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मने बोलावे छे, शिखर हिमालय ना, गिरनार नी याद आवे छे
* मने बोलावे छे, शिखर हिमालय ना, गिरनार नी याद आवे छे।
गुफाओ अने कंदराओ गुंजवतो, को’क गेबी साद आवे छे।
* झोली, कमंडल, दंड, माला, गहेरी भीतर शांति।
ऊंडाण मा शोधता अवशेष, मञी एकाद आवे छे।
* दोमदोम साह्यबी ने वधु अभरखां भोग ना।
जिजीविषाओ थी त्रस्त, त्रूप्ति नी फरियाद आवे छे।
* “साधो तो चलता भला”, झंखे विचरण आत्मा।
जडेली बेडीओ लोकेषणा नी, मर्याद आवे छे।
* बंध आंखे पडे द्रष्टि ऐ केडिओ पगडंडियो पर।
आदेश आदेश नो अविरत, क्यांक निरव नाद आवे छे।
* घट भीतर गुंजी रह्यो छे, ​जय​ भगवो आत्मा।
कविता रूहे अबोट अहर्निश, आशीर्वाद आवे छे।
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कवि: ​जय​।
– जयेशदान गढवी।

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