Fri. Nov 22nd, 2024

भगवती चंदू रो जनम माड़वा (पोकरण) रै संढायच उदैजी दलावत रै घर मा अणंदू मिकस री कूख सूं उनीसवै शताब्दी रै पूर्वाद मे हुयो। अणंदूबाई ई गुडी रै पोकरणां रै अत्याचारां रै खिलाफ जंवर कर चारणां रै स्वाभिमा नै अखी राखियो।  देवी चंदू रो ब्याव दासोड़ी रै रतनू रतनजी सूरदासोत रै साथै हुयो। उण दिनां पोकरण माथै सालमसिंह चांपावत रो अधिकार हो, सालमसिंह चांपावत, चांपावतां री ऊजल़ी परंमपरा रो निर्वाह नीं कर सक्यो, उण आप रै सलाहकारां री उल्टी सीख मानर माड़वा री कदीमी सीम नै उथाल़ण अर अखैसर ताल़ाब नै कब्जे मे करण सारू माड़वै रै अखैसर ताल़ाब तक आपरी सेना भेजदी। चारणां रै कोई दूजो चारो नीं रैयो तो जंवर करण री तेवड़ी, भगवती चंदू उण दिनां माड़वै आयोड़ी ही उण आ सारी बात सुणी तो उणां खुद जंवर करणो तेवड़ियो। संमत१८७९ री मिगसर बदि चोथ छनीवार रै दिन अखैसर री पवित्र पाल़ माथै देवी चंदू सूरज री साख मे नवलाख रै झूलरां मिलगी। पोकरण ठाकुर सालमसिह रो तीजो अर चंदू रो बारियो एक दिन हुयो। ठाकुर निरवंश गयो। आज ई माड़वै रा संवेदनशील अर इण पऱमपरा नै जीवणिया चारण पोकरण रो पाणी नी पीवै। समकालीन डिंगल कवि जगमालजी मोतीसर री आ चिरजा इण बात री साखी है:

जंवर चंदू तूं जल़ी, तैंसूं कोण त्रिसींग
पोकण हंदो पाटवी, सोख्यो सालमसींग
आई म्हारै आवोरे च़ंदूबाई परचो चावरे

धूड़जी मोतीसर जुढिया रो छंद – “वड चरण वंदू शील संधू, मात चंदू माड़वै” व “मात धिन ऊजलो कियो तैं माड़वो, दासोड़ी ऊजली कीन देवी” रै साथै मूल़जी मोतीसर री रचना “दीपै जगत नगर दासोड़ी, मात विराजो चंदू सती”। चावी है जिकी इण बात री साख भरै म्है ई कैई छंद लिखिया जिकां मांय सूं एक अणछपियो छंद आपरै वास्तै निजर कर रैयो हूं:

।।दूहा।।
अणंदू रै चंदू उदर, बाप ऊद विखियात। 
सतधर मोद स़ढायचां मुदै दिरायो मात।।१
पोकण सालम पाटवी उलटी नीत उपाय। 
मही उथाल़ण माड़वो चढियो चांपो चाय।।२
आय अखैसर ऊपरै डेरा करिया दूठ। 
चदू आई चारणी रढियाल़ी सिर रूठ।।३
जोग साध बैठी जबर धार दिनंकर ध्यान। 
झल़धारा सूं जोगणी सुद्धमन कयो सिनान।।४
सठ सालम नै सापियो जग कथ मालम जोय। 
ऊदाई इल़ आज दिन करै न समवड़ कोय।।५

।।छंद रूपमुक़ंद।।
वसु माड़सु माड़वो गांव वखाणिय, 
सांसण सांसणां रूप सिरै। 
पितु ऊदल भाव सुपेखिय पावन, 
धिन्न गेह अवत्तार धरे। 
पुनि देवल जेम मनी पहुमी पर, 
ताकव जाणिय तेज तँडी। 
धिन मात चँदू पख पीहर धारण, 
चारण जात रुखाल़ चँडी।।१

अणदू पख दोय उजाल़िय आगल़, 
कोप गुडी पर जाय कियो। 
सत पांण सु मा़ण रख्यो निज सेवग, 
दूठ कुछत्रिय हांण दियो। 
जिण पेट रमी थण दूध पियो जग, 
मोद दियो पख चार मँडी। 
धिन मात चँदू पख पीहर धारण, 
चारण जात रुखाल़ चँडी।।२

धखधार युं माड़वो आविय धूसण, 
सालम मालम नाय सुणी। 
पत पोकण सीम उथाल़िय पामर, 
गाढ कियां न कदीम गिणी। 
पह वंश तणा नर नार पुकारिय, 
चाड पधारिय भीर चँड। 
धिन मात चँदू पख पीहर धारण, 
चारण जात रुखाल़ चँडी।।३

इम आय अखैसर ऊपर आयल, 
देव दिनंकर ध्यान दियो। 
हिव पाल़ पवित्र बैठ हुतासण, 
क्रोध मही झल़ न्हा़ण कियो। 
उगणासिय संमत साल अठारिय, 
थाहर बाघण ग्राज थँडी। 
धिन मात चँदू पख पीहर धारण, 
चारण जात रुखाल़ चँडी।।४

इल़ काम कियो जस जोग उदाइय, 
नाम हुवो नवखंड नमै। 
अठ जाम अखैसर धाम कियो उत, 
रांमत तूं अरिगाल़ रमै। 
धर भीर लियो रख गांम धजाल़िय, 
खाल़िय सालम कीध खँडी। 
धिन मात चँदू पख पीहर धारण, 
चारण जात रुखाल़ चँडी।।५

महमाय तणी भसमी भर मूरख, 
गोमटियो बिन ठाह गयो। 
वट रात मही थक चूर हुवो बह, 
आकल़ माड़वै गाम अयो। 
पुनि पूछत पांण डर्यो मन पामर, 
छाटिय झोटसु जेथ छँडी। 
धिन मात चँदू पख पीहर धारण, 
चारण जात रुखाल़ चँडी।।६

भल जाप जप्यां धरणी निज भीरत, 
कीरत मांड कवेस कहै। 
अणपार परच्चाय आप उपाविय, 
लोग चरच्चाय लाभ लहै। 
तन ताप फिटै दुख रोर मिटै तद, 
चिंत घटै तुझ छाप चँडी। 
धिन मात चँदू पख पीहर धारण, 
चारण जात रुखाल़ चँडी।।७

हितवां दुख हारण आप चढो हित, 
जारण पीड़रु भीड़ जिको। 
तुह एक उबारण बूड़त तारण, 
सारण जामण काज सको। 
किण कारण देर करै करुणालिय, 
ठारण दे मुझ छांह ठँडी। 
धिन मात चँदू पख पीहर धारण, 
चारण जात रुखाल़ चँडी।।८

जुड़िय नवलाख समागम जोगण, 
हाकल नाहर पीठ हमै। 
गुरजाल़ लियां लटियाल़ गरूरिय, 
नाक भैरु खमकार नमै। 
रँग रास रसा मगरै हद राचत, 
माम इमां महमाय मँडी। 
धिन मात चँदू पख पीहर धारण, 
चारण जात रुखाल़ चँडी।।९

सज साय शीलां सुराराय दिपै सथ, 
साथ जोमां मिरमां सगती। 
मणिमाल़ देमां हरियां तुंहि मालम, 
हंजुय पेमल बीसहथी। 
उर खेद मिटावण आव उमेदांय, 
दैत विणासिय शूल़ डँडी। 
धिन मात चँदू पख पीहर धारण, 
चारण जात रुखाल़ चँडी।।१०

थल़ देस दासुड़िय नेस थयो थिर, 
पेख वर्यो रतनेस पती। 
जस खाट लियो रतनू कुल़ जाहर, 
जेथ बधी प्रभता जगती। 
तद तेथ हुवो ससुराल़ सुतीरथ, 
जात अई तल़ छ़ांह झँडी। 
धिन मात चँदू पख पीहर धारण, 
चारण जात रुखाल़ चँडी।।११

मत देर करै सुण टेर मयाल़िय, 
सेर चढी कर वाट सल़ै। 
कर खैर गुनो रख मैर कृपाल़िय,
वेर उवेर उबार वल़ै। 
सुण गीधरि सायल़ आव सचाल़िय, 
दादिय धारसु पाण दँडी। 
धिन मात चँदू पख पीहर धारण, 
चारण जात रुखाल़ चँडी।।१२

।।छप्पय।।
मही माड़वै मात, आप ऊदै घर आई। 
जणणी अणदू जोय, साच पातां सरणाई। 
सुणणी साद सताब, ऊपर करण नै आवै। 
मन री चिंता मोच, मुदै संताप मिटावै। 
बखांणै धरा जस कर विमळ, कवियां मंगळ कारणी। 
गीधियो कहै सुणजै गिरा, सतधर कारज सारणी।।

गिरधर दान रतनू “दासोडी”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *