पारकर मे आई गोरबाई भी एक शक्ति हो गई, जिसका ईतिहास सभी ढाट पारकर के चारणो को शायद न हो।
आई गोरबाई का जन्म मऊ पारकर मे संढायच कुल मे हुआ था। आई गोर बाई का मौसाल मेहड़ू शाखा मे था। एवं ससुराल विठू शाखा मे था। शाक्षात शक्ति स्वरूपा आई गोर बाई ने केवल 13 शाल की आयु मे अपनी लीला को समेट लिया। एक बार आई गोर बाई आपने पति के लिए कमीज पर भरत डिजाइन कर रही थी तब गोरबाई की मां ने टोने मे कहा कि तुम अपने इस कंथे के (पति के) लिए क्यो आंखे फोड़ रही हो यानि क्यो इतनी मेहनत कर रही हो, तब गोरबाई ने अपनी जनेता को जवाब दिया कि मां मै तो अभी तेरह साल की हूं ,आपने ही तो मेरा भविष्य तय किया है। रही बात मेरे कंथे की (पति) की तो वो जो भी है मेरे पति है,परमेश्वर है।मै उनके लिए भरत श्रंगार न करू तो ओर कौन करेगा मां। मेरे लिए तो जैसे भी वोही मेरे पति परमेश्वर है। लेकिन मां तु मुझे पहचान न सकी कि मै कौन हूं। इतना कहकर गोर बाई गुस्से से वहां उठ खड़ी हुई। गांव के दुर अपनी सहेलियो की मदद से लकड़ीयों की एक चिता तैयार कर उस मे बैठ गई।
जब मां को पता चला कि गोरबाई गांव से दुर चिता प्रकट कर रही है तब वह दौड़ती हुई वहां पहुंच कर गोरबाई से आजिजी करने लगती है। गोरबाई ने अपनी मां से कहा कि मां मुझे न तो आपसे यानी पीहर पक्ष से कोई शिकायत है और न ही मेरे ससुराल पक्ष से। बस मै इतना ही आयुष लेकर आई थी।
जाओ मां मेरी पुजा करना और सच्चे दिल से मुझे पुजोगे तो मै साक्षात परचा दूंगी । इतना कहकर आई गोरबाई का देह परमात्मा मे विलय हो गया। आज भी आई गोर बाई के कुल के ओर ससुराल पक्ष के चारण ऊनका पूजन करते है।
आई गोर बाई मेरे दादाजी कविश्री खेतदानजी मीसण की हयाति मे प्रगट हुई थी। तब कवि खेतदानजी ने ऊनके जीवन लीला पर रेणंकी जात एक छंद भी बनाया था।
दोहा
कर ऊजळ कसुवल तणो,जनम लियो जग मांय।
सह ऊजळ कर संढायचां ,मोटा किया महमाय।।
एम सति ऊजळ कियो ,मेहड़ू घर मोसाळ।
सह ऊजळ कर सासरो,वीठू घर वरदाळ।।
कारूझर ऊजळ कियो, सति जळी समरथ।
कुळ चारण ऊजळ कियो ,करवा ऊजळ कंथ।।
आद शक्त गोरां अठे,पैदास हुई प्रख्यात ।
झिल्ली अगन झाळ में, ऊमां जेम उख्यात।।