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कवि खूमदान बारहठ

नामखूमदान बारहठ
माता पिता का नामपिता लांगीदानजी बारहठ
जन्म व जन्म स्थानपाकिस्तान के चारणवास ग्राम भीमावेरी, तहसील – नगरपारकर, जिला-थरपारकर, सिंध प्रदेश में दिनांक 08 फरवरी, 1911, विक्रम संवत 1968 माघ शुक्ल द्वादशी शुक्रवार. 
स्वर्गवास
अपनी वृद्धावस्था में राजस्थान के बीकानेर जिले के पूगल ग्राम में रहे जहाँ दिनाँक 26 अक्टूबर 2001, विक्रम संवत् 2058, कार्तिक कृष्ण पक्ष पंचमी, शुक्रवार को 91 वर्ष की दीर्घ आयु में आप देवलोक गमन कर गये. 
कवि संबधित अन्य जानकारी 

विवाह
कवि का विवाह दो बार हुआ – 1. राणुदेवी पिता रायमलदानजी सिंहढायच महू के यहाँ प्रथम, 2. तखुदेवी पिता रघुदानजी मेहडू डिणसी के यहाँ द्वितीय

कवि पुत्र व उनके नाम –
1. केशरदान, 2.हेतुदान, 3.शम्भुदान

कवि की पुत्रिया व उनका विवाह-
1. मूलोंदेवी W/0 प्रभुदानजी देवल मिठडिया हाल भूहट (राजस्थान}
2. लहरदेवी W/0 सरदारदानजी देथा गढड़ा
3. गैरोंदेवी W/0 गोरधनदानजी मेहडू लाकड़खड़िया हाल रोझू (गुजरात)
4. तारोंदेवी W/0 गोविंददानजी खिड़िया चूड़िया हाल कपुराशी (गुजरात)

 जीवन परिचय
भारतवर्ष की चारण काव्य महापुरुष परम्परा में कविराज श्री खूमदानजी बारहठ का नाम विशेष सम्मान और गौरव का प्रतीक है। कविराज श्री खूमदानजी बारहठ का जन्म पाकिस्तान के चारणवास ग्राम भीमवेरी, तहसील-नगरपारकर, जिला-थरपारकर, सिंध प्रदेश में दिनांक 08 फरवरी 1911, विक्रम संवत 1968 माघ शुक्ल द्वादशी,  शुक्रवार को श्री लांगीदानजी बारहठ ( पुनसी बारहठ, मूल निवासी भादरेस, बाड़मेर, भारत ) के घर हुआ था।
कविराज जन्म से ही प्रतिभा संपन्न बालक थे। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा तत्कालीन विख्यात संत श्री संतोषनाथजी के श्रीचरणों में सम्पूर्ण हुई थी। गुरु श्रीचरणों में आपको गुजराती, हिंदी एवं सिंधी भाषाओँ का ज्ञान प्राप्त हुआ। आपने अल्पायु में रामायण, गीता, महाभारत, चारों वेद, रघुनाथ रूपक, सत्यार्थ प्रकाश, रूपद्वीप पिंगल आदि प्रमुख धर्म ग्रंथो का विधिवत अध्ययन कर लिया था। गुरु अनुकम्पा एवं शाश्त्रों के गहन अध्ययन से आपके विचारों में परिपक्वता बढ़ी और आप काव्य रचना की और अग्रसर हुए।
कविराज श्री खूमदानजी बारहठ ने सर्वप्रथम वीररस में दो सौ छंदों के साथ वीर रामायण का सृजन किया। इसके पश्चात आपने अनेक विषयों पर काव्य एवं गद्य लेखन के साथ महत्वपूर्ण धर्म-ग्रंथों की रचनाएँ की। आपकी कालजयी रचनाओं में विषद काव्य ( सांसारिक अनुभूतियों की समालोचना ), रंग-तरंगिणी ( देवों, दातारों एवं वीर पुरुषों की प्रशस्तियों का संग्रहण ),  मानव धर्म नीति ( आठ सौ दोहो का काव्यग्रन्थ ), भारत विजय प्रकाश ( भारत-पाक 1971 युद्ध पर भारतीय वीरों की शहादतों पर सुयश ), सत्यार्थ प्रकाश ( स्वामी दयानंद सरस्वती के सत्यार्थ प्रकाश ग्रन्थ की समसामयिक विवेचना ) आदि प्रमुख रूप से उल्लेखनीय लेखन कृतियाँ है।
पाकिस्तान के भडेली एवं अमरकोट के तत्कालीन सोढ़ा शासकों यथा श्री जैतमालसिंह सोढ़ा आदि ने आपको कविराज की उपाधि ( पदवी ) से सम्मानित कर आपकी काव्य प्रतिभा को सरंक्षण प्रदान किया था। कविराज श्री खूमदानजी बारहठ ने सोढ़ा शासकों यहाँ अपने प्रवास के दौरान अनेक काव्य ग्रन्थों की रचना कर पाण्डुलिपि लेखन कार्य सम्पूर्ण किया था।
दुर्भाग्य से इस बीच घटित भारत-पाक 1971 की युद्ध विभीषिका से पाक में निवासित हिन्दू समुदाय को रातों-रात भारतभूमि पलायन करना पड़ा। कविराज श्री खूमदानजी बारहठ को भी सपरिवार इसी युद्ध विभीषिका का शिकार हो कर भारत में शरण प्राप्त करनी पड़ी। कवि भारत चले आये लेकिन उनकी अप्रकाशित काव्य पांडुलिपियाँ पाकिस्तान के सोढ़ा शासकों के पास ही रह गयी जिनका आपके शेष जीवन तक पता नहीं चल सका।
कविराज खूमदानजी बारहठ अपनी वृद्धावस्था में राजस्थान के बीकानेर जिले के पूगल ग्राम में रहे जहाँ दिनाँक  26 अक्टूबर 2001, विक्रम संवत् 2058, कार्तिक कृष्ण पक्ष पंचमी, शुक्रवार को 91 वर्ष की दीर्घ आयु में आप देवलोक गमन कर गये।
 
कविराज श्री खूमदानजी बारहठ सत्यनिष्ठता एवं वैज्ञानिक सिद्धान्तों के पक्षधर थे। आपने आई श्री सोनल माताजी एवं प्रसिद्ध चारण कवि श्री दुला भाया काग से स्नेहिल भेंट कर चारण समाज के उत्थान एवं समृद्धि पर विवेचनात्मक आलेख भी लिखा था। कविराज का रेगिस्तानी दूरस्थ ग्रामीण वास ( पाकिस्तान में ) होने के कारण आपके काव्य का प्रचार-प्रसार अधिक नहीं हो सका। सत्यार्थ प्रकाश एवं भारत विजय प्रकाश वर्तमान में प्रकशित एवं उपलब्ध कृतियाँ है। शेष उपलब्ध अन्य पांडुलिपियों का भाषा अनुवाद एवं प्रकाशन करवाए जाने के प्रयास जारी है।

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