कवि कृपाराम जी खिड़िया (बारहट) तत्कालीन मारवाड़ राज्य के खराड़ी गांव के निवासी जगराम जी के पुत्र थे। जगराम जी को कुचामण के शासक ठाकुर जालिम सिंह जी ने जसुरी गांव की जागीर प्रदान की थी वहीं इस विद्वान कवि का जन्म सन 1825 के आस पास हुआ था। डिंगल और पिंगल के उतम कवि व अच्छे संस्कृतज्ञ होने नाते उनकी विद्वता और गुणों से प्रभावित हो सीकर के राव राजा लक्ष्मण सिंह जी ने महाराजपुर और लछमनपुरा गांव इन्हे वि.स. 1847 और 1858 में जागीर में दिए थे।
बारहट कृपाराम जी का राजिया नामक एक सेवक था जिसने एक बार कवि के बीमार पड़ने पर उनकी खूब सेवा सुश्रुषा की। इस सेवा से कवि बहुत प्रसन्न हुए। कहते है राजिया के कोई संतान नही होने के कारण राजिया बहुत दुखी रहता था कि मरने के बाद उसका कोई नाम लेने वाला भी नही होगा। अतः उसके इसी दुःख को दूर करने हेतु अपनी सेवा से खुश कवि ने कहा वह अपनी कविता द्वारा ही उसे अमर कर देंगे। और उसके बाद कवि ने राजिया को संबोधित कर “नीति” के सोरठे रचने शुरू कर दिए। जिनकी संख्या लगभग 140 थी अभी भी 130 के लगभग सौरठे (दोहे) मौजूद है।
नीति सम्बन्धी राजस्थानी सौरठों में “राजिया रा सौरठा” सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। भाषा और भाव दोनों द्रष्टि से इनके समक्ष अन्य कोई दोहा संग्रह नही ठहरता। संबोधन काव्य के रूप में शायद यह पहली रचना है। इन सारगर्भित सौरठों के भावों, कारीगरी और कीर्ति से प्रभावित हो जोधपुर के तत्कालीन विद्वान् महाराजा मान सिंह जी ने उस सेवक राजिया को देखने हेतु आदर सहित अपने दरबार में बुलाया और उसके भाग्य की तारीफ करते हुए ख़ुद सौरठा बना भरे दरबार में सुनाया —-
सोनै री सांजांह जड़िया नग-कण सूं जिके।
कीनो कवराजांह, राजां मालम राजिया।।
अर्थात हे राजिया ! सोने के आभूषणों में रत्नों के जड़ाव की तरह ये सौरठे रच कर कविराजा ने तुझे राजाओं तक में प्रख्यात कर दिया।
कवि ने अपने दोहों के माध्यम राजिया को वास्तव में इतना प्रख्यात कर दिया कि इन सोरठों के रचयिता स्वयं बारहट कृपाराम से अधिक लोग राजिया को जानते हैं।
प्रस्तुत हैं बारहट कृपाराम जी रचित “राजिया रा दूहा”
कुट्ळ निपट नाकार, नीच कपट छोङे नहीं।
उत्तम करै उपकार, रुठा तूठा राजिया।१।
सुख मे प्रीत सवाय, दुख मे मुख टाळौ दियै।
जो की कहसी जाय, रांम कचेडी राजिया।२।
समझणहार सुजांण, नर मौसर चुके नहीं।
औसर रौ अवसांण, रहै घणा दिन राजिया।३।
कीधोडा उपकार, नर कृतघ्न जानै नही।
लासक त्यांरी लार, रजी उडावो राजिया।४।
मुख ऊपर मिठियास, घट माही खोटा घडे।
इसडा सूं इकलास, राखीजे नह राजिया।५।
अहळा जाय उपाय, आछोडी करणी अहर।
दुष्ट किणी ही दाय, राजी हुवै न राजिया।६।
गुण सूं तजै न गांस, नीच हुवै डर सूं नरम।
मेळ लहै खर मांस, राख़ पडे जद राजिया।७।
दुष्ट सहज समुदाय, गुण छोडे अवगुण गहै।
जोख चढी कुच जाय, रातौ पीवै राजिया।८।
केई नर बेकार, बड करतां कहताँ बळै।
राखै नही लगार, रांम तणौ डर राजिया।९।
चुगली ही सूं चून, और न गुण इण वास्तै।
खोस लिया बेखून, रीगल उठावे राजिया।१०।
आछो मांन अभाव मतहीणा केई मिनख।
पुटियाँ कै ज्यूँ पाव, राखै ऊँचो राजिया।११।
गुण अवगुण जिण गांव, सुणै न कोई सांभळै।
उण नगरी विच नांव, रोही आछी राजिया।१२।
कारज सरै न कोय, बळ प्राकम हिम्मत बिना।
हलकायां की होय, रंगा स्याळां राजिया।१३।
मिले सिंह वन मांह, किण मिरगा मृगपत कियो।
जोरावर अति जांह, रहै उरध गत राजिया।१४।
खळ धूंकळ कर खाय, हाथळ बळ मोताहळां।
जो नाहर मर जाय, रज त्रण भकै न राजिया।१५।
नभचर विहंग निरास, बिन हिम्मत लाखां वहै।
बाज त्रपत कर वास, रजपूती सूं राजिया।१६।
घेर सबल गजराज, केहर पळ गजकां करै।
कोसठ करकम काज, रिगता ही रै राजिया।१७।
आछा जुध अणपार, धार खगां सनमुख धसै।
भोग हुवे भरतार, रसा जिके नर राजिया।१८।
दांम न होय उदास, मतलब गुण गाहक मिनख।
ओखद रो कड़वास, रोगी गिणै न राजिया।१९।
गह भरियो गजराज, मह पर वह आपह मतै।
कुकरिया बेकाज, रुगड़ भुसै किम राजिया।२०।
असली री औलाद, खून करयां न करै खता।
वाहै वद वद वाद, रोढ़ दुलातां राजिया।२१।
ईणही सूं अवदात, कहणी सोच विचार कर।
बे मौसर री बात, रूडी लगै न राजिया।२२।
बिन मतलब बिन भेद, केई पटक्या रांम का।
खोटी कहै निखेद, रांमत करता राजिया।२३।
पल-पल में कर प्यार, पल-पल में पलटे परा।
ऐ मतलब रा यार, रहै न छाना राजिया।२४।
सार तथा अण सार, थेटू गळ बंधियों थकौ।
बड़ा सरम चौ भार, राळयं सरै न राजिया।२५।
पहली कियां उपाव, दव दुस्मण आमय दटे।
प्रचंड हुआ विस वाव, रोभा घालै राजिया।२६।
एक जतन सत एह, कूकर कुगंध कुमांणसां।
छेड़ न लीजे छेह, रैवण दीजे राजिया।२७।
नरां नखत परवाण, ज्याँ ऊभा संके जगत।
भोजन तपै न भांण, रावण मरता राजिया।२८।
हीमत कीमत होय, बिन हीमत कीमत नही।
करै न आदर कोय, रद कागद ज्यूँ राजिया।२९।
देखै नही कदास, नह्चै कर कुनफ़ौ नफ़ौ।
रोळां रो इकळास, रौळ मचावै राजिया।३०।
कूड़ा कुड़ परकास, अणहूती मेलै इसी।
उड़ती रहै अकास, रजी न लागै राजिया।३१।
उपजावे अनुराग, कोयल मन हरकत करै।
कड्वो लागे काग, रसना रा गुण राजिया।३२।
भली बुरी री भीत, नह आणै मन में निखद।
निलजी सदा नचीत, रहै सयांणा राजिया।३३।
ऐस अमल आराम, सुख उछाह भेळां सयण।
होका बिना हगांम, रंग रौ हुवे न राजिया।३४।
मद विद्या धन मान, ओछा सो उकळै अवट।
आधण रे उनमान, रहैक विरळा राजिया।३५।
तुरत बिगाड़े तांह, पर गुण स्वाद स्वरूप नै।
मित्राई पय मांह, रीगल खटाई राजिया।३६।
सब देखै संसार, निपट करै गाहक निजर।
जाणै जांणणहार, रतना पारख राजिया।३७।
मूरख टोळ तमांम घसकां राळै अत घणी।
गतराडो गुणग्रांम, रांडोल्या मझ राजिया।३८।
हुवै न बूझणहार, जांणै कुण कीमत जठै।
बिन गाहक ब्योपार, रुळ्यौ गिणीजे राजिया।३९।
गुणी सपत सुर गाय, कियौ किसब मूरख कनै।
जांणै रुनौ जाय, रन रोही में राजिया।४०।
पय मीठा पाक, जो इमरत सींचीजिए।
उर कड़वाई आक, रंच न मुकै राजिया।४१।
रोटी चरखो राम, इतरौ मुतलब आपरौ।
की डोकरियां कांम, रांम कथा सूं राजिया।४२।
जिण मारग औ जात, भूंडी हो अथवा भली।
बिसनी सूं सौ बात, रह्यो न जावै राजिया।४३।
कारण कटक न कीध, सखरा चाहिजई सुपह।
लंक विकट गढ़ लीध, रींछ बांदरा राजिया।४४।
आवै नही इलोळ बोलण चालण री विवध।
टीटोड़यां रा टोळ, राजंहस री राजिया।४५।
मणिधर विष अणमाव, मोटा नह धारे मगज।
बिच्छू पूंछ वणाव, राखै सिर पर राजिया।४६।
जग में दीठौ जोय, हेक प्रगट विवहार म्हें।
काम न मोटो कोय, रोटी मोटी राजिया।४७।
कहणी जाय निकांम, आछोड़ी आणी उकत।
दांमा लोभी दांम, रन्जे न वातां राजिया।४८।
हुनर करो हजार, सैणप चतुराई सहत।
हेत कपट विवहार, रहै न छाना राजिया।४९।
लह पूजा गुण लार, नर आडम्बर सूं निपट।
सिव वन्दै संसार, राख लगायाँ राजिया।५०।
लछमी कर हरि लार, हर नै दध दीधो जहर।
आडम्बर इकधार, राखै सारा राजिया।५१।
सो मूरख संसार, कपट जिण आगळ करै।
हरि सह जांणणहार, रोम-रोम री राजिया।५२।
औरुं अकल उपाय, कर आछी भूंडी न कर।
जग सह चाल्यो जाय, रेला की ज्यूँ राजिया।५३।
औसर पाय अनेक, भावै कर भूंडी भली।
अंत समै गत एक, राव रंक री राजिया।५४।
करै न लोप, वन केहर उनमत वसै।
करै न सबळा कोप, रंकां ऊपर राजिया।५५।
पहली हुवै न पाव, कोड़ मणा जिण में करै।
सुरतर तणौ सुभाव, रंक न जाणै राजिया।५६।
पाल तणौ परचार, कीधौ आगम कांम रौ।
वरंसतां घण वार, रुकै न पाणी राजिया।५७।
कांम न आवै कोय, करम धरम लिखिया किया।
घालो हींग घसोय, रुका विचाळै राजिया।५८।
भाड़ जोख झक भेक, वारज में भेळा वसै।
इसकी भंवरो एक, रस की जांणे राजिया।५९।
मानै कर निज मीच, पर संपत देखे अपत।
निपट दुखी व्है नीच, रीसां बळ-बळ राजिया।६०।
खूंद गधेडा खाय, पैलां री वाडी पडे।
आ अणजुगति आय, रडकै चित में राजिया।६१।
नारी दास अनाथ, पण माथै चाढयां पछै।
हिय ऊपरलौ हाथ, राल्यो जाय न राजिया।६२।
हियै मूढ़ जो होय. की संगत ज्यांरी करै।
काला ऊपर कोय, रंग न लागै राजिया।६३।
मलियागिर मंझार, हर को तर चन्दण हुवै।
संगत लियै सुधार, रूंखाँ ही नै राजिया।६४।
पिंड लछण पहचाण, प्रीत हेत कीजे पछै।
जगत कहे सो जाण, रेखा पाहण राजिया।६५।
ऊँचे गिरवर आग, जलती सह देखै जगत।
पर जलती निज पाग, रती न दिसै राजिया।६६।
सुण प्रस्ताव सुभाय, मन सूं यूँ भिडकै मुगध।
ज्यूँ पुरबीयौ जाय, रती दिखायां राजिया।६७।
जिण बिन रयौ न जाय, हेक घडी अळ्गो हुवां।
दोस करै विण दाय, रीस न कीजे राजिया।६८।
समर सियाळ सुभाव, गळियां रा गाहिड़ करै।
इसडा तो उमराव, रोट्याँ मुहंगा राजिया।६९।
कही न माने काय, जुगती अणजुगती जगत।
स्याणा नै सुख पाय, रहणों चुप हुय राजिया।७०।
पाटा पीड उपाव, तन लागां तरवारियां।
वहै जीभ रा घाव, रती न ओखद राजिया।७१।
नहचै रहौ निसंक, मत कीजै चळ विचळ मन।
ऐ विधना रा अंक, राई घटै न राजिया।७२।
सुधहीणा सिरदार, मतहीणा मांनै मिनख।
अस आंघौ असवार, रांम रुखाळौ राजिया।७३।
भावै नहींज भात, विंजण लगै विडावणा।
रीरावे दिन रात, रोट्या बदळै राजिया।७४।
कूडा निजल कपूत, हियाफ़ूट ढांढा असल।
इसडा पूत अऊत, रांड जिणै क्यों राजिया।७५।
चालै जठै चलंत, अण चलियां आवै नही।
दुनियां मे दरसंत, रीस सूं लोचन राजिया।७६।
सबळा संपट पाट, करता नह राखै कसर।
निबळां एक निराट, राज तणौ बळ राजिया।७७।
प्रभुता मेरु प्रमांण, आप रहै रजकण इसा।
जिके पुरुष धन जांण, रविमंडळ ज्यूं राजिया।७८।
लावां तीतर लार, हर कोई हाका करै।
सीहां तणी सिकार, रमणी मुसकल राजिया।७९।
मतलब री मनवार, नैंत जिमावै चूरमा।
बिन मतलब मनवार, राब न पावै राजिया।८०।
मूसा नै मंजार, हित कर बैठा हेकठा।
सह जाणै संसार, रस न रह्सी राजिया।८१।
मन सूं झगडै मौर, पैला सूं झगडै पछै।
त्यांरा घटै न तौर, राज कचेडी राजिया।८२।
सांम धरम धर साच, चाकर जेही चालसी।
ऊनीं ज्यांनै आंच, रती न आवै राजिया।८३।
चोर चुगल वाचाळ, ज्यांरी मांनीजे नही।
संपडावै घसकाळ, रीती नाड्यां राजिया।८४।
जणही सूं जडियौह, मद गाढौ करि माढ्वा।
पारस खुल पडियौह, रोयां मिळै न राजिया।८५।
खळ गुळ अण खूंताय, एक भाव कर आदरै।
ते नगरी हूंताय, रोही आछी राजिया।८६।
भिडियौ धर भाराथ, गढडी कर राखै गढां।
ज्यूं काळौ सिर जात, रांक न छाई राजिया।८७।
औगुणगारा और, दुखदाई सारी दुनी।
चोदू चाकर चोर, रांधै छाती राजिया।८८।
बांकापणौ बिसाळ, बस कीं सूं घण बेखनै।
बीज तणौ ससि बाळ, रसा प्रमाणौ राजिया।८९।
बंध बंध्या छुडवाय, कारज मनचिंत्या करै।
कहौ चीज है काय, रुपियो सरखी राजिया।९०।
राव रंक धन रोर, सूरवीर गुणवांन सठ।
जात तणौ नह जोर, रात तणौ गुण राजिया।९१।
वसुधा बळ ब्योपाय, जोयौ सह कर कर जुगत।
जात सभाव न जाय, रोक्यां धोक्यां राजिया।९२।
अरहट कूप तमांम, ऊमर लग न हुवै इती।
जळहर एको जाम, रेलै सब जग राजिया।९३।
नां नारी नां नाह, अध बिचला दीसै अपत।
कारज सरै न काह, रांडोलां सूं राजिया।९४।
आहव नै आचार, वेळा मन आधौ बधै।
समझै कीरत सार, रंग छै ज्यांने राजिया।९५।
विष कषाय अन खाय, मोह पाय अळसाय मति।
जनम अकारथ जाय, रांम भजन बिन राजिया।९६।
जिण तिण रौ मुख जोय, निसचै दुख कहणौ नहीं।
काढ न दै वित कोय, रीरायां सूं राजिया।९७।
जका जठी किम जाय, आ सेज्यां हूंता इळा।
ऐ मृग सिर दे आय, रीझ न जाणै राजिया।९८।
रिगल तणौ दिन रात, थळ करतां सायब थक्यौ।
जाय पड़यौ तज जात, राजश्रियां मुख राजिया।९९।
नारी नहीं निघात, चाहीजै भेदग चतुर।
बातां ही मे बात, रीज खीज मे राजिया।१००।
क्यों न भजै करतार, साचै मन करणी सहत।
सारौ ही संसार, रचना झूंठी राजिया।१०१।
घण-घण साबळ घाय, नह फ़ूटै पाहड़ निवड़।
जड़ कोमळ भिद जाय, राय पड़ै जद राजिया।१०२।
जगत करै जिमणार, स्वारथ रै ऊपर सकौ।
पुन रो फ़ळ अणपार, रोटी नह दै राजिया।१०३।
हित चित प्रीत हगांम महक बखेरै माढवा।
करै विधाता कांम, रांडां वाला राजिया।१०४।
स्याळां संगति पाय, करक चंचेड़ै केहरी।
हाय कुसंगत हाय, रीस न आवै राजिया।१०५।
धांन नही ज्यां धूळ, जीमण बखत जिमाड़िये।
मांहि अंस नहिं मूळ, रजपूती रौ राजिया।१०६।
के जहुरी कविराज, नग माणंस परखै नही।
काच कृपण बेकाज, रुळिया सेवै राजिया।१०७।
आछा है उमराव, हियाफ़ूट ठाकुर हुवै।
जड़िया लोह जड़ाव, रतन न फ़ाबै राजिया।१०८।
खाग तणै बळ खाय, सिर साटा रौ सूरमा।
ज्यांरों हक रह जाय, रांम न भावै राजिया।१०९।
समझहीन सरदार, राजी चित क्यां सूं रहै।
भूमि तणौ भरतार, रीझै गुण सूं राजिया।११०।
बचन नृपति-अविवेक, सुण छेड़े सैणा मिनख।
अपत हुवां तर एक, रहै न पंछी राजिया।१११।
जिणरौ अन जल खाय, खळ तिणसूं खोटी करै।
जड़ामूळ सूं जाय, रामं न राखै राजिया।११२।
आछोड़ा ढिग आय, आछोड़ा भेळा हुवै।
ज्यूं सागर मे जाय, रळै नदी जळ राजिया।११३।
अरबां खरबां आथ, सुदतारां बिलसै सदा।
सूमां चलै न साथ, राई जितरी राजिया।११४।
सत राख्यौ साबूत, सोनगरै जगदे करण।
सारी बातां सूत, रैगी सत सूं राजिया।११५।
कनवज दिली सकाज, वे सावंत पखरैत वे।
रुळता देख्या राज, रवताण्यां वस राजिया।११६।
अदतारां घर आय, जे क्रोड़ां संपत जुड़ै।
मौज देण मन मांय, रती न आवै राजिया।११७।
उण ही ठांम अजोग, भांणज री मन मे भणै।
आ तो बात अजोग, रांम न भावै राजिया।११८।
अवसर मांय अकाज, सांमौ बोल्यां सांपजै।
करणौ जे सिध काज, रीस न कीजे राजिया।११९।
नैन्हा मिनख नजीक, उमरावां आदर नही।
ठाकर जिणनै ठीक, रण मे पड़सी राजिया।१२०।
मांनै कर निज मीच, पर संपत देखे अपत।
निपट दुखी: व्है नीच, रीसां बळ-बळ राजिया।१२१।
लो घड़ता ज लुहार, मन सुभई दे दे मुणै।
सूंमा रै उर सार, रहै घणा दिन राजिया।१२२।
हुवै न बूझणहार, जाणै कुण कीमत जठै।
बिन ग्राहक व्यौपार, रुळ्यौ गिणीजे राजिया।१२३।
तज मन सारी घात, इकतारी राखै इधक।
वां मिनखां री वात, रांम निभावै राजिया।१२४।
पटियाळौ लाहोर, जींद भरतपुर जोयलै।
जाटां ही मे जोर, रिजक प्रमाणै राजिया।१२५।
खग झड़ वाज्यां खेत, पग जिण पर पाछा पड़ै।
रजपुती मे रेत, राळ नचीतौ राजिया।१२६।
सत्रू सूं दिल स्याप, सैणा सूं दोखी सदा।
बेटा सारु बाप, राछ घस्या क्यूं राजिया।१२७।
गेला गिंडक गुलाम, बुचकारया बाथां पडे।
कूट्यां देवे काम, रीस न कीजे राजिया।१२८।
खीच मुफ़्त रो खाय, करड़ावण डूंकर करै।
लपर घणौ लपराय, रांड उचकासी राजिया।१२९।
चावळ जितरी चोट, अति सावळ कहै।
खोटै मन रौ खोट, रहै चिमकतौ राजिया।१३०।