भगत्त माधुदानजी एक पुरुषार्थी संत, आपका जन्म चतुर्थी चैत्र सुक्ल पक्ष विक्रम संवत 1969 में गाँव प्रेमे की बेरी पाकिस्तान में हुआ। आपने घुअड़ (देवल) गौत्र में पिता श्री सुजोजी और माता श्रीमती बचलदेवी के घर जन्म लिया, आपके चार भाई और तीन बहिन का परिवार था। भाइयो में अणदजी, भीमदानजी, माधुदानजी और सबसे छोटे भंवरदानजी थे। तगु, गवरा और गंगा तीन बहिने थी। भगत् साहब के परिवार में उनकी बहिन गवरा का परिवार आज सन्तोषनगर (सेरूवाला बीकानेर) में निवासित है। माधुदानजी और भंवरदानजी के अलावा भाई बहिन अल्प आयु में ही बीमारियों के प्रकोप से परमात्मा को प्यारे हो गए। आपके जीवन के अंतिम वर्ष आपने बहिन गवारदेवी के परिवार के साथ सन्तोषनगर में बिताये। आप विक्रम संवत 2052 आषाढ़ सुक्ल पक्ष षष्टि को समाधिस्थ हुए । समाधि लेना आपकी स्वयं की इच्छा थी और ये ग्राम वासियो से उन्होंने स्वयं कहा था। आज जहा समाधि है उसी जगह पर समाधि देने का आदेश उनका स्वयं का था। आप ऐसे सन्त थे जो छूआछूत, माला मनका, तिलक, मुंडन, आदि के घोर विरोधी थे। आपका मानव प्रेम और सेवा में ही विस्वास था। भगत्त साहब ने जड़ी बूटियों से बनी औषधियों और वैदिक मंत्रों से सेकड़ो रोगजनित लोगो की जान बचाकर मानव सेवा और सच्चे पुरुषार्थ की मिसाल पेश की। आपने आजीवन ब्रह्मचारीा जीवन का पालन किया। ऐसे संत की जीवनी बहूत जल्द प्रकाशित की जा रही है। आपसे अनुज भंवरदानजी भी आजीवन ब्रह्मचारी संत और मानव सेवाधारी थे। आज भंवरदानजी ध्यानगिरी महाराज के नाम से सिंधी समाज में आदर्श सन्त के रूप में पूजे जाते है आपका मेला प्रति वर्ष 14 जनवरी को खैरथल जिला अलवर में मंगलगिरी सन्यास आश्रम में लगता है।
आपको विदित हो कि भगत साहब के परिवार में उनकी बहिन गवरा का परिवार अर्थात गवरा के पुत्र भीखदानजी/श्री नरसदानजी बारहठ का परिवार संतोषनगर में निवासित हैं जो कि समाधि स्थल का देखरेख एवं नित्य पूजा अर्चना करते हैं। इनके द्वारा आषाढ़ शुक्ल षष्टि वि. सं. 2068 (6 जुलाई 2011) को भगत साहब की मूर्ति स्थापित करवायी गई। इनके द्वारा प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल पंचमी को जागरण एवं षष्टि को यज्ञ एवं महाप्रसाद का आयोजन करवाया जाता हैं और आश्विन शुक्ल पंचमी एवं षष्टि को भी जागरण एवं प्रसाद का आयोजन करवाया जाता हैं। समाधि लेना आपकी स्वयं की इच्छा थी और आपने यह बताया कि मुझे समाधि आपकी ढाणी के पास में ही देना। यह बात आपने अपने भांजे भीख दान जी को व्यक्तिगत रूप से बतायी थी। वर्तमान में समाधि स्थल का विकास कार्य भीखदानजी के परिवार की देखरेख में हो रहा हैं।
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श्रवणजी देवल के बाद का पीढ़ीनामा
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1.वेलोजी, 2.देवायतजी, 3.माणकजी, 4.गोपोजी
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1.अजोजी
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1.नरसिंगदानजी
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1.जोधोजी, 2.गवदानजी, 3.जोगोजी,
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1.पातोजी, 2.धुनोजी, 3.सेसोजी, 4.जेतोजी, 5.खंगारजी, 6.हेमोजी
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1.रायमलजी, 2.श्यामदासजी, 3.जगनाथजी, 4.ईश्वरदासजी
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*4.जेतेजी के पाँच पुत्र*
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1.श्यामदानजी, 2.मालोजी, *3.रोहडजी,* 4.माडणजी, 5.सुखोजी
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1.सधरणजी
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1.गेहोजी, 2.भरमोजी, 3.गुमानजी
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1.कानजी
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1.पीथोजी, 2.कलोजी, 3.जसोजी, 4.जगोजी
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1.मालोजी, 2.मेंहाजलजी
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1.पचावनजी, 2.सानगोंजी, 3.बहादरजी, 4.भुदरजी, 5.वीजोजी, 6.देवोजी
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1.अजबोजी, 2.सुजोजी, 3.सजनजी,
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1.अमरोजी
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1.प्रेमोजी