चारण जाति ए देवीपुत्र नुं पवित्र बीरद पामेली पुराण प्रशिद्ध जाती छे, तेमज चारण ने चाल कबळ तरीके बिरदाववामां आवे छे. आ “चारण” ना पर्यायवाची शब्द तरीके गुजरातमां “गढ़वी” शब्द गणनापात्र छे, एटले गतीमां प्रगती पमाडे ते गढ़वी आ उक्ती यथार्थ छे. चारणों कठोपजीवी अने कोठा सूझ संपत्र छे. तेमज काव्य कवितानी रजुआतनी रमणीयताना कारणे आगळ ना वखत मा अनेक रजवाड़ोओ मा चारणों राजकवि तरीके अने राजाओ ना राहबर तरीके रह्या छे. वळे चारणों शक्तिनां अने सरस्वती ना उपासको छे अने पोतानी काव्यकळा थी जनता जनार्दनमांनी शक्तिनी चेतनाने जागृत करी कर्यान्वीत करे छे. जेथी जागृतीनी ज्योतीर्धर तरीके चारण जाती जाणीती छे. आ चारण जाती मा मुख्यतत्त्वे “२३” त्रेवीस शाखाओं विदीत छे. जेने मारू भाषामां (वियोत्री) के ‘वीसोत्रय’ कहेवाय छे. ज्यारे अपभ्रंशमां “विहोतर” शब्द वपराय छे. राजस्थान मां आवेल थरपारकरनां डींनसी गामें थी आ चारण जाणीता महेडु शाखाना वडवा श्री “डूंगरशी” महेडु विक्रमना पंदऱमां सैकामां एटले के सं. १४२० थी ३० नी आसपास सौराष्ट्रना झालावाड़ प्रदेशमां आवेला अने ते वखते हळवद ना झाला दरबारोंनी गादी “थळा” गामे हती. त्यारे थळाना झाला राजवी छत्रशालसिंहजी ए श्री डूंगरशी महेडु ने पोताना राजकवि अने राज्य राहबर स्थापी. ते समय ना रिवाज मुजब लाख पशाव साथे देगाम नामनुं गाम आपेल त्यार थी महेडु शाखाना चारणोंनो वसवाट देगाम गामे थयेल. आ डूंगरशी महेडु पछी लूणपाल महेडु थया. जे खूब ज विद्धवान हता अने थळाना झाला वंशी राजवी भीमसिंहजी ए लूणपाळ महेडु ने पोताना सर्वस्व अर्पण करेल. पण लूणपाळ महेडु नी प्रतिज्ञा हती के कोई नु दान लेवु नही. आ लूणपाळ महेडुऐ ढोलामारू नी प्रसिद्ध वात रचेली छे. तेवी नोध “चारण साहित्य का इतिहास” नामना पुस्तकमां मोहनलालजी ज्ञासुऐ करेल छे. आ लूणपाळ महेडुना वारसदारोमांनो एक फांटो देगाम थी वालवोड़ गामे गयेल अने त्यां ए ज वशंज लाखा महेडु ने त्यां आई श्री ‘जेतबाई’ नुं प्रागटय थयेल. आ वालवोड़ ना महेडु कुटूंबमां सतरमां सैकामां श्री अविचळदासजी तथा तेमना पुत्र गोदड़ महेडु ते पण शीघ्र कवियो थया. आ गोदड़ महेडु ना वारसदारोनो एक फांटो सामरखा गामे गयेल अने त्यां केशर महेडु ने त्या वि.सं. १८१३ मां प्रख्यात कविवर श्री कानदासजीनो जन्म थयो. आ “कानदासजी” ऐ वख्तना कवियो मां श्रेष्ठ कवि तरीके प्रख्यात हता. अने मुस्लीम कवि ‘मुरादमीर’ ते कानदासजी ना शिष्य हता. आ कानदासजी ऊपर १८५७ ना बळवाखोरोने संधरवानो आरोप मुकी अंग्रेज सरकारे कविश्री ने गोधरा नी जेल में पुरेल अने हाथपगमां बेड़ीओ नाखेली. तेमज तेमनी तमाम जागीर जप्त करेली. त्यारे गोधरानी जेलमां कवि श्रीऐ त्या आवेल वीरपुरना प्रख्यात दरियाई पीर नी स्तुति छंद रुपे करेली. जेम के शब्दो “दूल्ला महंमद पीर दरीयाई भैर कर बेडी भगो” अने लोक वायका छे के आ स्तुति पछी कवि ना हाथ पगनी बेडीओ तुटीं गयेली. जे चमत्कार जोता अंग्रेजोये कविराज ने मुक्त करेल. आ कानदासजीनां पाँच पुत्रो जेमा श्री हलुभाईने बे पुत्रो थयां.- (१) लाखाभाई तथा (२)जेठाभाई आ जेठाभाई पण सारा कवि हता अने ते खेड़ा जीला मां आवेल देहवाण स्टेटमां राजकवि तरीके रहेता हता. आ जेठाभाई ने त्या वि.सं. १९५२ ना आषाढ़ सुदी ११ ना दिवसे आ पुस्तक ना रचियता कवि श्री मोतीसिंहजी उर्फ़ मुक्त कवि नो जन्म थयेल. शिशुवयमां सामरखानी प्राथमिक शाळामां अभ्यास कर्यो. त्यार पछी देवाणनी शाळामां वर्नाक्युलर फ़ाइनल सुधीनो अभ्यास करी देवाणनी जे शाळामां शिक्षक तरीकेनी नोकरीथी कारकिँदी नां श्री गणेश कर्या अने बे वर्ष सुधी देवाणमां शिक्षक तरीकेनी निष्ठापूर्वक नोकरी करी विद्यार्थीगणमां शिल अने संस्कार पेर्या. त्यार बाद बीजी जग्याय बदली थवाथी अने कविश्रीने देवाण छोड़वुं अनुकुळ न होवाथी राजीनामु आपी नोकरी छोड़ी दीधी अने पोतानो व्यवसाय सुरु कर्यो. जेमा सारा कारीगरो रोकी “हैंन्डलूम्स” नो धंधो चालु कर्या अने तेमां प्रगर्ति पण सारी करी. परन्तु कविश्रीनुं वधारे लक्ष तो साहित्यक्षेत्रमां रामायण, भागवत गीता विगेरेन अध्ययनमां हतुं अने तेमा व्यवसाय करवाथी वंधु ध्यान आपी शकातुं नहि. जेथी ते छोड़वा विचरता हतां. ऐ दरम्यांनमां कविश्री ना पिता श्री जेठाभाई ऐ शाक्त संप्रदायमां संन्यास धारण कर्यो. जेथी कुटुंबनी तमाम जवाबदारी कविश्री मोतीसिंहजीना माथे आवी पड़ी. परंतु ऐ ज वखते कविश्रीना ससरा रणछोड़दानजी नांधू (गाम खडोळ) जेओ धरमपुर स्टेटमां राजकवि हतां. तेओ पोताना जमाईने (कवि मोतीसिंहजी ने) धर्मपुर तेड़ी गया अने त्या कवि तरीकेनो उच्च अभ्यास चालु करयो अने कवि तरीके कारकिँदी पण शुरू राखी. त्या कविनी साहित्यक उपासनामां खूब ज प्रगती थई अने एक सारा विद्धान कवि तरीके ख्याति पाम्यां अने आ प्रसिद्दीनां प्रतापे ज देवाणना तत्कालीना ठाकोर फतेहसिंहजी ए कवि मोतीसिंहजीने पाछा देवाण बोलावी तेमना पिता नी जग्याये राजकवि तरीके स्थापित करी खूब ज मानपानथी राख्यां. देवाण स्टेट ना राजकवि तरीके रह्या. ते दरम्यान कवि ने धरमपुर स्टेट जांबुघोड़ा स्टेट विगेरे स्टेटोमां अवरजवर थई अने ते दरम्यान कविये चौहाण कल्पदुम तथा देवाणना ठाकोरनां दीकरीना लग्न प्रसंगनां काव्यों रच्या. आज अरसामां कविश्रीने नागेश्वरना महान संत ‘श्री रंग’अवधूतजीनुं सान्निध्य मळ्युं अने तेमनाथी कवि खुब ज प्रभावित बन्या अने ‘अवधूत दर्शन’ नामनु पुस्तक लख्युं तेमज हवे पछी कोई प्राकृत मनुष्यनी कविता नही लखवी अने ईश्वरीय गुणगान ज गावा आवो दृढ़ निर्णय करयो. आप श्री कविराज ने साणंदनां विद्वान राजवी श्री जयवंससिहनो परिचय थतां तयो ने साणंद आववानु सप्रेम आमंत्रण थयुं अने कवि ने पण श्री साणंद ठाकोर साथे प्रगाढ प्रेम होवा थी साणंद आवी रहवा लाग्यां अने त्यांज आ ‘भक्त वत्सल’ ग्रँथ लखवानी शुरूआत करी अने वि.सं. २०१३ मां ते छपावी प्रसिद्ध कर्यो. आ दरम्यान अहमदाबाद कालुपुर स्वामीनारायण मंदीरना आचार्यश्री देवेंद्र प्रसादजी साथे पण कविने ऐक भक्त कविना ते खूब ज सारो स्नेह बंधायो अने अवारनवार स्वामीनारायण मंदीरे पण रहवा लाग्यां अने तेमनी काव्य कळा थी अती प्रसन्न थई आचार्यश्री देवेंद्र प्रसादजी तथा साणंद ठाकोर श्री जसवंतसिंहजी अने बकराणा दरबार श्री रवुभा वाघेला (ब्रह्मचारी) भगतबापू वगेरे ए मळीने कविनुं बहुमान करी (मुक्त कवि) तरीकेनुं महामूलुं बीरद ऐनायत कर्यु. आ प्रसंगे ज आ ग्रँथना संपादक अने टीकाकार कवि हरिसिंह मौजदान महेडु (कवि हरियंद) ने श्री मुक्त कविनुं सान्निध्य मळ्युं अने कवि हरियंदे कवि मुक्त ने पोताना गुरु तरीके स्नेह भावथी स्वीकार्या अने पोताना साहित्यिक वारसदार तथा पोताना अधुरा साहित्यिक कार्योने भविष्यमां कवि हरियंद पूर्ण करशे एवी श्रद्धा साथे साहित्यनी उंडी समजण आपी अने तेमणे ज हरिसिंह मौजदान महेडुने हुलामणा नाम तरीके (कवि हरियंद) नुं बीरद बक्ष्युं. कवि श्री मुक्त खूब ज सोम्य अने शांत मुद्रायुक्त शरीरनी गौर अने तेजस्वी कांति जेमां ज्यारे जुवो त्यारे दिव्यता ज देखाय. जीवनमां सरलता सादाई अने संतोष त्रिवेणी संगम वहेतो. मुक्त कविनी काव्यशैली सामान्य रीते तो व्रजभाषाश्रित कहेवाय कविता थोड़ी कठिन लागे पण तेमां काव्यनां उत्तम कहेवाय. तेवा उदाहरणो घणां मले काव्यमां उचीत अलंकार साथे रस माधुर्य छ़ ऐ छ अनुप्रास वर्ण सगाई आ तमाम सायवेल होय छतां भावमां क्याय यक्षती न आवे तेवी उत्तम कृती जे जोता हिंन्दीनां कवियो जगन्नाथ प्रसाद रत्नाकर अथवा पदमाकर अथवा बीहारी अने रसखान जेवानी काव्य साथे सरखावी शकाय तेवी उत्तम कवितानी रचना छे. आवा विद्धान अने भक्त कवि श्री प्रभुना गुणगान गातागाता अने समाज ने प्रभुना गुणगान करावता दिव्य जीवन जीवी पोताना वतनमां सांमरखा गामे जई पोताना पुत्र श्री दिपसिंह तथा भावनाशील भत्रीजा शंभुदानजी तथा कुटुंबीयोनी सेवा स्वीकारी. परिवार नो पारावार प्रेम प्राप्त करी हरीनाम स्मरण करता करता हाजर रहेला तमाम ने राम राम करी. वि.स्. २०२२ ना महासुदी १३ ना दिवसे देवलोक पाम्या. तेमना मानमां सामरखा तथा देवाण तथा साणंद विगेरे जगा ए जनताये शोक सभाओ योजी कविश्रीने भावांजलि अर्पी. अनेक जग्याये भजन कीर्तन करवामां आवेल. जेमा मुक्त कवि नी लोक चाहना सतत दृष्टि गोचर थई हती. आवा विद्धान अने प्रभु भक्त कवि श्री मुक्तनो स्थूळदेह आजे आपणी समयक्षथी अस्त थयो. छता तेमनी काव्य रचना रूपी तारलाओ आजे पण जनताने तेज आपी रह्या छे अने कवि श्री नी उज्ज्वळ कीर्ति दर्शावी रह्या छे. अने (कवि ने जनता को दियाओ जुग जाते नव जाये) ऐ युक्तिने सार्थक करी बतावे छे अने ते माटे ज कविराज श्री नारायणदान सुरु जेवा विद्वान कवि लखे छे के…… जनमत कवि यह जगतमां अमर करन उपकार| गुण गन हरीजस गाय के पामत भव दधी पर|| कवि मुक्तनी रचनाओ - चौहाण कल्पद्रुम
- अंबास्तवन मालीका (प्रगट)
- महीसागर (प्रगट)
- मुक्त बावनी (हसतलेखीत)
- अवधूत दर्शन
- भक्तवत्सल-(प्रगट)
आ उपरांत छुटक भजनों, गज़लों अने बीजा काव्यों रचेल छे. कवि मुक्त पोतानी पाछळ परिवारमां एक पुत्र नामें दिलीपसिंह तथा बे पुत्रीओ मुकी देवलोक पाम्यां. आ कविना जीवन-कवननुं संकलन करनार डॉ. श्री शिवदांनभाई चारण मुक्त कविना सानिध्यमां बाल्यावस्थामां आवेला अने देवाणमां कविराजनी सेवा करेली अने तेमना आर्शीवादथी ज पोते ग्रँथलाय प्रेम ग्रँथलाय बन्या. उपरांत भक्तिभावना ‘विषय ऊपर महा निबंध लखी’ विद्या वाचस्पति बीरूद पण प्राप्त कर्यु. वंशावली: पेढ़ी परिचय कानदासजी महेडू ⬇ 1.वीसाभाई. 2.हलुभाई. 3.रतनसिंह. 4.दौलतसिंह. 5.उमाभाई —————————————————— हलुभाई महेडू ⬇ 1.लाखाभाई. 2.जेठाभाई —————————————————— लाखाभाई महेडू ⬇ 1.सामंतसिंहजी —————————————————— जेठाभाई महेडू ⬇ 1.मोतीसिंहजी —————————————————– सामंतसिंहजी महेडू ⬇ 1.नटवरसिंहजी, 2.शंभुदानजी —————————————————— मोतीसिंहजी महेडू ⬇ 1.दिलीपसिंहजी —————————————————– नटवरसिंहजी महेडू ⬇ 1.पकंजदानजी —————————————————– शंभुदानजी महेडू ⬇ 1.प्रतापदानजी 2.चतुरदानजी उपरोक्त माहिती:- “भक्त वत्सल” ग्रँथ, रचीयता:- गढ़वी मोतीसिंह जेठाभाई महेडु (कवि मुक्त), गाम- सामरखा, ता. आणंद, |