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ईश्वर की गहन गति का वर्णन
दोहा
गहन गति प्रभु की गिणो, वर्णे कोण वखाण।
रहे अन्दर बाहर रमें, कैक रचे कमठाण।।

छंद जात सारसी
के के रचाना कमठाणा, जगत जाना नाज के।
सिद्ध पुरुष स्याना शोधनाना, तान भुलाना तिके।।
प्रकृति प्रमाना पार पाना, कठिन महाना काम है। टेक
भव सिन्धु भारण पार तारण, नाम नारण नाव है।।
प्रभु नाम तेरा नाव है। (1)
आपे अकर्ता जगत कर्ता, धरण धर्ता तुं घणों।
स्वामी सघाला जगत पाला, दीन दयाला, हो दुनी।।
रंको रूखाला प्रणत पाला, नेक त्वाला नाम है।
भव सिन्धु भारण पार तारण, नाम नारण नाव है।।
प्रभु नाम तेरा नाव है। (2)
आदि अपारा किरतारा, मेल थारा के मदे।
हारेय हजारा सिद्धसारा, वेद चारा युंवदे।।
पावे न पारा पारवारा, लख हजारा लील है।।
भव सिन्धु भारण पार तारण, नाम नारण नाव है।।
प्रभु नाम तेरा नाव है। (3)
प्रकृति प्रसारा तरण तारा, दधि पहारा नभ धरा।
अग्न जल अपारा मेघ धारा, भरण हारा भू धरा।।
प्रति जीव प्यारा पोष नारा, रखवारा राज है।
भव सिन्धु भारण पार तारण, नाम नारण नाव है।।
प्रभु नाम तेरा नाव है। (4)
ब्रहमण्ड भारी के अपारी, रचन सारी के रचे।
माया अपारी मोह धारी, नरो नारी के नचे।।
दुष्टो विदारी चक्र धारी श्रेयकारी श्याम है।
भव सिन्धु भारण पार तारण, नाम नारण नाव है।।
प्रभु नाम तेरा नाव है। (5)
भव सुख भेटण चिन्ता मेटण, पुंज काटण पाप का।
त्रय लोक त्राता हो विधाता, मणों दाता मोक्ष का।।
नरो नायक फलों दायक, शकल का सुख धाम है।
भव सिन्धु भारण पार तारण, नाम नारण नाव है।।
प्रभु नाम तेरा नाव है। (6)
सनकादि सारद अत्रि नारद, ब्रहमा गणपत मुख भणे।
शंकर सुरेन्द्र सूर्यचन्द्र, योगिन्द्र सब जने।।
वेदों विधानी ब्रहम ज्ञानी, थकित बानी थाक है।
भव सिन्धु भारण पार तारण, नाम नारण नाव है।।
प्रभु नाम तेरा नाव है। (7)
नर सुरों नामी सिद्ध स्वामी, योग धामी ना जोया।
हारे हजारा कथन हारा, पार थारा न पामया।।
जग के सुजामी पद नमामी, शरण धामी  श्याम है।
भव सिन्धु भारण पार तारण, नाम नारण नाव है।।
प्रभु नाम तेरा नाव है। (8)
उंचा अपारी व्रत धारी, नेक थारी निर्मला।
अर्जो हमारी कौन धारो, शरण तोरी साबला।।
दाखो दयारी खुमयारी, ह्रदय दर्शन हाम है।
भव सिन्धु भारण पार तारण, नाम नारण नाव है।।
प्रभु नाम तेरा नाव है। (9)

छप्पय छंद
शरण तुम्हारी श्याम , चाकर परयो रज चरणों।
ईश्वर चरित्र अपार, बुद्धि लघु कैसे बरनो।।
महर्षि ब्रहमा महेश, ह्रदय बुध जन हारया।
वेद वाणी नही विषय, पणे मुख नेति पुकारया।।
दाखो अल्प बल डेडरी, लख सिन्धु पार कैसे लहे।
अगधि गति प्रभु की अनंत, कथ खुमियो चरित्र कैसे कहे।।
~खूमदानजी बारहठ

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