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* जगत सामे जो बाथ भरे , तो जीवन नो अधिकार तने।
तारी भुजाए तुं जो तरे , तो जीवन नो अधिकार तने।
* कोइ नथी अहिंया तने शीळी छांया देनारूं।
स्वंयं ताप सहे कां छत्र धरे , तो जीवन नो अधिकार तने।
* भोग दलदल मा खुंपेला ने, नथी किनारो नथी मझधार
त्यागी थइ जो तुं निसरे , तो जीवन नो अधिकार तने।
* बाह्य दृष्टि सुखने माटे, छे तृषा ऐ मृगजळ नी।
अमी झरणा शोधी ले भीतरे , तो जीवन नो अधिकार तने।
* सौ जाता निज निज ने मार्ग, आपणे साथी क्यां शोधवा?
अगम पथ पर ऐकलो संचरे , तो जीवन नो अधिकार तने।
* छबछबीया ना दाव सहेला, मोती नी न आश जरिये।
ऊंडा नीर मा जो ऊतरे , तो जीवन नो अधिकार तने।
* छे कोने अहिंया समय ने रूचि, विफळगाथा सांभळवा।
“जय”नाद ने जो उच्चरे , तो जीवन नो अधिकार तने।
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– कवि: जय।
– जयेशदान गढवी।

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