विलक्षण बुध्दिलब्धी अर महान मेधा रा धणी किरपारामजी खिड़िया रीति-नीति अर मर्यादा रा मोटा मानवी हा। किरपारामजी रो आदू गांव जूसरी नागौर जिला री मकराणा तहसील कनै आयो थको पण कर्मक्षेत्र वर्तमान में राजस्थान रो सीकर जिलो, तात्कालीन जयपुर रियासतरो बड़ो ठिकाणों हो।
उण समय जोधपुर मानसिंह जी रो राज हो अर जयपुर में जगतसिंह जी अर प्रतापसिंह जी शासक रैया। पूरा राजस्थान में मराठां, पिंडारियां री लूटाखोस अर धमचक मंडियोड़ी रैवती। उण समै सीकर में रावराजा लिछमणसिंह जी पाट बिराजिया हा अर किरपारामजी बांरा मानीता दरबारी होवता हा। उण दिनां रियासतां रा छोटा मोटा ठिकाणेदारां रे सागै झंझट झमैला चालता ई रैवता। आं झगड़ां री कड़ी में लगाण री बातां ने लेयर जयपुर रियासत री कोपदृष्टि सीकर रा ठिकाणां पर हुयगी। अबै सीकर होवण नै घणों मोटो ठिकाणों, 555 गांव, मोटी आमद सखरो फौजबऴ तो ई जयपुर रियासत सूं मुकाबला में सीकर घणो कमजोर पड़तो।
जयपुर की फौजां सझ धज सीकर सूरज पोऴ रै साम्ही डेरा लगाय, लड़ाई रा मौरचां री तैयारियां करण ढूकी। सीकर में किलै रा फाटक बंद कर लड़ाई री अर मर मार री तैयारी करने वास्तै युध्द परिषद री बैठक हुई जिणमें किरपाराम जी भी बिराजिया हा। सगऴा सरदारां अर रावराजा किरपाराम जी ने अरज करियो कि बाजीसा आप एकर सुलह समझोता रो प्रयास करो, नीं जणा लड़ाई तो होवणीज है।
बाजी किरपारामजी ओ बीड़ो झालियो अर जयपुरी फौजां रो फौजबक्षी दौलतराम हल्दिया हो, जिणरी सीकर रावराजा लिछमणसिह जी रै साथै ऐक ही पाठशाऴा में भणाई करियोड़ी ही ऐकण गुरु रा शिष्य अर आपसर रा बचपण रा मिंतर हा। बाजी कूटनीतिअर राजनीति रा ज्ञानी हा ईज। पांच मौजिज मिनखां रो (डेपुटैशन) ले सागे दौलतराम हल्दिया अर चौमूं रावऴ साहब अर बीजा जयपुर रा सरदारां सूं जाय मिऴिया उणांरी फौजी छावणी में। जयपुररा सरदारां अर सेनापतियां सीकर रा पंच-मंडऴ अर बाजीसा रा घणा आवभगत करिया अर बातां बिगतां चाली।
किरपाराम जी बाजी बातां रा कारीगर बातां ने घुमाय फिराय दोस्ती पर लाय अर दोय सोरठा उणी जगां रच अर सुणाया। कि………..
।।सोरठा।।
साँचो मित्र सुजाण, नर अवसर चूकै नहीं।
अवसर रो अहसाण, रहै घणा दिन राजिया।।
साँचो मित्र सचैत, कहो काम न करै किसो।
हरि अर्जण रे हैत, रथ कर हाँक्यो राजिया।।
किरपाराम जी रा सारगर्भित सोरठा समयनुकुल दोनूं तरफां रा हित री बात अर लगान आदि रो बराबर कुरब कायदो आदि तय हुय लिखावट कर अर लड़ाई टाऴ घणां मिनखां रो कचरघाण रोक अर सीकर रो बचाव करियो।
~राजेंद्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर (राज.)