
गुणवता चित गौरवता, राज सभा का रूप।
रस भरी कविता का रचन, अलंकृत शब्द अनूप।।(3)
विज्ञाता प्रज्ञा विदवता, ओजसी स्वयं अधीन।
चारण वर्ण चतुर है, पुजक शक्ति प्रवीण।।(4)
भल पणता भांक्तवंता, उच्चरंता गुण ईश।
कथ गाथा इतीहास की, वदुं शाख त्रयवीस।।(5)
आगम कथ उपदेश दे, सौरंभ सुजस सुभान।
अमृत वचन उच्चारणा, कर्तव्य पर कल्याण।।(6)
धीरज वंत शुभ धारण, क्षमा दया गुण खाण।
नि स्वार्थ साहसी निडर, देय कोटि कर दान।।(7)
गुरुता चित में अति गुणी, समता मन संतोष।
सज्जनता स्वामी भक्त, दर्साय दे गुण दोष।।(8)
चाहत सब हित चारणा, सुह्रदय कोमल सजान।
करता नवरस काव्य का, गोविन्द छोह गलतान।।(9)
कायर को शूरा करे, स्फुर वीर संस्कार।
वदों सु चारण वर्ण का, आदि धर्म आचार।।(10)
दे कुर्बानी देशहित, सदा समाज संबोध।
अमन पसंद दिल उजला, विद्रोही पक्ष विरोध।।(11)
वेदग दिव्य वंश की, खुशबु सुयस ख्यात।
करणी रेहणी ऊंच का, पवित्र चारण प्रख्यात।।(12)
छंद जात हरि गीत
प्रख्यात जाती देव पांथु, प्रतिज्ञा दृढ़ पालना।
अबभुत रीत सपुत ऊंचा, आप वंश उजालना।।
सत्य बोलना स्वभाव सज्जन, चातुर्य गुण चारणा।
वड वीरवर भड़ चित विमल का, वेदगों वर वारणा।।(1)
गुणवान कथ इतिहास गाथा, आगमं उच्चारणा।
वर वेद भेद वीवेक बुववर, धोर चित सुभ धारणा।।
पक्षपात ना किस के प्रति, निरपक्ष निती निभावना।
भव्य वाणी अमृत सदृश भाखत, सत्य वचन सुणावणा।।(2)
मतिवान अति विदवान महानसु, गान हरि यस गावना।
वर्तमान भूत भविष्य बातों, दाखे मुख दरसावना।
समाज का सुधार निसदिन, काज पर उपकार का।
चित लगाके नित कर्त चारण, अदा कर्तव्य आपका।(3)
राजन्द सभा का रूप रेणव, धन्य गौरव धारणा।
प्रमान ज्ञान प्रबोध देकर, सत्य कहे समझावना।
जुबान बड़ी मूल्यवान याकि, वचन झूठ ना बोलता।
पर हक विष्टा सदृशपेखत, उजवल चित अडोलता।(4)
समदृष्टि पेखत सृष्टि जन, मन भिन्नता नही मानता।
अति जगत आलम कुटुम्ब अपना, जिगर में नित जानता।
व्रहमशक्ति पुजक भाव भवित, ध्यान ज्ञान सुधारना।
बेरागी प्रज्ञा अखण्ड वृति, मोह ममता आरना।(5)
गंभीर सागर धीर गरुवा, अधिक भलप उदारता।
क्षमा दया सदगुण खजाना, भक्ति देश सुभावता।
अदभुत कल कविता अनुपम, रसीक जनो रिझावता।
मृदु कंठ सुण जन मुग्ध बन घन, जनो भाव जगावता।(6)
नि-स्वार्थो परहितक नागर, धर्म पथ पद धारणा।
भुज करारा पर पीड़ भंजन, अहंतव नंह आनना।
पूर्ण काववर पाय प्रभुता, शकल आदर शान का।
उपकार वंत मुख कथत आगम, गहन वर्णन ज्ञानका।(7)
उर चाहता निज देश उन्नति, चारणों उन्नति चहे।
उन्नति शिखर भारत अखण्ड, कब ज्ञान समझावे कहे।
मेहनत अरु एकता मोहबत, बहोत हित चाहत वही।
कुर्बान होना देश काज, सिद्धात चारण का सही।(8)
दोष खल गुण संत देखाना, गान देश गुंजावना।
प्रवास कर कर क्षत्र प्रत्येक, सभ्यता सिखावना।
दानवो वोर सुभक्त दिव्य, श्रवण ज्ञान सुणावणा।
अवतार सिद्धवर का उत्तम, बहुल वर्णो वतावणा।(9)
सद बोध सयंदन सारथी, सुद्ध राह पर चलवत सही।
दीर्घ नजर त्रयकाल दरसी, सकल कारज कर सही।
रसना अग्र सरस्वति रमणंग, रस पीयुष रेलावही।
मशहूर जग में महानता, गुण गुणों जन का गांव ही।(10)
जग विदित चारण देव जाती, दिव्य गुण घण दीपही।
प्राप्त प्रभुता परम् ज्ञाणी, अग्र गणाय अनुप ही।
अही भाग्य वेदु नियम श्रेयकर, पावन कार्ज पुण्य का।
ब्रद वर्णाया खुमान बारठ, वेदगो वर वंश का।(11)
छप्पय छंद
सुद्ध चारण गुण सोय, कथे मुख झूठ न कहना।
सुद्ध चारण गुण सोय, वेद आगम पथ वहना।
सुद्ध चारण गुण सोय, अवर के काज उदारा।
सुद्ध चारण गुण सोय, समाज का करण सुधरा।
दिल सुद्ध बुद्धि ह्रदय दया, वीरता धीर क्षमा विहद।
सुद्ध देव वंशी चारण सकल, वर्णाया कवि खुमान ब्रद।(1)
~श्री खूमदानजी बारहठ