ईश्वर की रंग बिरंगी विश्व रचना का वर्णन:-
कृत- कवि खूमदानजी बारहठ
दोहा
भरया कोटि ब्रहमण्डों, विध-विध लीला विधान।
रंग के के कुदरत रची, सोइया ते सुभान।।
छंन्द जात डुमेला सिर बंधा
विध-2 किये प्रकृति वीस्तारण, धारण कोटि ब्रहमण्ड धरा।
अंतरिक्ष मे सूरज चंद्र उजासत, तारादि व्रन्द ग्रहों तिनरा।।
हद बोंधो मर्यादा के लाखों हजारन, तंतु माणिगत दाम तणी।
रंग-2 विचित्र रची रचना, धन्यवाद लीला तो सुभान धणी।।
धन्य तोरी लीला है सुभान धणी। (1)
परठे पंच भूतरु प्राणन को, युगते जड़ चेतन मेल यथा।
अस्थि रग मांस त्वचाय ओढ़ण, कीधह मूल स्थूल कथा।।
चीत चार व्रति वर, वाणों परादि उच्चार बणी।
रंग-2 विचित्र रची रचना, धन्यवाद लीला तो सुभान धणी।।
धन्य तोरी लीला है सुभान धणी। (2)
कलांस हिमालय जैसा बन्ध कुंगर, धार पहाड़ोय पीठ धरा।
अथाह उदधि गम्भीर अति, भरपूर रहे जल हुत भरा।।
पय धार पृथी वर्षाय पयोधर, देव प्रति-2 पाल दुनी।
रंग-2 विचित्र रची रचना, धन्यवाद लीला तो सुभान धणी।।
धन्य तोरी लीला है सुभान धणी। (3)
जग जीवोय योनी स्वावर, जंगम गम नही अणपार गति।
सहसो जन कोटि भिन्न-2 सूरत मूर्त कोटि स्वभाव मति।।
भयोहे अंग रंग सबे भिन्नता, बहु भाती मुखाकृति भिन्न बनि।
रंग-2 विचित्र रची रचना, धन्यवाद लीला तो सुभान धणी।।
धन्य तोरी लीला है सुभान धणी। (4)
विगुणी प्रकृति स्वभाव तिहु, नर देव उपावन नाथ तुही।
चतर खानी देहान रची रचना, नरदेव पशु खग नागन ही।।
चंहु वेद विधा गुणज्ञान चंहु, बहु ज्ञान सिखावण बुद्धि बनी।
रंग-2 विचित्र रची रचना, धन्यवाद लीला तो सुभान धणी।।
धन्य तोरी लीला है सुभान धणी। (5)
व्रक्ष वेलाय गुंछन षट विधि, हरिया बन्ध कीधा हजारो हरि।
झुक झार पहार नदी झरना, करि कोमल पुष्प सुवास करी।।
घ्रत दुग्ध मेवात अमीरस के, अन विश्व सुपोषण काज बनी।
रंग-2 विचित्र रची रचना, धन्यवाद लीला तो सुभान धणी।।
धन्य तोरी लीला है सुभान धणी। (6)
उदधि जल एच सु ध्योम अटा, घन कुंगर बध सु बांध घटा।
घन घोर प्रचंड मंडे जल धारण, पाहरन प्राछट बुंद पटा।।
ग्रल के कल ताण्डव बीजलियो, पल पलर समथल देत पाणी।
रंग-2 विचित्र रची रचना, धन्यवाद लीला तो सुभान धणी।।
धन्य तोरी लीला है सुभान धणी। (7)
जन्मयो प्रथमंग जननी थन में, कृपालु हरि पय त्यार किया।
शिशु पामर के पय सोध लीए, दिल शिशु न कोन सिखाए दिया।।
रंग मोर के इण्डन कौन रचवा, विध अजब चीटीन आंत बनी।
रंग-2 विचित्र रची रचना, धन्यवाद लीला तो सुभान धणी।।
धन्य तोरी लीला है सुभान धणी। (8)
पिन्ड-थुल स्थूल रचे रज बुंदन, कोटिक भीतर विचित्र कला।
गर्भवास माही मुख ग्रास दे दे, वर पोषण रक्षण तु विमला।।
बुधवान के वेद न भेद न बुझत, तुं ही तुझ तणी।
रंग-2 विचित्र रची रचना, धन्यवाद लीला तो सुभान धणी।।
धन्य तोरी लीला है सुभान धणी। (9)
विधि वेद महेश गणेश विधाधर, सारद शेष सुरेश सही।
सनकादिक व्यास शुकादि ऋषिवर, कथयों हारया सिद्ध केही।।
किरतार गति अणपार खुमान के कछु न पाया है भेद किनि।
रंग-2 विचित्र रची रचना, धन्यवाद लीला तो सुभान धणी।।
धन्य तोरी लीला है सुभान धणी।(10)
सोइया ते सुभान रची सृष्टि रंग रंगों।
करया कई कमठाण प्रत्येक भांति प्रसंगि।।
मृग सुक पिक मृणाल, केकि सिर किध कलंगी।
रंग रस वाणी राग, सुमन फल भिष्ठसुरंगी।।
किरतार तणी खुमान के, विविध भांत कुदरत बनी।
अथाह प्रभु की माया अकल, धन्य धन्य तुही आला धणी।।
~खूमदानजी बारहठ