अथ छाछरो के भोजराज सोढा लालजी और वींझराजजी का मरसिया
कवि खूमदान बारहठ कृत
टँकन कर्ता – संग्राम सिंह सोढा सचियापुरा
दोहा
छत्रिकुळ वंका छाछरे, देतल कवियां दात।
कर भलप जग में करी, परमल सुयस प्रक्षात।।1।।
अखजी सुत लाल उजवल, सद गुणि दाता सोय।
विंझराज कलजी सुवन, दीप कथा थळ दोय।।2।।
रतनहरे जग में रहे, निभायो सुध्ध नेह।
जोड़ बन्धव दोनु जबर, गया साथ सुर गेह।।3।।
हाहाकार जग में हुओ, लदगे ‘वींझल’ ‘लाल’।
गरुआ नृप सुरपुर गया, पांथु वरण प्रतपाल।।4।।
असाढ माह ढिग आव्यो, सज सह इंदर साज।
व्रळके व्योम में वीजळी, गरहर अंबर गाज।।5।।
बहु उदार धन बगसणा, प्रेमी कवियां प्रोढ।
चौमासे कवि चित मही, संभरे दाता सोढ।।6।।
छंद हरि गीति
आसाढ काळी घटा उमंड, व्योम घन छ्ये वादळी,
धणणाट घन रव धरण धम धम, व्रळक चम चम वीजळी,
पड़ताल बोलत बूंद प्राछट, अम्ब समधर उतरे,
सुध्ध लालजी विंजराज सोढा, सज्जन दाता संभरे।
मोहे सज्जन वाला संभरे ।।1।।
साळुले दवादस मेघ स्रावण, रमत नभ चढ रिछियां,
मधरी धारा झड़ मंडै, नग ढळत खळ खळ नाळियां,
डर रात दादुर जुगनु दरसत, कणण रव झीली करै,
सुध्ध लालजी विंझराज सोढा, सज्जन दाता संभरे।
मोहे सज्जन वाला संभरे।।2।।
भादव भूरा काढ भुरजां, मेघ बारे आ मिले,
ध्राट के भूधर शिखर जलधर, आब नदियां उथले,
सप्त रंग सुर चाप सोभे, धर लीलो कंचु धरे,
सुध्ध लालजी विंझराज सोढा, सज्जन दाता संभरे,
मोहे सोढ वाला संभरे।।3।।
अस्वनी लागां सरद आयो, ओस घटाउँ उपड़ी,
परिपक्व सातो धन पूरण, दुनि दौलत दोवड़ी,
सुखमय वरते लोक सर्वे, दसु दिस सब देस रे,
सुध्ध लालजी विंझराज सोढा, सज्जन दाता संभरे,
मोहे सुध्ध दाता संभरे।।4।।
कार्तिक मासे लोक करसा, वणी विध विध वाड़ियां,
पुषकुळ सब करियांण पाके, झक हरियल झाड़ियां,
दीपावली पर्व करत दुनिया, मंगळ उत्छव मोद रै,
सुध्ध लालजी विंझराज सोढा, सज्जन दाता संभरे,
मोहे सज्जन वाला संभरे।।5।।
अगहन हिंमत रितु आयो, दरसत ठंडक दोवळी,
चिंनगार उडगन व्योम चमके, निशा पेखन्त निरमळी,
लग उतर शीतल पवन लहेरी, नागफेन न नीसरे।
सुध्ध लालजी विंझराज सोढा, सज्जन दाता संभरे
मोहे सज्जन वाला संभरे।।6।।
पौ माह शीतल पौन परघळ, दग्ध वन गन देखिया
जल बहत नदियां बर्फ जामें, उज्वल नग अवरेखिया,
सँयोगी जन मन बसे सुख, आमोद दम्पति उचरे,
सुध्ध लालजी विंझराज सोढा, सज्जन उण पल संभरे।
मोहे सज्जन दाता संभरे।।7।।
मन खुसी मानव माघ मासं, पूरण आसा धन पणे,
सम तेज शीतं माघ वीतं, भांण उतराय भणे,
मणु देत जोतिष लग्न मूरत, राग बांग रंग रै,
सुध्ध लालजी विंझराज सोढा, सज्जन दाता संभरे,
मोहे सज्जन इण पल संभरे।।8।।
फागण पिछम पवन फरके, वनस्पति पानां वळी,
लक लूम्ब झुम्बां लील रंगे, कठि नवप्लव कूंपळी,
बोह लोक मिल फाग बोले, पर्व होळी पूज रे,
सुध्ध लालजी विंझराज सोढा, सज्जन इण पल संभरे,
मोहे सज्जन दाता संभरे।।9।।
रितुराज चैतर माह राजत, दरख धरणी दीपिया,
नम भार फल से डार नीची, झाड़ बागां झूकिया,
खिल पुष्प मनहर देत खुशबू, गण मधुकर गूंज रे ,
सुध्ध लालजी विंझराज सोढा, सज्जन इण पल संभरे।
मोहे सज्जन दाता संभरे।।10।।
वैसाख ग्रीषम लुआं छूटी, सरोवर जल सूकती,
मेवात छाबां माळणी, बाजार में अति वेकती,
आखायतीज वरस आगम, पवित्र गिणां पर्व रै,
सुध्ध लालजी विंझराज सोढा, सज्जन इण पल संभरे,
मोहे सज्जन वाला संभरे।।11।।
वर्तेयो जेष्ठह झंझ वाजै, धुली नभ चढ धुंधळी
उदधि अम्बु अरक खेंचत, वर्णे रव चढ वादळी,
परदेस गए यात्राळु पाछा, अपन घर पर आव रे,
सुध्ध लालजी विंझराज सोढा, सज्जन इण पल संभरे,
मोहे सज्जन दाता संभरे।।12।।
छप्पय
संभरे वाला सोढ, उमंड़ बरसाळो आयां।
संभरे दाता सोढ, प्रगट शीतल रितु पायां।
संभरे निश दिन सोढ, दिन सुग्रीष्म दीठा।
संभरे निश दिन सोढ, मणां दाता दोउ मीठा
कवियांण पाळ खुमाण कहे, सोढ लाल वींझल सिरे।
माह बार षटरितु मही, सोढ दाता दिल संभरे।।
टँकन कर्ता – संग्रामसिंह सोढा सचियापुरा
सन्दर्भ, सोढाण प्रदेश के डिंगळ गीत
भाग 2 ( अप्रकाशित)